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बिहार में दलितों की आबादी 46% के बाद भी क्यों पिछड़ रहे हैं दलित?

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बिहार में दलितों की आबादी 46% है. लेकिन उसके बाद भी राज्य में दलित सारी योजनाओं में पिछड़ रहे हैं. बिहार में राज्य सरकार द्वारा राज्य के पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के लोगों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कई महत्वकांक्षी योजनाएं लाई गयी हैं.

बिहार में दलितों की आबादी

पिछड़ों और अति पिछड़ों को उनका हक मिल सके, इसके लिए सभी पार्टियां अपने-अपने चुनावी मेनिफेस्टो में बड़े-बड़े दावे भी करती हैं. शिक्षा से लेकर विकास तक हर जगह सरकार इन्हें पूर्ण सहयोग देने की बात करती है. लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है.

आज की रिपोर्ट में हम पिछड़ों और अति पिछड़ों को लेकर चलाए गए योजनाओं पर मिलने वाले लाभ के विषय पर चर्चा करेंगे.

बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की 114 जातियां, 46% आबादी लेकिन फिर भी स्थिति खराब

बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की 114 जातियां हैं. जिनकी आबादी लगभग 46% है. इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद यह वर्ग बिहार में सामाजिक और आर्थिक उपेक्षा का शिकार हो रहा है. सत्ता में बैठे वह लोग जो अति पिछड़ा वर्ग के हित की बात करते हैं, उन्होंने इसे केवल एक राजनीतिक हथकंडा बना लिया है, जिसे वह समय-समय पर चुनाव के वक्त इस्तेमाल करते हैं.

शिक्षा से लेकर सामाजिक न्याय के हर क्षेत्र में जहां पिछड़ों और अति पिछड़ों को समाज में बराबर का स्थान मिलना चाहिए उन्हें नहीं मिल पा रहा है.

बिहार में दलितों की आबादी

विद्यालय भी है और बच्चे भी हैं, लेकिन शिक्षकों का अभाव

बिहार की शैक्षणिक व्यवस्था में यह सबसे बड़ी खामी है, कि बिहार में ना तो विद्यालय भवनों की कमी है, और ना इसमें पढ़ने वाले बच्चों की, लेकिन शिक्षकों के अभाव में विद्यालय के बच्चे इसका दुष्परिणाम झेलने पर विवश है. कुछ ऐसा ही हाल बेगूसराय के घागरा पंचायत में स्थित हाई स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का है. वहां पढ़ने वाले कई बच्चों ने हमें बताया कि

मेरा घर यहां से करीब 1 किलोमीटर दूर है. इतनी दूर से आते हैं लेकिन टीचर क्लास नहीं लेते. टीचर और अधिक होने चाहिए. विद्यालय में समुचित व्यवस्था की कमी है.

इस विषय पर हमारे रिपोर्टर ने वहां के प्रधानाचार्य से भी बात की. उन्होंने बताया कि

मैं मानता हूं कि टीचरों की कमी है. इस वजह से मुझे भी यहां काफ़ी समस्या होती है. किसी तरह से क्लास हमलोग मेंटेन कर रहे हैं. कुछ प्राइवेट टीचर भी हम लोग बुलाते हैं. कक्षा 11 और 12 को पढ़ाने के लिए. सरकार से यही मांग है कि जल्द-से-जल्द जो शिक्षकों की कमी है वह पूरी की जाए.

बिहार में दलितों की आबादी

बिहार में दलितों की आबादी इतनी है, रोज़गार के लिए भी उठाने होंगे कई ठोस कदम

पिछड़ा वर्ग के लोगों को रोज़गार देने के लिए केवल आरक्षण ही समाधान नहीं है. बिना रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए इस आरक्षण का कोई अर्थ नहीं है. राज्य सरकार को सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि समय-समय पर नियुक्तियां होती रहे. हालांकि राज्य सरकार यह दावा करती है, कि पहले बिहार में अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटें कई बार पूरी तरह से नहीं भर पाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है.

रोजगार के मुद्दे पर हमने बीपीएससी की तैयारी करने वाले रवि कुमार से बात की. उन्होंने बताया कि

सरकार सिर्फ़ पिछड़ा और अति पिछड़ा के नाम पर राजनीति करती है. देख लीजिए कितना रोजगार मिल रहा है. हम तो बरसों से बीपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. आरक्षण होते हुए भी कुछ नंबर से रह जाते हैं. इसमें दोष भी सरकार का है क्योंकि बुनियादी शिक्षा अच्छी नहीं मिलने के कारण हम लोगों का जो बेसिक है वह कमज़ोर है. पहले बुनियादी शिक्षा सरकार ठीक करें उसके बाद ही बच्चे सरकारी परीक्षाओं में सफल हो पाएंगे.

बिहार में दलितों की आबादी
(बिहार से बाहर जाते मज़दूर)

हर जिले में होना चाहिए पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग के लिए निशुल्क सरकारी कोचिंग संस्थान

रवि ने हमें आगे बताया कि

पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग के लिए सरकार को फ्री कोचिंग संस्थान भी खोलना चाहिए. बीपीएससी की तैयारी में काफी पैसा खर्च होता है. ऐसे में हर छात्र इतने पैसे नहीं जुटा सकता और ना ही सबके मां-बाप उन्हें पढ़ने पटना भेज सकते हैं. सरकार को तो चाहिए कि जिला लेवल पर वह बीपीएससी तथा अन्य सिविल सेवा की तैयारी के लिए निशुल्क कोचिंग संस्थान खोलें.

पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग शैक्षणिक विकास के लिए सरकार हो गंभीर

बिहार सरकार को पिछड़ा अति पिछड़ा वर्ग के शैक्षणिक विकास के लिए केवल योजनाओं और छात्रवृत्ति से हटकर, इनके शिक्षा में होने वाली कमियों को ज़मीनी स्तर पर दूर करने की आवश्यकता है. जब तक अच्छी शिक्षा नहीं मिलेगी तब तक नौकरी कैसे मिलेगी? सरकार के दावे भले कुछ हद तक सच हो सकते हैं, लेकिन पूर्णत: नहीं.

राज्य सरकार जब तक पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग की समस्याओं को राजनीतिक मुद्दा ना बनाकर सामाजिक मुद्दे के तौर पर नहीं देखती तब तक इस वर्ग का विकास मुश्किल है.

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