बिहार में समय-समय पर जातिगत आरक्षण की मांग उठती रही है. जब भाजपा और जदयू का गठबंधन था उस वक्त भी जदयू जातीय जनगणना करवाने के पक्ष में थी. उस वक्त की अन्य विपक्षी पार्टियां जैसे आरजेडी, सीपीआई जैसी पार्टियां भी जातीय जनगणना के पक्ष में एकजुट नजर आई थीं.
एक बार फिर बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा तेज हो गया है. यह मुद्दा उठने की मुख्य वजह है नगर निगम चुनाव की सभी सीटों पर चुनाव सामान्य सीट के आधार पर होना. जनता दल यूनाइटेड की ओर से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जदयू के प्रवक्ता अभिषेक झा तथा अनुप्रिया पटेल ने फिर जातीय जनगणना की बात कही.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रवक्ताओं ने कहा कि देश में बने सभी पिछड़ा आयोगों ने अपनी रिपोर्ट में एक स्वर में जातियां आंकड़ों की कमी को सबसे बड़ी समस्या बताई है.
असल में जदयू समेत बिहार की कई अन्य पार्टियां भाजपा से लगातार जातीय जनगणना करवाने की मांग को लेकर दबाव बनाती रही है. लेकिन केंद्र सरकार संसाधनों की कमी की वजह से हमेशा इस मांग को खारिज कर देती है.
पिछड़ा-अति पिछड़ा समाज से माफी मांगे भाजपा
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जेडीयू ने भाजपा पर आरोप हुए कहा देश में पिछड़ों और अति पिछड़ों के आरक्षण संबंधी सभी समस्याओं का एकमात्र हल जातीय जनगणना है. इसमें हुई देरी के लिए भाजपा जिम्मेदार है और उसे बिहार के पिछड़ा और अति पिछड़ा समाज से माफी मांगी चाहिए.
इस विषय पर हमने जदयू के प्रवक्ता अभिषेक झा से बात की. उन्होंने हमें बताया कि
"बिहार में नगर निकाय चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार ने भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस सम्बन्ध में फैलाए गए झूठ, अफवाह और जनता को गुमराह करने के कुत्सित प्रयासों पर पानी फेर दिया. भाजपा को अब 'बिहार के पिछड़ा और अति-पिछड़ा समाज से माफ़ी मांगनी चाहिए."
अभिषेक झा ने डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए आगे बताया कि
" देश में पिछड़ों और अतिपिछड़ों के आरक्षण संबंधी सभी समस्याओं का एकमात्र हल जातिगत जनगणना है. यही कारण है कि देश में बने सभी पिछड़े आयोगों ने अपने रिपोर्ट में एक स्वर में जातीय आकंड़ो की कमी को सबसे बड़ी समस्या बताया है. हमारे नेता नीतीश कुमार जी ने इस विषय को गंभीरता से समझा और कुछ ही महीनों में बिहार सफल रूप से जातिगत जनगणना करनवाले वाला देश का पहला राज्य होगा. इस तरह की जनगणना पूरे देश में होनी चाहिए, इन सम्बन्ध में नीतीश कुमार जी ने कई बार मोदी सरकार से पहले भी आग्रह किया है और आज फिर से अनुरोध कर रहे हैं कि अगर भाजपा पिछड़ा-अतिपिछड़ा विरोधी नहीं है तो अभी भी विलम्ब नहीं हुआ है, मोदी सरकार पूरे देश में जातीय जनगणना करवाने की घोषणा करे."
भाजपा ने शुरू से संसाधनों की कमी का दिया है हवाला
जब भी भारतीय जनता पार्टी से विपक्ष जातीय जनगणना कराने को लेकर अपनी बात सामने रखी है. तब-तब भारतीय जनता पार्टी ने इससे इनकार किया है. भाजपा के अनुसार जातीय जनगणना बेहद जटिल प्रक्रिया है.
केंद्र सरकार के अनुसार जातीय जनगणना में जिन संसाधनों की आवश्यकता होनी चाहिए वह उपलब्ध नहीं है. सामान्य जनगणना में ही काफी देर हो चुकी है ऐसे में जातीय जनगणना में और अधिक समय लग जाएगा.
नगर निगम चुनाव भी आरक्षण को लेकर हुआ था स्थगित
बिहार में अक्टूबर में होने वाले नगर निगम चुनाव पर अंतिम समय में हाईकोर्ट के द्वारा रोक लगा दी गई थी. हाईकोर्ट ने सरकार से ओबीसी आरक्षित सभी सीटों को सामान्य में बदलने के बाद चुनाव कराने की बात कही. कोर्ट ने कहा कि ओबीसी की जनसंख्या के आधार पर सीटें आरक्षित की जाएंगी.
चूंकि सरकार के पास ओबीसी जनसंख्या का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. इस वजह से नगर निगम चुनाव में ओबीसी सीटें आरक्षित करके चुनाव करवाना उचित नहीं है. हाईकोर्ट ने सरकार को ‘ट्रिपल टेस्ट फार्मूले’ का पालन करते हुए चुनाव कराने की बात की थी. ट्रिपल टेस्ट फार्मूले वाला मसला महाराष्ट्र समेत बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में भी फंसा था जिसे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने ही खारिज कर दिया था.
इस विषय पर हमने जदयू के प्रवक्ता अभिषेक झा से बात की. उन्होंने बताया कि
“4 मार्च 2021 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछड़ा आयोग बनाकर ट्रिपल टेस्ट करवाने का निर्देश जारी हो चुका था. इसके बावजूद अक्टूबर 2021 में गुजरात के गांधीनगर में बगैर ट्रिपल टेस्ट के निकाय चुनाव करवाया गया. इसके अलावा गुजरात में ही दिसंबर 2021 में पंचायत चुनाव भी बिना ट्रिपल टेस्ट के ही कराये गए. इतना ही नहीं बिहार में भी जब सितम्बर 2021 में बिना ट्रिपल टेस्ट के पंचायत चुनाव कराये गए तो उस समय भी भाजपा ने मुंह पर पट्टी बांध ली थी.”
अभिषेक झा अपनी बात रखते हुए आगे बताया कि
"अतिपिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने सम्बंधित समस्या देश की आजादी के बाद से ही दर्जनों बार हुई है. दर्जनों बार उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा इस बारे में हस्तक्षेप किया गया है. देश में दर्जनों पिछड़ा आयोग का गठन किया गया है और इसमें देश की जनता का करोड़ों रुपया बर्बाद हो चुका है, लेकिन आज तक इस समस्या का हल नहीं निकल पाया, क्योंकि यह सरकार पिछड़ा-अतिपिछड़ा और आरक्षण विरोधी है, इसलिए इस समस्या का समाधान नहीं निकालना चाहती.”
क्या है ‘ट्रिपल टेस्ट फार्मूला’?
सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णाराव गवली बनाम महाराष्ट्र सरकार एवं अन्य मामले में ट्रिपल टेस्ट फार्मूला दिया था. इसके अनुसार ओबीसी आरक्षण देने के लिए राज्य का पिछड़ा वर्ग यह बताएगा कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं और यदि आरक्षण देना है तो कितना देना है.
3 चरणों में लागू होता है यह ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला
ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को 3 चरणों में लागू करना होता है. जिसमें सबसे पहला है- राज्य सरकार द्वारा आयोग का गठन करना. राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग ही हर निकाय में पिछड़ेपन का आकलन करेगी और उसी आकलन के बाद सीटों के लिए आरक्षण को प्रस्तावित किया जाएगा.
इसके बाद फार्मूले का दूसरा चरण लागू किया जाता है जिसमें ओबीसी की संख्या ज्ञात की जाती है. आयोग के आकलन के आधार पर यह संख्या पता की जाती है.
इसके पश्चात तीसरे चरण में सरकार के स्तर पर आयोग के आकलन और संख्या को सत्यापित किया जाता है. इसके बाद कोई भी राज्य सरकार इसे लागू करती है और इस फार्मूले के अनुसार ओबीसी सीटें निकाय चुनाव के लिए आरक्षित कर सकती है.