बिहारशरीफ़ हिंसा: आख़िर बिहार में कैसे शुरू हुई सांप्रदायिक हिंसा?

बिहारशरीफ़ और सासाराम में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान सांप्रदायिक हिंसा में प्रशासन और पुलिस के तैयारीयों पर बड़े प्रश्न खड़े करता है?

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सांप्रदायिक हिंसा
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बिहारशरीफ़ और सासाराम में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान सांप्रदायिक हिंसा में प्रशासन और पुलिस के तैयारीयों पर बड़े प्रश्न खड़े करता है? रामनवमी शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसक झड़प में बिहारशरीफ़ स्थित अज़ीज़िया मदरसा, प्रमिला कॉम्पेक्स सहित कई महत्वपूर्ण स्थलों को जला कर राख़ कर दिया गया. इस हिंसा के दौरान कई लोगों ने अपने घर के सदस्यों को भी खो दिया.

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सांप्रदायिक हिंसा से दोनों समुदाय को आर्थिक नुकसान

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जब डेमोक्रेटिक चरखा की टीम बिहारशरीफ़ पहुंचती है तो वहां धारा 144 लागू थी. इस दौरान हमने कई लोगों से बात की. बातचीत के दौरान ये बात स्पष्ट हो गयी कि इस हिंसा में हर समुदाय को आर्थिक क्षति पहुंची है. जिस गोदाम में एक दिन पहले तक करोड़ों के माल मौजूद थें, आज वहां पर सिर्फ़ राख़ ही बची थी.

ठीक यही स्थिति लहरी थाना के पास की मस्जिद और उसके आस-पास के दुकानों की भी थी. नौशाद अली भी इन्हीं दुकानदारों में से एक हैं. मस्जिद के अहाते में उनकी ड्राई फ्रूट्स की एक बड़ी दुकान थी. खजूर और बाकी जले हुए ड्राई फ्रूट्स को दिखाते हुए नौशाद अली बताते हैं:-

हमारी दुकान भराव मोड़ चौराहे पर है. हमारे पास कुछ फ़ोटो है जो हमलोग दिखा सकते हैं कि कैसे सिर्फ़ हमारे ही दुकान को टारगेट किया गया. हमारी दुकान के ठीक बगल में 25 गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों की दुकाने हैं. वहां एक खरोच तक नहीं आई और ना ही उन लोगों पर वार किया गया. सिर्फ कुछ चिन्हित लोगों के रोज़गार को ठप्प करने की और उन्हें जान से मारने की नीयत से नुकसान पहुंचाया गया है.

ठीक यही हालत प्रमिला कॉम्पेक्स के भी कई दुकानदारों को हुई है. व्यापार में हुए व्यापक नुकसान को साझा करते हुए बिहारशरीफ़ के किताब-कॉपी और स्टेशनरी के होलसेलर वीरेंद्र प्रसाद हमें बताते हैं कि

हमलोगों का नुकसान बहुत हुआ है. दुकान के अंदर रखे सभी माल को जला दिया गया. हमलोगों को कोई मदद ना तो सरकार की ओर से मिल रही है और ना ही प्रशासन की ओर से. कोई देखने भी नहीं आया है अब तक. हमलोग थाना में कहने गए तो 2 घंटे तक पुलिस ने हमें बैठा कर रखा. हमलोग अपने दुकान में लगे सीसीटीवी कैमरे को दिखा रहे हैं फिर भी पुलिसवाले विश्वास नहीं कर रहे हैं.

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बिहारशरीफ़ हिंसा में जला दी गयी 123 साल पुराने मदरसे की लाइब्रेरी, साथ ही कई छात्रों का भविष्य भी

बिहारशरीफ में 123 साल पुराने अज़ीज़िया मदरसे को भी दंगाइयों ने नहीं बख्शा. जलते मदरसे के अंदर न सिर्फ किताबें जल रही थीं बल्कि वहां पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य भी उन्हीं किताबों के साथ जलता दिखाई दे रहा था. अजीजिया मदरसे के प्रिंसिपल शाकिर कासमी से हमने बात की. उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए हमें बताया कि

आप सभी जिस लाइब्रेरी में खड़े हैं इसे देखकर आप इसकी शानो-शौकत का अंदाजा लगा सकते हैं. इसमें करीबन 18 किताबों की बड़ी-बड़ी अलमारियां थीं. 1910 से लेकर अब तक की सभी किताबें भी इन अलमारियों में महफूज थीं. इन सभी बेशकीमती और नायाब किताबों को जलाकर खाक कर दिया गया. यह नुकसान सिर्फ मदरसा अज़ीज़िया का ही नहीं बल्कि पूरे शहर बिहारशरीफ का और पूरे बिहार स्टेट का है. इसकी भरपाई नामुमकिन नज़र आती है.

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उर्दू लिखने वाले नरेश की पेंटिंग दुकान हिंसा की भेंट चढ़ी

साल 1990 से लेकर अब तक मैं यहां पेंटिंग की दुकान चलाता हूं. मैं 2 बजे तक यहां मौजूद था और शोभायात्रा देखी. उसके बाद हमलोग दुकान बंद करके चले गए. रात में करीब 9-10 बजे कुछ लोगों ने मुझे बोला कि सुनने में आ रहा है कि आपकी दुकान भी जला दी गई है. मैं अपनी दुकान से 5 किलोमीटर दूर सोसराय में रहता हूं. मैं इतनी रात वहां कैसे पहुंच सकता था. फिर सुबह हमलोग देखने गए तो मेरी दुकान एकदम खत्म हो चुकी थी.

नरेश अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए भावुक हो जाते हैं. वो आगे बताते हैं:-

सर, मेरी 3 बच्चियां हैं और एक लड़का है. इसी दुकान से मैं उनका भरण पोषण करता था. मेरे पास आमदनी का कोई और दूसरा जरिया नहीं है. यहीं से कमाते और खाते हैं. इतने समय से मेरी दुकान है. आज तक कभी किसी तरह की समस्या नहीं हुई. इमाम साहब और बाकिं जितने भी मस्जिद के लोग हैं वह सब यहां बैठते हैं,पेंटिंग करवाते हैं,उर्दू अरबी में लिखवा कर ले भी जाते हैं.आज तक कभी कोई समस्या नहीं हुई लेकिन आज ऐसा हो गया है कि में एक रुपया कमाने लायक नहीं बचा हूं.

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मृतक गुलशन के घर पसरा सन्नाटा, परिवार सदमे में

बिहारशरीफ में हुई हिंसा का सबसे ज़्यादा नुकसान उस परिवार को झेलना पड़ा जिसने अपना एक युवा सदस्य खो दिया. हम बात कर रहे हैं इस घटना में निर्दोष रूप से मारे गए मृतक गुलशन के परिवारवालों की. हमने इस घटना को लेकर गुलशन के बड़े भाई विकास से बात की. उन्होंने इस घटना को बताते हुए कहा कि

मैं अपने भाई के साथ बाहर गया था. हम लोग राशन, पानी और दवाई लेकर आ रहे थे. तभी नहर पर से गुज़रते वक्त अपने गांव की तरफ जाने के दौरान एक दरगाह के पास से गुजरते समय हमलोगों को महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है. मैंने अपने भाई को बोला कि चलो भागो यहां से. दोनों भाई मिलकर भागने लगे. मैं थोड़ा आगे निकल गया. जब मैं कुछ आगे निकला था तभी मुझे आवाज आई कि 'भैया मुझे बचा लो'.

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विकास आगे बताते हैं

पूरी तरह स्पष्ट तो नहीं लेकिन भैया तो पक्का सुनने में आया था. उसके बाद मैंने देखा कि मस्जिद की खिड़की से फायर होना शुरू हो गया. मैंने फिर भागना शुरू कर दिया. तब तक कुछ लोग मेरे भाई को उठाकर डॉक्टर के पास लेकर गए. मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि मेरे भाई को डॉक्टर श्रवण कुमार के यहां भर्ती कराया गया है. फिर मैं अकेला वहां गया. मैंने अपनी छोटी बहन को फोन किया. वहां पहुंचते ही एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि- जिसको गोली लगी है वह तुम्हारा भाई है ? मैंने कहा- हां, वह मेरा भाई है. तब उसने कहा कि चलो जल्दी नोबल हॉस्पिटल मैं वहां पहुंचा तो देखा कि मेरा भाई बेड पर सोया हुआ है और कुछ डॉक्टर और नर्स उसका इलाज कर रहे हैं. फिर मुझे कहा गया कि इसे सदर अस्पताल लेकर जाओ. सदर अस्पताल पहुंचने के बाद डॉक्टरों ने उसे चेक किया और कहा कि यह तो एक्सपायर हो गया है.

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मृतक के बड़े भाई का आरोप, मदद करने के बदले पुलिस ने की गाली-गलौज

इस विषय पर मृतक के बड़े भाई विकास ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि

पावापुरी ओ.पी थाने के बब्बन चौधरी नामक थानेदार ने मुझे बॉडी के पोस्टमार्टम के लिए शव पटना ले जाने को कहा. तब मैंने उनसे कहा कि पटना नहीं बिहारशरीफ ही लेकर जाएंगे. बॉडी को ले जाने के क्रम में चर्चुआ नामक एक जगह पर उन्होंने गाड़ी रोक दिया और बोले कि मेरी ड्यूटी खत्म हो गई है, अब बड़ा-बाबू आएंगे. बिना बताए शव के साथ मुझे पटना लेकर जाने लगे. फिर मैंने अपने एक संबंधी को कॉल किया जो एक अखबार में पत्रकार हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि अपने मोबाइल से वीडियो बनाओ. मैंने जैसे ही वीडियो बनाना शुरू किया, मेरा फोन छीन लिया गया और कुछ भी पूछने पर मुझे गालियां देने लगते थे.

इतने बड़े दंगे में एक-दो लोगों की जान चली ही जाती है- पूर्व विधायक पप्पू खान

बिहारशरीफ में हुई हिंसक झड़प और मारे गए मृतक गुलशन को लेकर हमने बिहारशरीफ के पूर्व विधायक पप्पू खान से बात की. उन्होंने मृतकों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि

पहड़पूरा में दो समाज के बीच नोकझोंक हुई थी. इस दौरान किधर से गोली चली यह तो नहीं बताया जा सकता लेकिन मृतकों के प्रति मेरी श्रद्धा है चाहे वह जिस समाज का हो. इतनी बड़ी घटना में इक्का-दुक्का मौत हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है. ऐसा कुछ भी बिल्कुल नहीं होना चाहिए था. अब प्रयास किया जा रहा है कि ऐसा कोई और मामला आगे ना हो.

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इतने बड़े दंगे में एक-दो लोगों की जान चली ही जाती है- पूर्व विधायक पप्पू खान

बिहारशरीफ हिंसा में दोनों पक्षों का आरोप,अगर प्रशासन सख्त होता तो नहीं होती कोई हिंसा

बिहारशरीफ में रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा को लेकर दोनों पक्षों का आरोप प्रशासन की लापरवाही को बताया जा रहा है.

स्थानीय लोग इस घटना को लेकर पुलिस की गैर-जिम्मेदाराना रवैया को लेकर बेहद नाराज दिखे. मोहम्मद इकबाल नाम के साइकिल दुकानदार ने हमें बताया कि

रामनवमी शोभा यात्रा के दौरान अगर पुलिस प्रशासन सख्त होती तो यह घटना नहीं घटी होती. ना तो दुकानें जलती और ना लूटपाट होती.

इसी संबंध में बात करते हुए पेंटिंग दुकानदार नरेश ने भी पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. नरेश की माने तो घटना की शुरुआत होने के काफी समय बाद पुलिस हरकत में आई. नरेश के अनुसार अगर पुलिस पहले ही सख्त हो गई होती तो शायद यह घटना नहीं घटती.