क्यों बिहार का सीमांचल हर साल बाढ़ में डूब जाता है?

बिहार का सीमांचल हर साल बाढ़ की चपेट में रहता है. सीमांचल को बाढ़ की त्रासदी से राहत दिलाने के लिए महानंदा परियोजना की शुरुआत की गयी है.

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नाजिश महताब
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बिहार का सीमांचल

बिहार का सीमांचल हर साल बाढ़ की चपेट में रहता है. सीमांचल को बाढ़ की त्रासदी से राहत दिलाने के लिए महानंदा परियोजना की शुरुआत की गयी है. महानंदा नदी परियोजना से पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज की करीब पचास लाख की आबादी को बाढ़ से राहत मिलती. लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो पाई है.

बिहार में पिछले 2 दिनों के अंदर 38 जिलों में औसतन 19 एमएम बारिश हुई है. भारी बारिश के कारण बागमती, कोसी, गंगा, महानंदा, गंडक और कमला जैसी नदियों के जलस्तर में तेज़ी से वृद्धि हुई है.

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रविवार को बागमती नदी का जलस्तर ख़तरे के निशान से 61 सेमी ऊपर रिकॉर्ड किया गया. कोसी नदी 46 सेमी और अररिया के परमान नदी का जलस्तर ख़तरे के निशान से 133 सेमी ऊपर है.

17 जुलाई को बागमती के बेनीबाद और महानंदा के डेंगराघाट में नदी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही है. नेपाल भूभाग के जलग्रहण क्षेत्रों में बीते 24 घंटों में 50mm से कम बारिश दर्ज की गई है.

गंगा, गंडक, कोसी, घाघरा के अधिकतर स्थानों पर जलस्तर बढ़ने की प्रवृत्ति दर्ज की गई है. बारिश के मद्देनजर जल संसाधन विभाग के अधिकारी एवं अभियंता अलर्ट पर हैं. मुख्यालय से वरीय अधिकारियों द्वारा स्थिति का निरंतर अपडेट लिया जा रहा है.

आज सुबह वीरपुर (सुपौल) स्थित कोसी बैराज पर 1.18 लाख क्यूसेक जल स्राव दर्ज किया गया. इसकी प्रवृत्ति बढ़ने की है. बैराज के कुल 56 में से 17 गेट खुले थे. वहीं वाल्मीकिनगर स्थित गंडक बैराज पर 77 हजार क्यूसेक जलस्राव दर्ज किया गया. तथा इसकी प्रवृत्ति भी बढ़ने की है. बैराज के सभी 36 गेट खुले थे.

महानंदा नदी का जलस्तर डेंगराघाट (पूर्णिया) में खतरे के निशान से ऊपर दर्ज किया गया है. बागमती नदी का जलस्तर बेनीबाद (मुज़फ्फरपुर) में ख़तरे के निशान से ऊपर दर्ज किया गया है. सल्लेहपुर टंडसपुर छरकी में नदी के तेज़ गति के दबाव के कारण सिंकिंग की प्रवृत्ति देखी गई है. विभाग द्वारा बाढ़ संघर्षात्मक कार्य कराया जा रहा है.

देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% बिहार में

बिहार भारत के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित वाले राज्यों में से एक है. देश की कुल बाढ़ प्रभावित आबादी में 22.1% हिस्सा बिहार का ही है. बिहार में देश के अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की तुलना में ज़्यादा नुकसान होता है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% बिहार में है, लेकिन इससे नुकसान 22.8% हिस्से का है.

भागलपुर के रणवीर, जो की गंगा के किनारे रहते हैं, डेमोक्रेटिक चरखा से बताया कि

गंगा का जलस्तर बढ़ने से हमारे घरों में पानी आ जाता है. और हमें बहुत से परेशानियों का सामना करना पड़ता है. खाने को अनाज नहीं, शौचालय की व्यवस्था नहीं और पानी से होने वाली कई तरह की बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन सरकार ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं करती और हमें कोई लाभ नहीं मिलता.

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बिहार का शोक- कोसी

नेपाल से सटे बिहार के सात जिलों में बाढ़ का ज़्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है. कोसी नदी भारत और नेपाल के बड़े इलाके में फैली हुई है. इसका जलग्रहण क्षेत्र 95,656 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. 2008 में कोसी नदी के कारण ही कुसहा के पास बांध टूटा था जिससे बहुत बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी.

करोड़ों का नुकसान हुआ था. उस बाढ़ के निशान अब तक सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और अररिया जैसे जिलों में देखने को मिल रहे हैं. 

बरसात के मौसम में कोसी का जलस्तर लगातार बढ़ता रहता है. जिसके वजह से कोसी के नजदीक रहने वाले लोगों को काफ़ी समस्या होती है. संजीव कोसी नदी के किनारे रहते हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए उन्होंने बताया कि

सर हमें बहुत परेशानी होती है. जलस्तर बढ़ जाता है उसके बाद हमारे घरों में पानी भर जाता है. हम कहीं आ जा नहीं सकते और नाव की कोई व्यवस्था नहीं है

संजीव एक छात्र है और उनकी पढ़ाई लगातार चल रही हैं, इस बारे में आगे बात करते हुए संजीव ने बताया

सरकार हमारी कोई मदद नहीं करती. अभी जलस्तर बढ़ा है. अगर अभी इसपर काबू नहीं किया गया तो बाढ़ तो आ ही जाएगा और सब खत्म हो जाएगा. हमारी पढ़ाई भी छूट जाएगी.

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परियोजना केवल कागज़ों पर

बिहार में कई नदी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं. जिसमें से ‘कोसी मेची परियोजना’ को केंद्र सरकार की अनुमति मिल गयी है. बिहार सरकार की कोशिश है कि केंद्र इसे राष्ट्रीय योजना घोषित कर दे. ताकि 4,900 करोड़ रुपये की इस परियोजना का 90% खर्च केंद्र उठाए. इस योजना के तहत 76.20 किलोमीटर लंबी नहर बना कर कोसी के अतिरिक्त पानी को महानंदा बेसिन में ले जाया जाएगा.

कोसी मंच के सदस्य महेंद्र बताते हैं

जलस्तर बढ़ने से कई तरह की समस्या होती है. पहली चीज़ की हमारा फ़सल बर्बाद हो जाती है. हम किसान लोग हैं हमारा पूरा घर खेती पर चलता है. ऐसे में फ़सल ख़राब होने से हमारा पूरा जीवन ठप्प हो जाता है.

अंबेडकर यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे राहुल जो कोसी नदी और बाढ़ पर शोध कर रहें हैं. जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने हमें बताया कि

भारत में कोसी नदी पर बैराज बनाया गया है. जिसमें गेट बने हैं, ताकि जब जितना ज़रूरत पड़े उसे खोल दिया जाए. पूर्वी और पश्चिमी साइड से एंबेंकमेंट (तटबंध) बनाया गया है. इसमें एक बहुत बड़ा इलाका तटबंध के बीच में पड़ता है. जिसमें पुराने डाटा के अनुसार भारत के तरफ़ 10 लाख की आबादी है. नेपाल के तरफ़ जब बारिश होती है तो जलस्तर बढ़ता है. और फिर डिस्चार्ज बढ़ता है उसके बाद बैराज का गेट खोलना पड़ता है.

तटबंध बनने से पहले नदी फैल कर बहती थी, क्योंकि रुकावट नहीं था. लेकिन तटबंध बनने से नदी की ऊंचाई बढ़ गई है. कोसी अपने साथ सिर्फ़ पानी नहीं गाद भी लाती है.

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नदियों में गाद जमा होना एक बड़ी समस्या

नदियों में जमा होता गाद बाढ़ का एक बड़ा कारण है. नदियों के तलहटी की सफाई नहीं होने के कारण गाद जमा होता जाता है. गंगा के साथ ही कोसी और गंडक नदी में गाद की समस्या बढ़ती जा रही है. सरकार का ध्यान सिर्फ गंगा में गाद की समस्या पर ही है. फिर भी गंगा में गाद की समस्या का निराकरण नहीं हो रहा है.

विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा में गाद होने का बड़ा कारण फरक्का बैराज है. अन्य नदियों से भी गाद गंगा में बाढ़ के पानी से आता है. लेकिन वह बंगाल की खाड़ी में नहीं जा पाता है. क्योंकि फरक्का में बांध बन जाने के कारण गाद बांध पर रुक जाता है. केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार फरक्का में गंगा में गाद जमा होने की दर 218 मिलियन टन प्रति वर्ष है.

गाद के कारण नदी की गहराई कम हो जाती है. नतीजतन बारिश के कारण जलस्तर बढ़ने से नदी का पानी आसपास फैलने लगता है, और वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बन जाता है. गाद के कारण नदी की अविरलता (प्राकृतिक बहाव) प्रभावित होती है. 

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राहुल आगे बताते हैं कि

सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोगों का घर और खेत परमानेंट नहीं रह पाता है, क्योंकि हमेशा डर बना हुआ रहता है. इसीलिए वहां के लोग अमूमन कच्चा घर बनाते हैं और कच्चा घर बह जाता है. उनके खेत बर्बाद हो जाते हैं. जब नदी का पानी घरों में घुस जाता है तो सबसे बड़ी समस्या होती है खाने की.

राहुल कहते हैं

लोग हमेशा बड़ी बातों पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन लोग प्रतिदिन वाले कार्य को भूल जाते है. जैसे- शौचालय की समस्या, अगर कोई महिला गर्भ से है या किसी महिला को माहवारी हो रही है, तो उनकी समस्या और स्वास्थ्य संबंधी बहुत सारी समस्या होती है.

सरकार ने बाढ़ से बचाव और सिंचाई की व्यवस्था को देखते हुई कई नदी परियोजना की शुरुआत की. लेकिन इसका भी फायदा मिलता दिख नहीं रहा है. गंडक या महानंदा नदी परियोजना हो या फिर बागमती या कोसी नहर परियोजना, सभी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है.

महानंदा नदी परियोजना से सीमांचल को लाभ मिल सकता था

महानंदा नदी परियोजना से पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज की करीब पचास लाख की आबादी को बाढ़ से राहत मिलती. लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो पाई है.

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कटिहार के रहने वाले बेलाल बताते हैं कि

सरकार की कोई भी नदी परियोजना पूरी नहीं हुई है. ज़मीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं हुआ है. जिसके वजह से हमें बाढ़ के वक्त अनेकों तरह की परेशानियां होती हैं और फिर भी सरकार कोई मदद नहीं करती.

बागमती परियोजना से सीतामढ़ी, मुज़फ्फरपुर और शिवहर जिले में बाढ़ से राहत मिलती. लेकिन अधूरी परियोजना के कारण बाढ़ का पानी नए इलाके में फैल रहा है.

बाढ़ के कारण मुजफ्फरपुर जिले के औराई, कटरा और गायघाट प्रखंड ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं. सीतामढ़ी के पुपरी में पिछले दो साल से बांध टूट रहा है. स्थायी तौर पर मरम्मत नहीं होने से बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है.

बाढ़ को लेकर बिहार सरकार की क्या योजना है. इसपर आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी नदीमुल गफ्फार ने हमें  बताया कि

हमारी पूरी टीम सारे जिलों में एक्टिव है. सभी डिस्ट्रिक्ट में काम कर रही है. सब अलर्ट मोड पर हैं, अगर स्थिति ख़राब होगी तो उससे निपट लिया जाएगा. बाढ़ से सुरक्षा के कार्यों में जन सहभागिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जल संसाधन विभाग का कॉल सेंटर 24X7 कार्य कर रहा है. इसका टॉल फ्री नंबर है 1800-3456-145. अगर आपके क्षेत्र में बाढ़ के कारण कोई समस्या है तो आप इस टॉल फ्री नंबर पर कॉल कर सकते हैं.