कभी बहुतायत संख्या में तालाब होने के कारण दरभंगा शहर पूरे बिहार में विख्यात था. लेकिन आज इस शहर की स्थिति ऐसी हो गई है की गर्मी के दिनों में लोगों के घरों के चापाकल सूख जाते हैं. लोग बूंद-बूंद पानी के लिए भी तरसने लगते हैं.
तालाब कभी हमारे संस्कृति का हिस्सा हुआ करता था. तालाब हमारे ग्रामीण जीवन का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे बढ़ती जनसंख्या और उसकी बढ़ती जरूरत की पूर्ति के लिए हमने प्राकृतिक संसाधनों पर जरूरत से ज्यादा कब्जा करना शुरू कर दिया- नतीजा ‘जल संकट तो कभी बाढ़’.
ऐतिहासिक तौर पर दरभंगा तालाबों, नदियों और नालों का शहर रहा है. पश्चिम में बागमती और पूर्व और उत्तर में कमला नदी के बीच में बसे दरभंगा शहर में पुराने समय में 15 से ज्यादा सहायक नदियां बहा करती थीं.
लेकिन बाढ़ की आशंका के कारण इन नदियों को दरभंगा से पहले ही रोक दिया गया है. कमला और बागमती की नदियों के पानी को भी बाढ़ की आशंका के चलते दरभंगा से पहले बांध के जरिए रोक दिया गया जिसके चलते दरभंगा के दूसरे चौर, आहर, पाइन जैसे परंपरागत स्रोत भी सूख गए हैं जिसका असर भूजल स्तर पर पड़ा है.
दरभंगा शहर पिछले कुछ सालों से गर्मियों के मौसम में पानी की समस्या झेल रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह इलाके में भूजल के स्तर का अचानक से गिर जाना है. गर्मी के मौसम के मध्य में दरभंगा के शहरी इलाकों के करीब 75 फीसदी घरों के चापाकल पानी देना बंद कर देते हैं. वहीं स्थानीय लोगों का कहना है की कुछ चापाकलों में सुबह सुबह पानी जरूर आता है जो दिन चढ़ने के साथ ही सूखने लगता था.
पानी की किल्लत का सामना कर रहे दरभंगा शहर में कभी 300 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे. 1964 में प्रकाशित दरभंगा गजेटियर के मुताबिक दरभंगा शहर में कभी 350 से 400 से करीब तालाब मौजूद थे. लेकिन अब शहर में 100 से भी कम तालाब बचे हैं.
एमपी सिन्हा नदियों और उससे जुड़ी पारंपरिक जल स्रोतों के पुनरुद्धार के मुद्दे पर काम करते हैं. एमपी सिन्हा कहते हैं
सालों से नीति निर्माता ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद पानी के पारंपरिक स्रोतों- कुओं और तालाबों को अनदेखा करते आए हैं. और यही अनदेखी आगे चलकर इनके अतिक्रमण में बदलने लगी. ग्रामीण भी तालाब और कुओं जैसे सदियों पुराने पारंपरिक जल स्रोत को अस्वच्छ मानने लगे और सतही जल स्रोतों का उपयोग करने के बजाय भूजल निकालने के लिए हैंडपंप और अन्य तकनीकों की तरफ जाना उन्हें सही लग रहा है.
सिन्हा आगे कहते हैं,
गांव के लोगों में आज भी नदियों और तालाबों के लिए लोगों में सम्मान की भावना है. लेकिन प्रशासनिक पद पर बैठे अधिकारीयों की अनदेखी और मिलीभगत के कारण इनका कुछ लोगों द्वारा अतिक्रमण शुरू हो गया. आम लोगों ने भी इन तालाबों में कचरा डालना शुरू कर दिया और तालाबों की स्वच्छता धीरे धीरे समाप्त होने लगी.
उन्होंने आगे कहा,
तालाबों के जरिए जमीन में पानी का रिसाव हमारे तेजी से खत्म हो रहे भूजल भंडार को फिर से भरने का एकमात्र तरीका है. लेकिन सरकारी प्रयास तालाबों के पुनरुद्धार के लिए नाकाफी है. इसके लिए आमलोगों को चिंतन करना होगा क्योंकि पानी की समस्या जो अभी कुछ महीनों के लिए रहती है भविष्य में और विकराल हो सकती है.
मोतिहारी में तालाब के पुनरुद्धार के लिए आवाज उठाने वाले युवा मयंक कुमार बताते हैं
हमने बीते साल पुरानी तालाब पर हुए अतिक्रमण के लिए भूख हड़ताल किया था. कुछ लोग इस तालाब पर कब्जा करने का प्रयास कर रहे थे. हमलोगों ने तालाब किनारे चार दिनों तक भूख हड़ताल किया तब जाकर हम इसे बचा सके. लेकिन यह ऐसी समस्या है जिसमे बिना प्रशासनिक सहयोग के सफलता पाना मुमकिन नहीं है. वहीं तालाब पर अतिक्रमण या प्रदूषण की समस्या भी प्रशासनिक सहयोग के द्वारा ही किया जाता है.
तालाबों का गायब होना केवल ग्रामीण इलाकों की समस्या नहीं है. यह भविष्य में गांवों से निकलते हुए पूरे राज्य की समस्या बन जाएगी. तालाब ना केवल भूमिगत जल का संतुलन बनाने के लिए आवश्यक है. ये देश में पीने के पानी का प्राथमिक स्रोत भी हैं.
मोतिहारी के ही अविनाश कुमार बताते हैं
एक समय था जब गांव में तालाब के किनारे हमलोग बैठा करते थे. खेत औए जानवरों के लिए हमें पानी इन्ही तालाबों और पोखरों से मिल जाता था. लेकिन अब तालाब में पानी केवल बरसात में ही रहता है.
जल जीवन हरियाली मिशन से उम्मीद
बिहार सरकार द्वारा पर्यावरण को संतुलित रखने एंव प्रकृति में हरियाली बनाए रखने के उद्देश्य से साल 2019 में जल जीवन हरियाली योजना को शुरू किया गया था. शुरुआत में योजना को तीन साल के लिए लाया गया था लेकिन अब इसे 3 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है. यानि अब इस अभियान को 2024-25 तक संचालित किया जाएगा.
जल जीवन हरियाली मिशन बिहार सरकार के वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार 1,95,037 (आहार, पईन, तालाब, पोखर) मौजूद हैं. जिनमें 18,350 जल श्रोतों पर अतिक्रमण है. वहीं 71,663 जल श्रोतों को अभी पुनर्निर्माण की आवश्यकता है.
जल जीवन हरियाली मिशन बिहार सरकार के वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार दरभंगा में 8,587 (आहार, पईन, तालाब, पोखर) जल श्रोत मौजूद हैं जिनमें से 812 श्रोतों पर अतिक्रमण किया हुआ है, जिनमें 87 पर पक्का और 372 पर कच्चा अतिक्रमण किया गया है. वहीं 2,294 जल श्रोत ऐसे हैं जिन्हें अभी पुनर्निर्माण की आवश्यकता है.
जल जींवन हरियाली अभियान के ऊपर बिहार सरकार 2022-23 से 2024-25 तक कुल 12568.97 करोड़ रूपए खर्च करने का अनुमानित लक्ष्य रखा गया है. 2022-23 से 2024-25 तक जल जीवन हरियाली मिशन पर 37.38 करोड़ रूपए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है.
अविनाश साहनी दरभंगा के वार्ड संख्या 40 के रहने वाले हैं. वर्तमान में अविनाश की मां पूनम देवी वार्ड 40 की पार्षद हैं. अविनाश का वार्ड 40 दरभंगा का क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा वार्ड हैं. यहां वोटरों की संख्या सात हजार के करीब है. इतनी बड़ी आबादी वाले इस वार्ड में ‘नल जल योजना’ का लाभ अभी तक नहीं पहुंचा है. इतनी बड़ी आबादी पानी के लिए सरकारी चापाकल पर निर्भर है. पानी का समस्या अभी से ही होने लगा है. दिनभर महिलाएं पानी के लिए सरकारी चापाकल पर निर्भर रहती हैं.
गर्मी क्या अभी ही हमारे घरों के चापाकल सूख गए हैं. बहुत प्रयास करने के बाद चापाकल से पानी आता है. गर्मी के मौसम में तो वो भी बंद हो जाएगा.
ये कहना है अविनाश साहनी का.
वर्तमान में दरभंगा शहर में तालाबों की संख्या और उसकी स्थिति क्या है इसपर जानकारी के लिए डेमोक्रेटिक चरखा ने दरभंगा जिला विकास कमिश्नर (DDC) अमृषा बैंस से बात की.
अमृषा बैंस ने बताया कि
दरभंगा शहर या नगर निगम में आने वाले तालाबों के रखरखाव का जिम्मा नगर निगम के ऊपर हैं. इसलिए इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है की शहर में कितने तालाब हैं. लेकिन जिले में तालाबों की संख्या आपको जल जीवन हरियाली पोर्टल पर मिल जाएगा. ग्रामीण इलाकों के तालाबों या पोखरों का जीर्णोधार जल जीवन हरियाली मिशन के तहत किया जा रहा है.
दरभंगा नगर निगम आयुक्त से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनके द्वारा हमारे कॉल का जवाब नहीं दिया गया.