- राज्य में अभी तक मात्र 44% सरकारी स्कूलों में ही बिजली की व्यवस्था.
- राज्य के मात्र 30% स्कूलों में लाइब्रेरी मौजूद.
- राज्य के मात्र 7% स्कूल में प्राथमिक चिकित्सा किट (First Aid Box) मौजूद.
सर, हमारी बात सुनिए. हमको पढ़ना है. हमको पढ़ने की हिम्मत दीजिए. मेरे पापा सारा पैसा शराब और ताड़ी पीने में ख़र्च कर देते हैं. स्कूल में पढ़ाई नहीं होता है. सर को खुद ही नहीं आता है.
आपको मुख्यमंत्री के गृह जिले नालंदा का सोनू याद होगा. वही सोनू जो पिछले साल मई महीने में सुर्ख़ियों में था. सोनू का मुख्यमंत्री के सामने पढ़ने की फरियाद लगाते हुए वीडियो उस वक्त तेज़ी से वायरल हुआ था.
दरअसल, नीतीश कुमार अपने पैतृक गांव कल्याण विगहा अपनी पत्नी के पुण्यतिथि के अवसर पर पहुंचे थे. इस अवसर पर कल्याण विगहा में जनसंवाद कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया है. इसी कार्यक्रम में निमाकोल गांव का 11 साल का बच्चा सोनू सरकारी स्कूल की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के कारण अपने अच्छी पढ़ाई नहीं होने की शिकायत करता है. सोनू ने मुख्यमंत्री से सैनिक या सिमुलतल्ला स्कूल में नामांकन करवाने का आग्रह किया था. सुर्खियों में रहने और वायरल हो जाने के बाद सोनू तो किसी तरह अपने गांव से बाहर निकल गया, लेकिन जो सवाल उसने बिहार के शिक्षा व्यवस्था पर उठाया था वह आज भी कायम हैं.
बिहार में शिक्षा प्रणाली में सुधार के प्रयास किए गए हैं, लेकिन प्रगति धीमी रही है और समस्या के मूल कारणों को दूर करने के बजाए सतही लीपा पोती पर ध्यान दिया जा रहा है. जबकि समस्या को दूर करने के लिए सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है.
शिक्षा में सुधार के लिये बनेंगे हर जिलें में मॉडल स्कूल
राज्य के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में ऊंचाई लाने के लिए राज्य सरकार राज्य के प्रत्येक जिले में एक मॉडल स्कूल बनाने की तैयारी कर रही है.
सिमुलतला विद्यालय की तर्ज पर राज्य के सभी जिलों में एक-एक उच्च माध्यमिक आवासीय मॉडल स्कूल बनाये जाएंगे. इसके लिए विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. स्कूल की स्थापना संबंधी सर्व के लिए शिक्षा विभाग ने ए.एन.सिन्हा इंस्टीट्यूट को जिम्मेदारी दी है. सरकार का लक्ष्य है कि आगामी सत्र से आधा दर्जन जिलों में इसकी शुरूआत कर दी जाए.
इन आवासीय विद्यालयों में कक्षा छठी से नामांकन प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर होगा. को-एजुकेशन वाले इस स्कूल में 12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई होगी. यूनिफार्म, किताब, कॉपी से लेकर सभी आवश्यक सुविधाएं सरकार मुहैया कराएगी. यह प्रस्तावित मॉडल विद्यालय आश्रम पद्धति आधारित आवासीय प्रकृति का होगा.
सिमुलतला स्कूल में शिक्षक की भर्ती के तर्ज पर होगा शिक्षकों का चयन .
शिक्षक एवं छात्र का आदर्श अनुपात यानी 30 स्टूडेंट पर एक शिक्षक मौजूद होंगे. इन स्कूलों के लिए विभिन्न विषयों के लिए विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति बीपीएससी या अन्य आयोग के माध्यम से होगी. जिन सरकारी स्कूलों का आवासीय विद्यालय के लिए चयन होगा। यहां के शिक्षकों को भी इस कैडर में शामिल होने के लिए आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होना अनिवार्य होगा.
सिमुलतला शिक्षा सोसायटी शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मी सेवा शर्त तथा अनुशासन नियमावली 2021 के आधार पर इन स्कूलों में शिक्षकों और कर्मियों की नियुक्ति हो सकेगी. शारीरिक शिक्षकों की नियुक्ति में तीन साल शारीरिक शिक्षक का अनुभव तथा संगीत ललित कला के लिए न्यूनतम 55 प्रतिशत अंक के साथ संगीत ललित कला में स्नातक और 3 सालों का अनुभव अनिवार्य है.
मॉडल स्कूलों के स्थापना के लिए ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट को यह निर्देश दिया गया है कि प्रत्येक जिले में दो-तीन बेहतर स्कूलों जहां भूमि, भवन सहित अन्य संसाधन बेहतर और पर्याप्त रूप में मौजूद हैं उनका सर्वे करना है.
सिमुलतला राज्य का एकमात्र सरकारी आदर्श विद्यालय
सिमुलतला आवासीय विद्यालय, बिहार के जमुई जिले में स्थित एक आवासीय विद्यालय है. साल 2000 में बिहार से झारखण्ड के अलग होने के बाद राज्य में एक भी उच्च गुणवत्ता वाला सरकारी आवासीय विद्यालय नहीं बचा था. नेतरहाट और नवोदय आवसीय विद्यालय दोनों झारखण्ड में चले गए, जिसके राज्य के मेधावी छात्रों को राज्य इसका नुकसान उठाना पड़ रहा था. जिसके बाद नीतीश कुमार ने साल 2009 में सिमुलतला आवासीय विद्यालय बनाने की कवायद शुरू की थी. इस स्कूल की स्थापना एक वर्ष के अंदर अगस्त 2010 में कर ली गई.
उच्च शैक्षणिक प्रदर्शन वाले छात्रों को बढ़ावा देने के लिए स्कूल की प्रतिष्ठत है, जिसके कारण प्रत्येक साल हजारों छात्र यहां नामांकन के लिए फॉर्म भरते हैं. साल 2015 में इस स्कूल से एक साथ 30 छात्र बिहार बोर्ड के दसवीं की परीक्षा में टॉप 31 में अपना स्थान बनाये थे.
पहले से मौजूद सात हजार से अधिक सरकारी स्कूलों का क्या?
यू-डायस की 2020-21 के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 7,558 सरकारी स्कूल मौजूद है. इन स्कूलों में 3,97,787 शिक्षक और 2.19 करोड़ से ज्यादा यानि 80% बच्चे पढ़ाई करते हैं. पहले से मौजूद इन सरकारी स्कूलों में संसाधनों और शिक्षकों की बहुत कमी हैं.
शिक्षकों की कमी के कारण क्या है, इस पर यारपुर माध्यमिक स्कूल की शिक्षिका इंदु का कहना है कि
हमें पढ़ाने के आलावा भी कई सरकारी कामों जैसे वोट का काम, जनगणना का काम, ब्लॉक स्तर का कोई काम, कोई भी सरकारी योजना हो वो शिक्षक से होकर ही गुजरती है. ऐसे में स्कूलों में शिक्षकों की कमी होना लाजमी है. अभी जातीय जनगणना होनेवाली है उसमें छह माह के लिए हमें लगा दिया जाएगा, बच्चों की पढ़ाई हो न हो, सत्र छूट जाए कोई फर्क नहीं पड़ता.
इंदु आगे कहती हैं
शिक्षकों की पर्याप्त संख्या में बहाली न होना भी एक बड़ा कारण है.
वहीं हाल के दिनों में बहाल हुए स्कूली शिक्षकों को वेतन और दूसरी सुविधाओं को लेकर भी शिकायतें हैं. सरकार के नए नियम के अनुसार जो नियोजित शिक्षक हैं, यानी एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट, उनकी तनख़्वाह सरकारी स्कूलों में पूर्व में, साल 2010 से पहले, बहाल शिक्षकों की तुलना में बहुत कम है.
कई हक़ों के लिए शिक्षकों को अदालतों का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है, इनके चलते आए दिन शिक्षकों की हड़ताल भी हुई हैं.
पद होने के बाद भी नहीं है बहाली
टीईटी-एसटीईटी पास हज़ारों छात्र नियोजन को लेकर महीनों तक सड़कों पर धरने पर बैठे रहे हैं. बावजूद इसके बिहार में बनी नई सरकार, ख़ासतौर पर उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से शिक्षकों को बड़ी उम्मीदें थीं क्योंकि सत्ता में आने से पहले शिक्षकों के मसले पर वो समान काम, समान वेतन की बात कहते आए थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद अभी तक शिक्षकों की बहाली के लिए सरकार द्वारा नियुक्ति नहीं निकलने से छात्र गुस्से में हैं.
शिक्षकों का कहना है कि शिक्षकों की मांगों को नए तौर पर देखा जाना चाहिए, और अगर ज़रूरत पड़ी तो वो फिर से सड़क पर उतरने को तैयार हैं.
यू डायस के 2021-22 के रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 97% (41,360) सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय का प्रबंध किया गया है. ये आंकड़े अंकों के रूप में कागजों पर अच्छे लग सकते हैं क्योंकि इसकी जमीनी सच्चाई तो इसके कोसों दूर हैं.
क्या केवल गिनती के शौचालय बना देने भर से बच्चियों को सुविधा दी जा सकती है? सरकारी स्कूलों के शौचालय, सार्वजनिक शौचालय से भी ज्यादा खराब हाल में होते हैं. जहां गंदगी, पानी की कमी और यहां तक की शौचालय में दरवाजे भी मौजूद नहीं होते हैं.
बुनियादी संसाधनों की है भारी कमी
इस सबके बावजूद अगर आप इन समस्याओं से अधिकारीयों को अवगत कराना चाहेंगे या उनसे इसके समाधान की उम्मीद रखेंगे तो आपको निराशा और हताशा ही हाथ लगेगी.
साल 2022 के सितम्बर माह में राज्य महिला एवं बाल विकास निगम की एमडी हरजौत कौर बम्हारा का जवाब प्रशासनिक रवैये का उदाहरण ही था.
पुस्तकालयों की है कमी
शिक्षिका इंदु कहती हैं
लाइब्रेरी बच्चों के लिए तो मददगार है ही साथ ही यह शिक्षकों को भी बहुत मदद करती है. हमे भी किसी टॉपिक को और बेहतर समझने के लिए अन्य किताबों की जरूरत पड़ती है. लेकिन हमारे स्कूल में लाइब्रेरी नहीं है. हमलोग टॉपिक समझने के लिए किताबे खरीदते हैं या अब तो गूगल और यू-ट्यूब से समझ लेते हैं, लेकिन कम आयवर्ग के बच्चों के लिए यह भी मुश्किल होता है.
नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 शिक्षा का अधिकार कानून, 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ है. इस अधिनियम के तहत प्रत्येक बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है. इस अधिनियम में कई नियम बनाये गए हैं. उन नियमों में से एक नियम यह भी है कि कानूनी और अनिवार्य रूप से सभी स्कूलों के पास एक सुसज्जित पुस्तकालय हों.
हालांकि इस अधिनियम के कई अन्य प्रावधानों की तरह यह भी अब तक पूरे तौर पर लागू नहीं हो पाया है. आरटीई 2009, स्कूलों में सुसज्जित पुस्तकालय बनाए जाने का प्रावधान तो करता है लेकिन उसके संचालन के लिए प्रशिक्षित पुस्तकालय-कर्मियों का प्रावधान नहीं करता है.
लेकिन राज्य के सरकारी स्कूलों की दशा यह है कि यहां के 70% (55,000) सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी मौजूद नहीं है. 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार राज्य के मात्र 30% (22,558) स्कूलों में लाइब्रेरी मौजूद है. उसमें भी मात्र 26% (19,404) लाइब्रेरी में ही किताबे मौजूद हैं.
बिजली, पानी और फर्स्ट एड जैसी बुनियादी व्यवस्था भी नहीं कर पाई सरकार
मुख्यमंत्री राज्य के प्रत्येक जिले में बिजली पहुंचाने का दावा करते है. बिहार राज्य अब 100% बिजली वाले राज्यों की सूची में भी शामिल हो चुका है. लेकिन यह दावे कहां तक सही है इसका आंकलन इससे लगाया जा सकता है कि राज्य में अभी तक मात्र 44% (33,480) सरकारी स्कूलों में ही बिजली की व्यवस्था हो पाई है. अभी भी राज्य के 56% स्कूलों में बच्चे बिना पंखे और बल्ब के पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
जिन स्कूलों में बिजली मौजूद भी है, इसकी कोई निश्चितता नहीं है कि वहां बल्ब और पंखे चलते भी होंगे. क्योंकि स्कूल प्रशासन इनकी पूर्ति करने में भी अपने को असमर्थ बताते हैं.
वहीं जब स्कूलों में पीने के साफ़ पानी की बात की जाए तो 56% (42,343) सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था हो पाई है और 47% (35,819) सरकारी स्कूलों में हाथ धोने के पानी की व्यवस्था है.
प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करने के मामले में भी बिहार के सरकारी स्कूल बहुत पीछे हैं. राज्य के मात्र 7% (5,124) सरकारी और 7% (588) निजी स्कूलों में ही प्राथमिक चिकित्सा किट (First Aid Box) मजूद हैं.
जबकि प्रत्येक स्कूलों को फर्स्ट एड बाक्स में क्रेप बैंडेज, कैंची, नेल कटर, सेफ्टी पिन, थर्मामीटर, एंटीसेप्टिकक्रीम,डिटाल, बोरोलिन, रूई, सेनिटाइजर सहित अन्य जरूरी सामान बच्चों की प्राथमिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रखना चाहिए.