धान ख़राब का मुआवज़ा ख़त्म, बिहार के किसानों को बड़ा नुकसान

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धान ख़राब का मुआवज़ा ख़त्म, बिहार के किसानों को बड़ा नुकसान
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जो किसान केवल खेती के सहारे अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं और पूर्ण रूप से खेती पर ही निर्भर है उनके लिए उनकी फसल खराब हो जाना एक बेहद दुखद एहसास जैसा है. ठीक ऐसा ही दुखद एहसास धान की खेती करने वाले किसानों की हो गई है. लगातार बारिश की वजह से इस वर्ष धान की खेती को बेहद नुकसान पहुंचा है जिससे इसकी खेती करने वाले किसानों की चिंता बढ़ गयी है.

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इस वर्ष किसानों को मौसम ने भी काफी औचक झटके दिए हैं जिससे फसलें खराब हुई है. बिहार के कई जगहों पर फसलों के खराब हो जाने से किसान चिंतित है. धान की फसल खराब होने की दो बड़ी वजहें है. एक तो मौसम और दूसरा खराब बीज. शुरुआत में किसानों को लगा था की धूप उनका साथ देगी लेकिन मौसम के औचक बदलाव से बेमौसम बारिश होने लगी जो किसानों के लिए एक सर दर्द बन गया. किसानों की माने तो मौसम साफ होने के भी आसार थे लेकिन मौसम ने इतनी जल्द करवट बदली और पूरी धान की फसल खराब हो गई.

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किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह हो जाती है फसलों के पकने के बाद यदि फसलें गीली हो गई तो समस्या और भी बढ़ जाती है और इस वर्ष ऐसा ही हुआ. फसल गीली हो जाने की वजह से किसानों को इसका अच्छा खासा खामियाजा भुगतना पड़ा.

कृषि विशेषज्ञों की माने तो लगभग सितंबर का महीना खत्म होते-होते यह मान लिया जाता है की वर्षा काल समाप्त हो चला है. लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को यह समस्या झेलनी पड़ रही है. मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष बिहार के कई इलाकों में 120 मिलीमीटर तक बारिश हुई है. जिसके कारण धान की फसलों पर असर पड़ा है.

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हालांकि बारिश की वजह से खराब हुई फसलों और किसानों के हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार अपने स्तर से किसानों को राहत देने के लिए कई जिलों में किसानों को मुआवजा भी देगी लेकिन एक शर्त है कि मुआवजा खेती के क्षेत्रफल और उसकी गुणवत्ता के हिसाब से दिया जाएगा. लेकिन सवाल है कि क्या इन मुआवजों से किसानों के वास्तविक निवेश का निपटान हो जाएगा होना संभव है?

केवल बिहार के किसानों की नहीं बल्कि अलग-अलग राज्यों में भी धान की खेती वाले करने वाले किसानों को यह समस्या झेलनी पड़ी है. जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार समेत कई और अन्य राज्यों में भी बारिश की वजह से फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है.

सबसे पहले बारिश ने खरीफ की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया. किसानों का कहना है कि धान की फसल कटकर पूरी तरह खेत में पड़ी है जो अब खराब होने की स्थिति में आ चुकी है. इसके अलावा आपको बता दें की रबी कि जिन फसलों को खेतों में बोया जा रहा है उन्हें भी काफी नुकसान पहुंचा है. फसलों को लेकर किसान बेहद परेशान नजर आ रहे हैं. खास तौर पर वैसे किसान जो पूरी तरह से अपनी खेती पर ही निर्भर है और इसी से अपनी आजीविका चलाते हैं. हां यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य सरकार अपने स्तर से किसानों की पूरी मदद कर रही है और उन्हें क्रॉप कंपनसेशन भी देने की योजना बना रही है. इसके लिए सरकार ने जिला और प्रखंड लेवल पर अफसरों को सर्वे करने का आदेश भी दिया है.

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दूसरी वजह धान की फसल के खराब होने की है. बीजों की गुणवत्ता की कालाबाजारी होती है. कई बीज माफिया ऐसे हैं जो बीजों की कालाबाजारी करते हैं और खराब क्वालिटी के बीजों की पैकेजिंग करके किसानों को उतने ही दाम में भेज देते हैं इससे उनका तो फायदा होता है. लेकिन उन बेचारे किसानों को नुकसान होता है जो इतने दाम पर बीज खरीदे जाने पर ठग के शिकार होते हैं.

उपर्युक्त दोनों कारणों के विषय में किसान नेता अशोक प्रसाद जी ने हमसे बात करते हुए बताया कि-

धान के किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ रहा है. इसकी दो बड़ी वजह है. सबसे पहली वर्तमान में किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज नहीं मिल पाते क्योंकि कई बीज माफिया ऐसे हैं जो बीजों का व्यापार करते हैं और उन्हें बेच देते हैं. इससे किसानों की खेती पर असर पड़ता है. बिहार सरकार के बीज निगम के अंदर भी ऐसे ही भ्रष्ट लोग बैठे हैं. बीज माफियाओं की ताकत तो इतनी ज्यादा है कि यह बड़े-बड़े अफसरों का तबादला तक करवा देते हैं. अभी कुछ दिनों पहले की घटना है कि बिहार के तत्कालीन कृषि मंत्री ने कहा कि विभाग में उनकी एक नहीं चलती. एक घटना का जिक्र बताता हूं हालत ऐसी है कि बेगूसराय के अंदर 257 पंचायत हैं और उस 257 पंचायत के 257 पैक्स भी हैं. बेगूसराय में कॉपरेटिव बैंक के द्वारा एक आम सभा बुलाई गई थी उस सभा में यह बात सर्वसम्मति से पास हो गया कि कॉपरेटिव बैंक के एमडी ने 48 लाख का घोटाला किया है. लेकिन उस एमडी ने अपने जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों को पैसे खिलाए जिसके बाद अधिकारियों ने आमसभा के फैसले को खत्म कर दिया. उसके बाद हम सभी लोग कोर्ट में गए जहां कोर्ट ने यह कहा कि किसी भी हाल में आमसभा के फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता. आमसभा को निर्णय लेने का पूरा हक है और यह सुप्रीम बॉडी है.

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केंद्र सरकार की योजना को भी राज्य सरकार ने कर दिया बंद

 फसल के बर्बाद हो जाने के बाद किसानों को राहत देने के लिए सरकार कई योजना भी लेकर आई है. सरकार की कई योजनाओं में से एक है पीएम फसल बीमा योजना जो खराब हो गई फसलों पर मुआवजा दिलवाती है. आमतौर पर किसानों को केवल खरीफ फसल पर ही नहीं बल्कि यदि उनकी कटी हुई फसल भी खराब हो गई है तो प्रभावित किसान बीमा को क्लेम कर सकते हैं.  प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लोगों को बेहद राहत मिली है जिसमें एक लाख तक का बीमा किसान करवा सकते हैं.

इस योजना से मिलने वाले लाभ की असल सच्चाई जानने के लिएभी हमने किसान नेता अशोक प्रसाद से बात की. उन्होंन बताया कि:-

पहले प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा चलाई गई इस योजना का लाभ किसानों को मिलता जरूर था. लेकिन अब बिहार सरकार ने इसे बंद कर दिया. बंद करने के पीछे कारण था कि इस बीमा योजना में आवेदन के लिए 14% का प्रीमियम करवाना पड़ता था. यदि बीमा 1 लाख का है तो 14000 किसानों को देना पड़ता था जिसमें 6000 केंद्र सरकार देती थी, 6000 राज्य सरकार देती थी और 2000 किसानों को अपनी जेब से देना पड़ता था. इस प्रकार 6000 एक बड़ी संख्या में देखा जाए तो एक बहुत बड़ी रकम थी जिसके मद्देनजर सरकार ने इसे बंद कर दिया और इसकी जगह पर फसल सहायता देने की बात कही. इससे किसानों का नुकसान ही है. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां उन्हें एक लाख बीमा के तौर पर मिलता था अब उन्हें केवल 25,000 ही मिलेगा. पूरे देश में प्रधानमंत्री किसान बीमा योजना लागू है लेकिन से बिहार ही एकमात्र राज्य है जहां इसे बंद कर दिया गया है.

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धान की खेती में लगती है बड़ी मेहनत

आपको बता दें कि धान की खेती कोई सरल काम नहीं है इसमें कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है हम आपको बताते हैं कि धान की खेती कितने मेहनत से की जाती है.

सबसे पहले कुछ विशेष तैयारियों की आवश्यकता में पड़ती है. सबसे पहले ऐसी भूमि की तैयारी कि जाती है जिस खेत को लगभग दो-तीन बार जोता गया. इसके अलावा धान के खेतों की मेड़बंदी की जाती है ताकि खेतों में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित रह सके. सबसे जरूरी, धान की प्रजातियों का भी चयन किया जाता है. बिहार के मौसम के अनुसार और सिंचित व असिंचित दिशाओं को ध्यान में रखते हुए हुए चयन किया जाता है.

प्रदेश की जलवायु, क्षेत्रों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भी धान के बीजों का चयन किया जाता है. आमतौर पर बिहार में नरेंद्र-118, शुष्क सम्राट मालवीय धान-2, पूसा 169, पंत धान-4, सरजू 52, पूसा बासमती-1, बल्ला बासमती, मालवीय सुगंध-105, नरेंद्र सुगंध स्वर्णा, महसूरी आदि प्रजातियों का प्रायः चुनाव किया जाता है. इसके बाद बीज की रोपाई की जाती है और उसमें उर्वरकों का संतुलित प्रयोग किया जाता है.

आमतौर पर उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी के परीक्षण के बाद ही किसान करते हैं. धान की खेती में जल प्रबंधन बेहद जरूरी है. धान की खेती में सबसे अधिक जल की आवश्यकता होती है. अगर आंकड़ों की बात की जाए तो देश में सिंचन क्षमता के उपलब्ध होते हुए भी केवल 60 से 62% क्षेत्र ही सिंचित हैं. यदि वर्षा के कारण पानी की कमी दिखाई देती है तो सिंचाई और भी ज्यादा आवश्यक हो जाती है.

धान के खेतों में कई बीमारियां भी हो जाती हैं. जैसे सफेद रोग, खैरा रोग, शीत लाइट, सफेदा रोग, भूरा धब्बा, जीवाणु झुलसा, जीवाणु धारी, नित्य खंडवा आदि बीमारियां हो जाती हैं.

इसलिए धान की फसलों की सुरक्षा बेहद जरूरी है. फसल में होने वाली बीमारियों से बचने के लिए कीटनाशकों जैसे दीमक, जड़ की सूड़ी, पत्ती लपेटक, सैनिक कीट, हिस्पा, बंका कीट, तना बेधक, हरा फूदका, गन्धी बग का प्रयोग किया जाता है.

क्या किसानों की स्थिति बेहतर हो पाएगी?

इस बात में कोई दो मत नहीं है कि धान के किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है. जिसमें प्राकृतिक वजह बन रहा मौसम किसी के नियंत्रण से बाहर है. लेकिन खराब बीजों की जो कालाबाजारी चल रही है उसे रोकने के लिए सरकार को ठोस कानून बनाकर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए. इसके साथ ही सरकारी योजनाओं को जरूरतमंद और प्रभावित किसानों तक पहुंचाने के लिए सरकार को सफल प्रयास करने की आवश्यकता है. कुछ मूल सुधार से यदि धान के किसानों की आय में वृद्धि होती है तो इससे राज्य के आर्थिक विकास में मदद मिलेगी.