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बिहार में भी शुरू हुई बुल्डोज़र की पॉलिटिक्स, इससे न्याय व्यवस्था को खतरा

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राहत इंदौरी साहब ने सही कहा था

लगेंगी आग तो आएंगे घर कई जद में यहां पे मकान सिर्फ हमारा थोड़ी है.

सरकार जब किसी मोहल्ले या इलाके में बुल्डोज़र चलाती है तो सिर्फ अमीरों या अतिक्रमण करने वालों के घर नहीं टूटते. उसमें गरीबों और लाचारों के भी घर टूटते हैं. कितनों का तो आशियाना और रोजी-रोटी ही खत्म हो जाता है.

अगर आपने बुल्डोज़र देखा है तो समझते होंगे इस विशालकाय मशीन की आवाज कैसी होती है. आज भी कहीं बुलडोजर चल रहा हो तो लोग रुककर देखने लगते हैं. यूपी चुनाव के समय अपराधियों के घरों पर जब बुल्डोज़र गरजने लगे तो लोगों को सख्त एक्शन का अहसास हुआ. लोगों में संदेश गया कि सरकार चाहे तो अपराधियों पर नकेल कस सकती है. यूपी के फ़ॉर्मूले को एमपी, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली के बाद अब कई राज्यों में अपनाया जा रहा है. यूपी में एक समय अखिलेश यादव ने बातों ही बातों में सीएम योगी आदित्यनाथ को ‘बुल्डोज़र बाबा’ कह दिया था तो योगी ने इसे अपनी पहचान से जोड़ दिया. योगी चुनाव जीते तो यही बुलडोजर मजबूत सरकार के शुभंकर के तौर पर उभरा. हालांकि सवाल अब भी उठ रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ का प्रयोग कितना सही है और इससे न्याय व्यवस्था पर कितनी चोट पहुंच रही है.

बिहार में भी यूपी की तरह अपराधियों के घर पर बुल्डोज़र चलाने का फ़ॉर्मूला अपनाया जाने लगा है. अप्रैल में लखीसराय के फरार अन्तर-राज्यीय गांजा तस्कर के घर पर बुलडोजर चलाया गया. जिले के बड़हिया पुलिस ने गांजा तस्करी के मामले में पिछले एक साल से फरार चल रहे रौशन कुमार और मौसम कुमार के घर पर पहले इश्तेहार चिपकाया गया. कोर्ट के आदेश पर एएसपी सैयद इमरान मसूद के नेतृत्व में बड़हिया थानाध्यक्ष ने मकान पर बुल्डोज़र चलवाया. करवाई को देखने के लिए लोगो की भीड़ लग गयी और उस भीड़ में लोग यही कहते मिले ‘यूपी वाला बुलडोजर’ यहां भी आ गया है. हांलाकि पुलिस अधिकारी का कहना था कि मजदूरों की जगह जेसीबी का प्रयोग किया गया है और ये कोई नई बात नहीं है.

वही दूसरे केस में नीतीश सरकार में राजस्व और भूमि सुधार मंत्री राम सूरत राय ने मार्च में कहा था कि दबंगों के जमीन पर बुल्डोज़र चलेगा. साथ ही विधायको और विधान पार्षदों को भी दो टूक कहा कि आप पैरवी करने नहीं आइएगा. मंत्री का कहना था कि गरीबों के पर्चा वाले  जमीन पर से अतिक्रमण हटाया जाएगा. जहां भी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया गया है, वहां बुलडोजर चलाया जाएगा. सभी अतिक्रमण की गयी ज़मीन को खाली कराने के लिए तमाम प्रखंडो को 10-10 लाख रूपए भी आवंटित किए गए हैं. मीडिया ने जब सवाल किया कि क्या यहां भी यूपी वाला बुलडोजर चलेगा तो उनका कहना था कि बिहार वाला बुल्डोज़र ज़्यादा मज़बूत है और जब बिहार वाला बुल्डोज़र चलता है तो सब कुछ उखाड़ देता है.

बिहार में कई जिलों में बुलडोजर से अवैध कब्जों को हटाया जा रहा है. इसी क्रम में बुधवार को मुंगेर में भी अवैध कब्ज़ों को ढहाया गया है. इसके साथ ही ज़मीन पर दुकानदारों द्वारा बनाए गए स्थाई संरचना को भी जेसीबी के द्वारा तोड़ा गया. वहीं कैमूर जिले के ही नुआंव प्रखंड क्षेत्र के दरौली पोखरा पर अतिक्रमण कर बनाए गए 74 मकानों को चार जेसीबी के माध्यम से प्रशासन ने तोड़ डाला. इस दौरान लोगों का विरोध भी पुलिस प्रशासन को झेलना पड़ा. वहां रह रहे लोगों का आरोप है कि

हम लोग यहां 100 सालों से रह रहे थे. हमारे पास दूसरी कोई ज़मीन भी नहीं है. इस बरसात में सरकार ने हमारे ऊपर से छत छीन लिया है. प्रशासन ने नोटिस तो दिया था लेकिन हमारी आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि हम दूसरी जगह जमीन लेकर मकान बना सकें.

अपराध के 24 घंटे के भीतर आरोपियों के घरों पर बुल्डोज़र चलाने की आलोचना भी खूब हो रही है. लोग कानून के राज की बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भाजपा शासित विभिन्न राज्यों में घरों और दुकानों को बुल्डोज़र से गिराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इसमें कहा गया है कि अपराध को रोकने के नाम पर अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है. अरशद मदनी ने कोर्ट से कहा है कि वह राज्यों को आदेश दे कि कोर्ट की अनुमति के बिना किसी के घर या दुकान को गिराया न जाए.

कहां से हुई है शुरुआत

सबसे पहले इस चलन की शुरुआत यूपी से हुई है. गैंगस्टर विकास दुबे के घर पर सबसे पहले बुलडोजर चला था और तब इसे यूपी सरकार का अपराधियों के ख़िलाफ़ कड़े रुख़ की तरह देखा गया था.  तब यह कहा गया कि माफियाओं के अवैध ठिकानों को ध्वस्त करने का कार्य चल रहा है. सरकार ने जनता को संदेश दिया कि पहले की सरकारों में लोग गुंडागर्दी से त्रस्त थे लेकिन योगी सरकार ने माफियाओं और गुंडों की कमर तोड़ दी है. 2017 में सरकार बनाने के बाद योगी सरकार ने माफ़ियाओं की अवैध संपत्ति पर बुल्डोज़र नीति का ऐलान कर दिया था. मुख़्तार अंसारी से लेकर अतीक अहमद और विजय मिश्रा की अवैध सम्पतियों पर बुल्डोज़र चला है. सरकारी जमीन पर से कब्ज़ों को हटाया गया.  इसके बाद तो दो हज़ार करोड़ की अवैध संपत्ति पर अतिक्रमण हटाया गया और बिल्डिंग ढहा दी गईं.

बुल्डोज़र एक्शन की आलोचना भी हो रही है. लोग कह रहे हैं कि अचानक से अतिक्रमण ढूंढा जा रहा है अगर एक्शन करना ही था तो एक समान रूप से जिन-जिन लोगों ने अवैध निर्माण कराया है, उन सब पर बुल्डोज़र चलाए जाते.

योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में जावेद मोहम्मद का घर ढहाए जाने से ठीक एक दिन पहले ट्वीट करके लिखा था

अपराधियों/माफ़ियाओं के विरुद्ध बुलडोज़र की कार्रवाई सतत जारी रहेगी. किसी ग़रीब के घर पर ग़लती से भी कोई कार्रवाई नहीं होगी. यदि किसी ग़रीब/असहाय व्यक्ति ने कतिपय कारणों से अनुपयुक्त स्थान पर आवास निर्माण करवा लिया है तो पहले स्थानीय प्रसासन द्वारा उसका समुचित व्यवस्थापन किया जाएगा.

इससे पहले, 26 मई को उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विधानसभा में कहा था कि “किसी ग़रीब के घर पर बुलडोज़र नहीं चलेगा लेकिन गुंडा बख़्शा नहीं जाएगा.”

अपराधियों के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई के नाम पर उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश में भी बुल्डोज़र का इस्तेमाल किया जा चुका है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में कहा था “गुंडे, बदमाश, और दबंग को छोड़ने वाला नहीं हूं, चकनाचूर करके मिट्टी में मिलाकर रहेंगे हम, और बेटी की तरफ़ अगर ग़लत नज़र उठी तो ज़मींदोज कर दिए जाएंगे, मकानों का पता नहीं चलेगा, दुकानों का पता नहीं चलेगा. ऐसे बदमाशों पर बुलडोज़र चलेगा.”

ऐसे में ये माना जा सकता है कि इन नेताओं ने बुलडोज़र से घर गिराए जाने से जुड़े जो बयान दिए हैं, वो संविधान सम्मत होने चाहिए. क्योंकि इन नेताओं ने जो कहा है, सरल शब्दों में उसका मतलब यह  है कि किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी अपराध की सज़ा के रूप में उसका घर गिराया जा सकता है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या भारत का क़ानून ऐसा कदम उठाने की इजाज़त देता है.

क्या है कानूनी प्रक्रिया

पटना हाई कोर्ट के वकील आकाश केशव कहते हैं

हमारे संविधान में कहीं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें किसी संदिग्ध के घर को ढहाने या गिराने का प्रावधान हो. क्योंकि घर सिर्फ़ किसी एक व्यक्ति का नहीं होता है उसमे एक पूरा परिवार रहता है. तो घर गिराए जाने से पूरे परिवार को सज़ा मिलती है.

कई मामलों में सरकार ये कहती है कि बुल्डोज़र नगर निगम से जुड़े क़ानून के उल्लंघन के लिए चलाया गया है. अगर ऐसा है तो भी सरकार को नोटिस और नोटिस के बाद सुनवाई का मौका देना चाहिए. कई मामलों में देखा जाता है कि कोई परिवार उस ज़मीन पर बने मकान में सालों से रहते आए हैं. उनके पास जमीन के कागजात के साथ साथ उसका नक्शा भी होता है. उन्हें उसी घर के आधार पर बिजली और पानी का कनेक्शन भी मिला होता है. इसलिए यदि कल घर या जमीन अवैध बताई जाती है तो एक पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत उस घर के मालिक के नाम से नोटिस दिया जाना चाहिए और अभियुक्त पक्ष को भी कोर्ट में अपना पक्ष रखने का समय देना चाहिए.

लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या कानून किसी व्यक्ति का अपराध सिद्ध होने पर उसका घर गिराने की इजाज़त देता है? इस सवाल के जवाब में आकाश कहते हैं

भारतीय दंड संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर उसका घर गिरा दिया जाए. कानून में सिर्फ़ इतना प्रावधान है कि दोषी ठहराए गए व्यक्ति पर जुर्माना लगाया जा सकता है जिसे बाद में पीड़ित पक्ष को दिया जा सकता है. लेकिन आज तक कोई ऐसा कानून नहीं बना है जिसके आधार पर अगर कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसका घर गिराया जाए.

बुल्डोज़र द्वारा त्वरित की गयी कारवाई असंवैधानिक है इस प्रश्न के जवाब में आकाश कहते है

हम तब तक किसी प्रक्रिया को असंवैधानिक नहीं कह सकते जब तक सरकार ये ना कहे कि हमने प्रोटेस्ट करने की सज़ा के तौर पर ही उसका घर तोड़ा है या उसकी संपत्ति को ज़ब्त किया है. क्योंकि सरकार को भी अपना पक्ष रखने का अधिकार है. सरकार यदि कहे कि हम किसी अभियुक्त का घर प्रोटेस्ट करने के कारण गिरा रहे हैं तब यह असंवैधानिक है और कानून का उलंघन है.

राम पुनियानी, जो एक इतिहासकार और गांधीवादी हैं, हर मामले में बुलडोजर चलाने को भी संविधान सम्मत नहीं मानते हैं. उनका कहना था कि

किसी भी मामले में किसी की संपत्ति या मकान पर अचानक से बुल्डोज़र चलाना सही नहीं है. एक लीगल प्रक्रिया के तहत अभियुक्त बनाए गए व्यक्ति को समय देना चाहिए.

बुलडोजर चलाए जाने से प्रशासन और जनता के बीच आ रहे खाई के सवाल पर आकाश केशव कहते हैं कि

सरकार और जनता के बीच आ रहे है संवाद कि कमी को सरकार को आगे आकर दूर करना चाहिए. गुस्से को गुस्से से शांत नहीं कराया जा सकता. इसलिए सरकार को आगे आना चाहिए और इस मतभेद को दूर करना चाहिए.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कॉलमनिस्ट अपूर्वानंद बुल्डोज़र चलाने के दूरगामी प्रभाव के बारे में बात करते हुए बताते हैं

समाज से इंसाफ का चेहरा ही बदल जाएगा. लोगो में यह सोच तो पहले से ही रही है कि अगर किसी का मर्डर हुआ है तो उसके आरोपित को भी तुरंत मौत की सजा दे दी जानी चाहिए. आरोप लगाने वाला ही इंसाफ़ करने लग जाए तो समाज से कानून व्यवस्था ही समाप्त हो जाएगा. जो इधर कुछ सालों से देखने को मिल रहा है. इंसाफ क्या होता है इसकी समझ ही समाज से समाप्त हो जायेगी.

अब सवाल यह उठता है कि यदि हर मामले में बुलडोजर चलाने जैसी घटनाएं अगर आम हो जाती हैं तो समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? अपूर्वानंद इसका जवाब देते हुए कहते हैं

इस तरह की घटनाओं से समाज में बंटवारा बढ़ जएगा. लोगों के बीच खाई बढ़ेगी. क्योंकि सरकार इंसाफ के नाम पर एक खास वर्ग के लोगों के घरों पर बुलडोजर चला रही है. या फिर गरीब और लाचार लोगों के झोपड़ीयों पर बुल्डोज़र चला रही है.

सरकार का यह भी तर्क रहता है कि अगर किसी अपराध की सज़ा के रूप में घर गिराया जाना ग़ैर-कानूनी है तो सरकारें लगातार बुल्डोज़र से घर गिराकर उसे सही क्यों ठहरा रही है. इसके जवाब में अपूर्वानंद कहते हैं

अपराध हुआ कहां हैं. सरकार झूठ बोल रही है. कोई अपनी बात भी नहीं रख सकता है. यहां कोई मुस्लिम लड़का किसी हिन्दू लड़की से शादी करता है तो उसके घर पर बुल्डोज़र चला दिया जाता है. अपराध रोकने के नाम पर मुसलमानों के आवाज को दबाने की साजिश चल रही है. उन्हें अदालत में अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया जाता है. किसी भी व्यक्ति को घर बनाने में उसके पूरे जीवन की पूंजी लगी रहती है. सरकार किसी का घर गिराकर यह दिखाना चाहती है कि वह अपराध के खिलाफ सख्त है जबकि इससे सिर्फ सरकार का एक खास वर्ग के खिलाफ खुन्नस झलकता है.

बुल्डोज़र चलाने के मामले को सरकार इस तरह से पेश कर रही है जैसे ये काफ़ी न्यायसंगत कार्य है. लेकिन इसकी वजह से समाज पर इसका बुरा प्रभाव ही देखने को मिलेगा और इसकी वजह से बिहार में कानून व्यवस्था से सभी का विश्वास उठ जाएगा.

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