दावे की पड़ताल: क्या बिहार के किसानों की आय दोगुनी हुई है?

बिहार के किसान परिवारों की औसत मासिक आय 7,542 रुपए जबकि देश की 10,218 रूपए. बिहार किसान अभी भी देश के किसानों से 2,676 रूपए कम कमा रहे. बिहार से केवल तीन राज्य पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिसा ही किसानों के आय के मामले में बिहार से पीछे हैं.

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पल्लवी कुमारी
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बिहार के किसान परिवारों की औसत मासिक आय 7,542 रुपए जबकि देश की 10,218 रूपए. बिहार किसान अभी भी देश के किसानों से 2,676 रूपए कम कमा रहे. बिहार से केवल तीन राज्य पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिसा ही किसानों के आय के मामले में बिहार से पीछे हैं.

सात लोगों का परिवार है खेती से घर चलाना मुश्किल हो गया है. पिछले साल घर पर ही किराना का दुकान खोल दिए हैं. खेती से बस खाने भर का अनाज हो जाता है बाकि मुनाफे की बात छोड़ दीजिए. दो फसला (साल में दो फसल) खेत है हमारा बीच में तेलहन और दलहन भी लगाते हैं लेकिन फिर भी बचत न के बराबर है.

यह कहना है नालंदा जिले के नूरसराय ब्लॉक के किसान संजीव कुमार का.

संजीव का सात लोगों का परिवार है लेकिन कम आमदनी के कारण संजीव गांव में किराने की दुकान चलते हैं. किसानों की आय दोगुनी करने को वो केवल वादा मानते हैं.

28 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बरेली में एक रैली को संबोधित करते हुए पूछा

2022 में किसानों की आय डबल करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए.

तो भीड़ ने भी कहा, ‘हां होनी चाहिए’.

इसी रैली में पीएम मोदी ने कहा कि 2022 में जब भारत की आजादी के 75 साल पूरे होंगे तो उस समय तक हम किसानों की आय को दोगुना कर सकते हैं. सरकार द्वारा तय की गई समय सीमा बीते हुए भी एक साल होने को हैं लेकिन कुछ राज्यों के किसानों को छोड़कर बाकि राज्यों के किसान आज भी खेती में मुनाफा होने की राह देख रहे हैं.

इस साल फरवरी 2023 में इस बात को कहे सात साल हो जाएंगे. लेकिन आज भी छोटे किसान खेती में घाटे से डरे हुए हैं.

लागत ज्यादा मुनाफा कम

संजीव कहते हैं

आमदनी क्या बढ़ेगा बल्कि खर्चा ही बढ़ गया है. कट्ठा मन (एक कट्ठा में एक मन) धान उपजता है उसमें भी लागत पहले से ज्यादा. 1500 से 1600 रूपए कीटनाशक, 90 रूपए बोरा (1 किलोग्राम) बीज, एक कट्ठा में 6 किलोग्राम बीज लगा तो 540 रुपया बीज का, 20 रूपए कट्ठा पानी पटाने का, 2000 रूपए कट्ठा रोपनी का, ऐसे करते करते बहुत पैसा लग जाता है. उसके बाद जब फसल तैयार होता है, तब फसल काटने वाला आधा-आधी (उपज का आधा) फसल ले लेता है.

डीजल, उर्वरक, बीज के दाम बढ़ते जा रहे हैं लेकिन फसल उत्पादन स्थिर है. ऐसे में किसानों की आय दोगुनी होना बहुत मुश्किल है.

एग्रीकल्चर पर बनी संसदीय समिति ने पिछले साल 24 मार्च 2022 को संसद में पेश किये गए अपने रिपोर्ट किसानों के आय को लेकर दो सालों के आंकड़े पेश किये थे. ये सर्वे 2015-16 और 2018-19 के थे. इस सर्वे के आंकड़ो के आधार पर समिति ने बताया है कि वर्ष 2015-16 में देश के किसानों की महीने की औसत आमदनी 8,059 रुपये थी, जो 2018-19 तक बढ़कर 10,218 रुपये हो गई. यानी 4 साल में महज 2,159 रुपये की बढ़ोतरी हुई. जबकि इसे 16,118 रूपए करने का लक्ष्य रखा गया था.

इस रिपोर्ट में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के भी आंकड़े पेश किये गए थे. रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा कमाई मेघालय के किसानों की है. यहां के किसान की हर महीने 29,348 रुपये कमाते है. दूसरे नंबर पर पंजाब है, जहां के किसान हर महीने 26,701 रूपए कमाते हैं.

लेकिन यहां कई राज्य ऐसे भी हैं जो देश के किसानों की औसत आय से कम कमाते हैं. ऐसे ही राज्यों में बिहार भी शामिल हैं जहां के किसान परिवारों की औसत मासिक आय देश के 27 राज्यों से कम है. यहां प्रत्येक किसान परिवार हर महीने औसतन 7,542 रुपए कमाता है. यानि देश के किसानो की औसत आय से 2,676 रूपए कम.

बिहार से केवल तीन राज्य पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिसा ही किसानों के आय के मामले में बिहार से पीछे हैं.

संसदीय रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि किसानों की औसत आय का 4,226 रुपये खर्च हो जाते हैं. किसान हर महीने 2,959 रुपये बुआई और उत्पादन पर तो 1,267 रुपये पशुपालन पर खर्च करता है. यानी, किसानों के पास मात्र 6 हजार रुपये के करीब ही बच पाता है.

कृषि विज्ञान केंद्र बनायेंगे दो मॉडल गांव

वर्ष 2017 में इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) ने घोषणा की थी कि हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) द्वारा दो गांवों को मॉडल के तौर पर विकसित किया जाएगा, ताकि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके.

30 मार्च 2020 को कृषि पर बनी स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया गया जिसमें बताय गया की किसानों की आय दोगुनी करने के लिए विभिन्न स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं. इसी रिपोर्ट में बताया गया कि 30 राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के 651 केवीके ने 1,416 गांवों को गोद लिया है. इन मॉडल गांवों को ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ नाम दिया गया है. इसके अलावा आईसीएआर (ICAR) से संबंद्ध अलग-अलग संस्थान भी कुछ मॉडल गांव पर काम कर रहे हैं.

मौजूदा समय में पूरे देश में 731 कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहा है. वहीं बिहार में 44 कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहा है.

क्या बिहार के किसानों की आय दोगुनी हुई है? इसपर जानकारी के लिए डेमोक्रेटिक चरखा ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पटना से जानकारी लेने का प्रयास किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

वहीं जिला कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत के सीनियर साइंटिस्ट डॉ बृजेंदु कुमार ने बताया

कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत के द्वारा बहुत सारे गांवों का चयन किया गया है. सरथा, चैनपुर, मुरारी, रूपसपुर, पोडई, गोकुलपुर, शेरपुर जैसे कुछ गांवों के नाम मै अभी बता सकता हूं. हमारे केंद्र द्वारा पुरे नालंदा जिले के अंदर आने वाले गांवो के किसानों की आय दोगुना करने का प्रयास किया जा रहा है. साल 2019 में हमने इन गांव का चयन किया था. किसानों का मुनाफा बढ़ाने के लिए प्रत्यक्षण (Demonstration) और प्रशिक्षण (Training) कार्यक्रम हम पिछले कई वर्षों से चला रहे हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, लखीसराय के डायरेक्टर शंभू रॉय ने कॉल उठाया लेकिन सवाल सुनने के बाद “मीटिंग में हैं" ऐसा कहकर कॉल काट दिया.

फसल लागत हो कम तभी होगा फायेदा 

नूरसराय ब्लॉक अंतर्गत सरगांव गांव के किसान सुनील कुमार बताते हैं

कृषि विज्ञान केंद्र से हमलोगों को कोई फ़ायदा नहीं है. किसान सलाहकार आते हैं थोरा बहुत बता देते हैं बस. गांव के कुछ किसान नाबार्ड से भी जुड़े हैं लेकिन कभी कोई ऋण नहीं मिला है. सरकार वादा करती है लेकिन सरकार यह भी तो देखे की पहले की तुलना में फसल लगाने का लागत जैसे- डीजल, खाद-बीज और दवाई का खर्चा इतना बढ़ गया है कि लाभ का तो पूछिए ही मत बस खाने के लिए बच जाता है वही बहुत है. किसानों की आमदनी कहां बढ़ी है बल्कि खर्च बढ़ गया है.

बिहार के किसान राज्य की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके बावजूद उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनकी आय बढ़ाने और उनकी आजीविका में सुधार करने की क्षमता को सीमित करता हैं.

आधुनिक कृषि तकनीकों की कमी, खराब बीज गुणवत्ता और सिंचाई के सीमित साधन के कारण किसानों को कम पैदावार से संतोष करना पड़ता है. ज्यादा लागत और कम पैदावार के परिणामस्वरूप किसानों की आय कम होती है. इसके अतिरिक्त, राज्य में कई किसान एक ही फसल पर निर्भर हैं.

किसानों के सामने एक और चुनौती सीमित बाजार पहुंच की है. खराब बुनियादी ढांचा और विपणन माध्यमों की कमी किसानों को अपनी फसल उचित मूल्य पर बेचने की उनकी क्षमता को सीमित कर देता है.

पूर्व कृषि मंत्री ने माना था विभागीय भ्रष्टाचार

बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने खुले मंच से कृषि विभाग के अधिकारियों को चोर बताया था. उन्होंने मंच से कहा था कि मेरे विभाग के अधिकारी चोर हैं. मैं चोरों का सरदार हूं. जिसके बाद में उन्हें कृषि मंत्री के पद से हटा दिया गया.

यकीन यहां एक बात गौर करने वाली है जब खुद कृषि मंत्री इस बात को कह रहा हो की अधिकारी भ्रष्ट हैं तो कृषि योजनाओं की सफलता और किसानों को उसका समुचित लाभ मिलने की कल्पना करना बिल्कुल असंभव है.

राज्य में अगर किसानों की आय दोगुनी करनी है तो सरकार को अपने भ्रष्ट अधिकारीयों को हटाना होगा और किसानों तक बेहतर बीज, उर्वरक और सिंचाई के माध्यम उपलब्ध कराने होंगे. किसानों तक आधुनिक कृषि तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को पहुंचाना होगा और उसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा.

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