शास्त्रीय संगीत जगत का शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो शहनाई सम्राट भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के नाम से वाकिफ न हो। हाल ही में उनकी 14वीं पुण्यतिथि थी, 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की अवस्था में वाराणसी में उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने अपनी अंतिम सांस ली थी। यूं तो उनकी शहनाई […]
“सरकारी स्कूल में कुछ नहीं हो सकता इसका.” ‘प्रकाश झा’ की आई नई फिल्म ‘परीक्षा’ का ये संवाद पूरी फिल्म का सार है। सरकारी स्कूलों की बदहाली, अनियमितता और अव्यवस्था के सामने बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों की श्रेष्ठता को दिखाने की कोशिश इस फिल्म में की गई है। सरकारी स्कूलों के प्रति यह धारणा कि वहाँ […]Read More
Rabindranath and his gamut of female characters, bold, feisty and definitely leagues ahead of their times, have been attributed by several readers Read More
31 जुलाई, प्रेमचंद जयंती के दिन अमूमन रंगकर्मी और साहित्यकार अलग अलग कार्यक्रम करते हैं. इस साल लॉकडाउन और कोरोनावायरस के फैलने के कारण नुक्कड़ कार्यक्रम और सेमीनार तो संभव था नहीं, तो कलाकारों ने भी जुगाड़ निकाला और पहली बार वर्चुअल तरीके से प्रेमचंद को याद किया. मुंबई के कलाकारों ने मिलकर प्रेमचंद की […]Read More
बचपन की बात है, जब हमारे दौर के बच्चे मोबाइल फ़ोन-टैबलेट से दूर नानी की कहानियां सुना करते थे. वो कहानियां राजा-रानियों की हुआ करती थी. लेकिन वो कहानियां हमारे समाज से और वास्तविकता से कोसो दूर हुआ करती थी. हमारे गांव में दलित समुदाय और सवर्ण समुदाय के लोग लगभग एक जैसी आबादी में […]Read More
साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र दामोदरदास मोदी सत्ता में आए और उनके सत्ता में आते ही भारत के लोगों ने अपनी एक महत्वपूर्ण कला गंवा दी, वह कला थी तर्क-वितर्क करने की कला. वह कला थी सवाल पूछने की कला और सवाल उठाने की कला जिसको अमृता सेन ने अपनी किताब अरगुमेंटेटिव […]Read More
we will have to support and encourage our industrial sector. For that, business should be made easy in India. Only giving the Read More
– राजीव रंजन मेरे प्यारे मुस्लिम दोस्तों (लिखना तो मुझे चाहिए ‘मेरे प्यारे दोस्तों’ क्योंकि दोस्ती का कोई जाति और मज़हब नहीं होता, लेकिन क्या कीजिएगा जमाना ही जहर से भरा हुआ है तो मैं दोस्त की जगह मुस्लिम दोस्त बड़ी बेशर्मी से लिख रहा हूँ।) कल जिस तरह हमारे प्रिय अभिनेता इरफान खान के […]Read More
उस दौरान हमारे लिए फिल्मों का मतलब होता था कोई चार्मिंग सा हीरो और गाने लेकिन ये फिल्म इन सभी चीज़ों से कोसो दूर थी. लेकिन फिर भी अपने दोस्त के साथ पान सिंह तोमर फिल्म देखने पटना के मोना सिनेमा हॉल में जाते हैं. आगे जो होता है वो बिलकुल जादू जैसा था. फिल्म में कोई गाने नहीं, कोई आइटम सॉंग नहीं लेकिन फिर भी इरफ़ान की एक्टिंग और तिग्मांशु धुलिया के डायरेक्शन ने फिल्म को बहुत ज़बरदस्त बनाया.Read More