बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति ख़राब, सालों से ख़ाली पड़े अस्पताल

author-image
Pallavi Kumari
Aug 08, 2023 12:44 IST
बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति ख़राब, सालों से ख़ाली पड़े अस्पताल

1 मई 2013 से शहरों की प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गयी थी. सामान्य तौर पर इस मिशन को शुरू करने का उद्देश्य शहरों में बसे स्लम बस्तियों, शहरों में रह रहे बेघर और गरीब लोगों को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना है.

publive-image

लेकिन बिना किसी प्रशिक्षित डॉक्टर, स्वास्थ्य उपकरण और पर्याप्त जगह के बेहतर स्वास्थ्य सेवा की उम्मीद करना बेमानी है.

शहरों के बीच बसे इन स्लम बस्तियों में बने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के मौजूदा हालात बेहतर नहीं है. ऐसा नहीं है कि इनमें सुधार नहीं किया गया है. लेकिन इस सुधार में निरंतरता नहीं रह पाती है.    

कमला नेहरु नगर स्थित शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति भी ऐसी ही है. इस स्वास्थ्य केंद्र में पिछले एक साल से डॉक्टर की नियुक्ति नहीं की गयी है. बिना डॉक्टर के चल रहे इस स्वास्थ्य केंद्र में मरीज आने से परहेज़ करते हैं.

डेमोक्रेटिक चरखा लगातार प्राथमिक स्तर की खराब स्वास्थ्य को लेकर आर्टिकल लिखता रहा रहा है. कैसे प्राथमिक और जिला स्तर के स्वास्थ्य केन्द्रों की खराब स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों को बड़े अस्पताल जाने के लिए मजबूर करती है.

publive-image

UPHC में पिछले एक साल से डॉक्टर मौजूद नहीं  

महागठबंधन बनाकर सरकार में आने वाली बिहार की पुरानी राजनीतिक पार्टी राजद, गरीबों और अल्पसंख्यकों की हिमायती मानी जाती है. राजद कार्यालय के पीछे स्थित कमला नेहरु नगर स्लम बस्ती, पटना की सबसे बड़ी स्लम बस्तियों में आती है. इस स्लम बस्ती में 15 हज़ार से अधिक गरीब और अल्पसंख्यक आबादी रहती है.

ज़ाहिर है इतनी बड़ी आबादी जब स्लम बस्ती में रहेगी तो उनकी स्वास्थ्य ज़रूरतें भी होंगी. खुले नाले के किनारे बसे इन बस्तियों में बीमारियों के फैलने का ख़तरा ज़्यादा होता है. क्योंकि आमतौर पर बस्तियों में साफ़-सफ़ाई को लेकर जागरूकता कम होती है.

शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कमला नेहरु नगर पिछले एक साल से केवल एएनएम(ANM) और लैब टेक्निशीयन के सहारे चल रहा है. डॉक्टर नहीं रहने के कारण बस्ती में रहने वाले लोग यहां इलाज कराने से परहेज़ करते हैं. मामूली से सर्दी-जुकाम के इलाज के लिए लोग पीएमसीएच या निजी अस्पताल जाने को मज़बूर हैं.

जबकि शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर रोगी को विभिन्न सुविधाएं मुफ़्त दी जानी चाहिए. जैसे- ओपीडी, मुफ़्त दवा वितरण, परिवार नियोजन, नियमित टीकाकरण, मधुमेह और बीपी जांच, परामर्श और रेफरल, मातृत्व और बाल स्वास्थ्य सेवाएं. साथ ही UPHC के द्वारा शहरी स्लम बस्तियों में स्वास्थ्य शिविर लगाये जाने का भी प्रावधान है.

अस्पताल के नजदीक रहने वाली रीता देवी की उम्र 55 के करीब है. रीता देवी कुछ दिन पहले बुख़ार से पीड़ित थी. रीता बताती हैं “घर के बगल में अस्पताल होते हुए भी, किसी काम का नहीं है. डॉक्टर नहीं है तो इलाज कौन करेगा. हालत पर दवाई तो दवा दुकान वाला भी दे देता है तो यहां क्यों जाएं. क्योंकि यहां कोई दवा भी मुफ्त में नहीं मिल पाता है.”

publive-image

डॉक्टर की नियुक्ति नहीं करना, सरकार की कमी: एएनएम  

हम दिन के 11:30 बजे के करीब स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे थे. उस वक्त वहां दो नर्स, एक लैब टेक्नीशियन और दो गार्ड मौजूद थे. लैब टेक्नीशियन प्रीतम कुमार बताते हैं “दो साल से ज़्यादा समय से मैं यहां काम कर रहा हूं. शुगर और बीपी की जांच करवाने कोई आता है तो कर देते हैं. सीबीसी मशीन भी यहां है लेकिन डॉक्टर नहीं होने के कारण उसका उपयोग नहीं हो रहा है.”

वहीं एएनएम खुशबू कुमारी यहां 2021 से पदास्थापित हैं. खुशबू कहती है कि उनलोगों को बिना डॉक्टर के यहां काम करने में समस्या होती है. बस्ती के लोगों का व्यव्हार भी इनलोगों के प्रति अच्छा नहीं होता है. कभी कभी तो लोग अभद्र बाते भी बोलकर चले जाते हैं.

डॉक्टर नहीं रहने के कारण इलाज करने में आने वाली परेशानियों के बारे में बताते हुए खुशबू कहती है “डॉक्टर नहीं रहने से बहुत परेशानी होता है. लोग ताना भी मारते हैं कि बस दिखावे के लिए अस्पताल खोले हुए है. लेकिन इसमें हमारी क्या गलती है. यह तो सरकार की गलती है, उनकी कमी है.”    

इस अस्पताल में डॉक्टर के साथ-साथ फार्मासिस्ट भी मौजूद नहीं है. अस्पताल कर्मी बताते हैं फार्मासिस्ट की नियुक्ति तो यहां पर है लेकिन उनकी ड्यूटी किसी अन्य जगह पर लगा दी गयी है.

इस अस्पताल में हर बुधवार को टीकाकरण और गुरुवार को आंख की जांच की जाती है. प्रत्येक गुरुवार को डॉक्टर आते हैं जो मरीज़ों के आंखों की जांच करते हैं.

पटना जिले यानि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों की बात की जाए तो यहां केवल 99 पीएचसी ही मौजूद हैं.

सिपाराडीह, चांदपुर बेला, पूर्वी और पश्चिमी लोहानीपुर, रुकनपुरा और पोस्टल पार्क स्थित UPHC में भी डॉक्टर मौजूद नहीं है.     

publive-image

बिहार में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 70% पद खाली

रूरल हेल्थ स्टैटिक्स 21-2022 के रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या अभी भी कम है. राज्य की अनुमानित शहरी जनसंख्या 1.53 करोड़ है. इस हिसाब से 307 पीएससी (PHC) होने चाहिए, लेकिन अभी 268 पीएचसी(PHC) ही मौजूद है. यानी अभी भी 13% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी बिहार के शहरी क्षेत्रों में है.

वहीं पीएचसी में 622 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं जिसमें से 335 डॉक्टर अभी कार्यरत हैं. यानि 287 डॉक्टरों के पद अभी भी खाली हैं. वहीं इन पीएचसी में 1340 एएनएम की आवश्यकता है. लेकिन इनके लिए केवल 526 पद ही स्वीकृत है. स्वीकृत पदों पर भी अभी केवल 395 एएनएम कार्यरत हैं. बाकि 945 पद अभी भी खाली हैं.

पीएचसी में 268 फार्मासिस्ट की ज़रूरत है. लेकिन इसके लिए 233 पदों की ही स्वीकृति मिली है. जिसमें आज भी 181 पद खाली हैं. लैब टेक्नीशियन के भी 159 पद खाली हैं.      

publive-image

जिला अस्पताल से पहले कोई भी सरकारी अस्पताल सुचारू नहीं

जिला अस्पताल जाने से पहले कोई भी बीमार व्यक्ति अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करवाना चाहता है. लेकिन नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र बेहतर नहीं होने के कारण लोगों को जिला अस्पतालों का रुख़ करना पड़ता है.

सरकार ने इसके लिए प्राथमिक उप-स्वास्थ्य केंद्र (5 हज़ार की आबादी पर होना चाहिए. साथ ही कम से कम दो मेडिकल स्टाफ़), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (30 हज़ार की आबादी पर होना चाहिए), शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (50 हज़ार की आबादी पर एक), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (80 हज़ार की आबादी पर एक) और इसके बाद जिला अस्पताल आता है.

लेकिन रूरल हेल्थ स्टैटिक्स 2022 से पता चलता है कि बिहार में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 70% पद खाली हैं. ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि इतनी बड़ी आबादी के स्वास्थ्य ज़रूरतों को कैसे पूरा किया जाएगा.

जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए 1485 पद स्वीकृत हैं जिसमें से 233 पद रिक्त है. जबकि अनुमंडल अस्पतालों में 1464 स्वीकृत पदों में से 942 ही पदों पर नियुक्ति हुई है और 522 पद खाली हैं.

विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के अतिरिक्त PHC और उप-केंद्रों में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं एवं सहायक नर्सिंग सहायकों की भी संख्या कम है.