जिस मैदान से शुरू हुई थी ‘संपूर्ण क्रांति’ उस पर बुडको ने किया कब्ज़ा

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जिस मैदान से शुरू हुई थी ‘संपूर्ण क्रांति’ उस पर बुडको ने किया कब्ज़ा
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बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे अनुग्रह नारायण सिंह ने पटना के कदमकुआं में 1 एकड़ 37 डिसमिल जमीन बिहार कांग्रेस कमेटी को दान स्वरूप दिया था. जिसमे आगे चलकर मैदान का निर्माण कराया गया था और अनुग्रह बाबु की मूर्ति भी स्थापित की गयी थी.

इसी यशस्वी धरोहर पर 1974 में शैक्षिक स्तर में गिरावट, महंगाई, शासकीय अराजकता और राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण जैसे मुद्दे को लेकर पटना में 10 मार्च 1974 को छात्र संघर्ष समिति के युवा छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ था. इस आन्दोलन में भाग ले रहे छात्रों का स्वास्थ्य जानने जय प्रकाश नारायण कदमकुआं स्थित कांग्रेस मैदान पहुंचे थे.

इसी आन्दोलन के बाद इसी वर्ष उन्होंने पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा से शांतिपूर्ण ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था. उन्होंने छात्रों से भ्रष्ट राजनीतिक संस्थाओं के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया और एक  साल के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बंद करने के लिए कहा. जेपी चाहते थे कि छात्र अपने को राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए समर्पित करें, यह इतिहास का वह समय था जब उन्हें लोकप्रिय रूप से जेपी बुलाया जाने लगा.

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इस आंदोलन के अंत में आपातकाल की घोषणा हुई और बाद में जनता पार्टी की जीत में तब्दील हुई. आपातकाल के दो साल बाद  मार्च 1977 में केंद्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जनता पार्टी के तले सभी गैर कांग्रेसी दलों को एकत्रित करने का श्रेय जय प्रकाश नारायण को ही जाता है.

देश के राजनीती में उलट फेर करने में मुख्य कारण रहे ‘सम्पूर्ण क्रांति’ की नीव जिस धरती से शुरू हुई थी उस एतिहासिक भूमि पर आज अतिक्र्मन्कारियों का कब्ज़ा है. साथ ही चालाकी से बुद्को भी इस जमीं को अपने कब्जे में लेने की कोशिश में लगा है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और अनुग्रह नारायण सिन्हा की यादों को संजोए इस ऐतिहासिक कांग्रेस मैदान पर कब्जे की तैयारी है लेकिन सरकारी महकमा इसकी सुध लेने को तैयार नही है.

यहाँ के स्थानीय और समाजसेवी श्याम किशोर शर्मा का कहना है की “इस मैदान को कब्जाने की साजिश हो रही है. यह मैदान एतिहासिक है, यह मैदान स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर जेपी आन्दोलन तक की कर्मभूमि रही है. सार्वजानिक हित को ध्यान में रखकर यहाँ पार्क का निर्माण किया गया था. दो लाख की आबादी पर यह एकमात्र पार्क इस इलाके में है, लेकिन इसपर भी छलपूर्वक कब्ज़ा करने का प्रयाश किया जा रहा है. 2019 में जब पूरा पटना डूब गया था, तब बुडकों ने यहाँ सम्प हाउस का निर्माण कर लिया. उस वक्त भी इसका बहुत विरोध हुआ. तब बुडको ने कहा था की एक साल के अंदर इसे हटा लिया जाएगा. लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी इसे नही हटाया गया. वहीं इधर चार-पांच दिन पहले फिर से बुडको आधे पार्क में कटीले तार से घेराव कर नाला बनाने की तैयारी में था. जिसके बाद हमलोगों ने आवाज उठाया तब जाकर तार को हटाया गया है.”

वहीं कटीले तार के कारण कांग्रेस मैदान में गुरुवार की सुबह कंटीले तार पर गिरने से एक बच्चा भी घायल हो गया. स्थानीय निवासी ब्रजकिशोर प्रसाद ने बताया कि बच्चा आसपास में रहता है और सुबह पार्क में खेलने आया था. खेलने के दौरान उसका बॉल कंटीले तार के पास चला गया, जिसे लाने में वह गिर गया. स्थानीय लोग उसे पास के क्लिनिक ले गए. उसके नाक के पास चोट आई है.

वहीं लोहानीपुर की रहने रेनू देवी और जगत नारायण पथ से आयीं राधिका देवी का कहना है की सुबह घुमने आये तब कटीला तार लगा देखे. सुबह में घुमने के लिए मात्र यही पार्क है. वह भी छोटा है. उसके बाद भी यहाँ तार से जगह को घेरा गया तब हमलोगों ने आवाज उठाया.”

2019 में बना था सम्प हाउस

2019 की बाढ़ के बाद बुडको ने धीरे-धीरे कर मैदान पर कब्ज़ा करना शुरू किया. 2020 में पहले एक चौथाई मैदान को घेरकर अस्थायी संप का निर्माण किया गया.

जब स्थानीय लोगों ने विरोध किया, तो कहा गया कि इसे एक साल के भीतर हटा लिया जाएगा। लेकिन, अबतक अस्थायी संप मैदान के एक चौथाई हिस्से पर खड़ा है. अब बुडको ने आधे मैदान की तार से घेराबंदी कर दी है. स्थानीय लोगों ने इस संबंध में जानकारी ली, तो कहा गया कि इसमें ड्रेनेज पंपिंग स्टेशन का निर्माण करना है. लोगों ने विरोध शुरू किया और इसकी शिकायत स्थानीय विधायक, वार्ड पार्षद और बुडको अधिकारीयों से किया गया.

पार्क का हाल है बदहाल

पार्क के रखरखाव के लिए एक कमीटी का निर्माण किया गया था जिसके द्वारा इसमें सौंदर्यीकरण का काम कराया गया था. लेकिन स्थानीय लोगो का कहना है की पिछले पांच-छह वर्षों में पार्क की दुर्दशा का आलम यह है की यहाँ असामाजिक तत्वों का जमावरा लगा रहता है. अँधेरा होते ही यहाँ छीन-झपट होने का डर लगा रहता है. पार्क में जगह-जगह कचरा, घास और दीवाल टूटी है. साथ ही पार्क में लगी लाइट भी खराब है.

पार्क में घुमने आने वाली महिलाओं का कहना है की “यहाँ नशेरियों का जमावड़ा लगा रहता है. यहाँ शराब से लेकर स्मैक पीते लोग यहाँ आपको मिल जाएगा. हमलोग मजबूरी मे यहाँ आते है क्योंकि यहाँ नजदीक में केवल यही पार्क है. अँधेरा होने के बाद यहाँ से गुजरने में डर लगता है.”

श्याम किशोर सिंह का कहना है की “पार्क के रख-रखाव की ज़िम्मेवारी कुछ साल पहले नगर निगम ने उठाया था. लेकिन कुछ सालों के भीतर ही उसने इसकी ज़िम्मेवारी वन एवं पर्यावरण विभाग को दे दिया था. लेकिन उसने भी इसकी ज़िम्मेवारी नही उठाया. पटना के अन्य पार्कों की स्थिति और यहाँ की स्थिति देखिए. न यहाँ माली की व्यवस्था है और न ही गार्ड की. किसी तरह हम स्थानीय लोग ही इसकी सफ़ाई करवाते हैं. कुछ दिनों पहले पार्क का गेट टूट गया था. तब स्थानीय लोगों के सहयोग से इसे दुबारा लगाया गया था.”

वहीं कांग्रेस बिहार प्रदेश कमिटी के कार्यालय सचिव मधुसूदन शर्मा का कहना है की “सरकार के लापरवाही के कारण आज इस पार्क कि यह दुर्दशा हुई है. 11 फरवरी 1936  में अनुग्रह बाबू ने 1 एकड़ 90 डिसमिल जमीन खरीदी थी. उसमें से 1 एकड़ 37 डिसमिल जमीन बिहार कांग्रेस कमेटी को दान स्वरूप दे दिया था, जिस पर पार्क का निर्माण कराया गया. अभी भी कांग्रेस कमिटी के नाम पर कांग्रेस मैदान की जमीन का लगान निर्धारित है, जिसकी प्रतिवर्ष रसीद कटती है. बीस सालों से विधायक अरुण सिन्हा भी इस एतिहासिक पार्क को बचाने  के लिए कोई काम नही किए है.”

ड्रेनेज पम्पिंग स्टेशन बनाये जाने पर सफाई देते हुए बुडको के एमडी धर्मेन्द्र सिंह का कहना है “शहर में 22 जगहों पर नए ड्रेनेज पंपिंग स्टेशन बनाने के लिए जगह चिह्नित की गई है. कदमकुआं स्थित कांग्रेस मैदान को यदि डीपीएस के लिए चिह्नित करने से रहवासियों को परेशानी है तो अन्य जगह की तलाश होगी.”

स्वतंत्रता सेनानियों की धरोहर है पार्क

कांग्रेस मैदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक है. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, अनुग्रह नारायण सिन्हा ने यहां कई बैठकें की हैं. जेपी और अनुग्रह बाबू के घर से काफी नजदीक होने के कारण यह महत्वपूर्ण स्थान था. अनुग्रह बाबू का पुराना आवास मैदान के ठीक सामने और जेपी का आवास मैदान के पीछे 300  मीटर की दूरी पर है. एएन सिन्हा की मूर्ति भी यहां स्थापित है, जिसका अनावरण पूर्व मुख्यमंत्री कृष्ण वल्लभ सहाय द्वारा 1 दिसंबर 1964  को किया गया था, जिसकी स्थिति अच्छी नहीं है.  

बिहार सरकार की एतिहासिक धरोहरों के प्रति उदासीनता एक बार फिर सामने है. एतिहासिक धरोहर को संजोने और उसके विकास से इतर सरकार उसे ध्वस्त करने में ज्यादा ध्यान देती है. बिहार नही केवल पटना में ही कितने एतिहासीक धरोहर को ध्वस्त होने के लिए छोड़ दिया गया है. यह पार्क केवल उसकी बानगी भर है.