भारत में व्यवस्थित विवाहों की अवधारणा नई नहीं है बल्कि यह परंपरागत रूप से की जाती है। लेकिन मौजूदा समय वैवाहिक विज्ञापनों का चलन है इंटरनेट के विकास के साथ ही इन विवाहों का एक हिस्सा ऑनलाइन स्थानांतरित हो चुका है लेकिन अभी भी समाचार पत्रों में वैवाहिक विज्ञापनों को बाहर करने का व्यवसाय समाप्त नहीं हुआ है। एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 93 फ़ीसदी विवाह अभी भी व्यवस्थित होते हैं और इनमें से अधिकांश विवाह प्रतिगामी वैवाहिक विज्ञापन का परिणाम है।
वैवाहिक विज्ञापन में जातिवाद
अधिकतर वैवाहिक विज्ञापन जातिवादी होते हैं कुछ समय पहले एक विज्ञापन ने इंटरनेट पर खलबली मचा दी थी। यह विज्ञापन डॉ अभिनव कुमार का वैवाहिक विज्ञापन था जो कि भागलपुर बिहार के एक दंत चिकित्सक है। दरअसल इस विज्ञापन में अभिनव कुमार जो उस दौरान बेरोजगार थे एक बहुत ही निष्पक्ष सुंदर पत्नी की तलाश कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए लंबी मांगों की सूची बताई तथा विज्ञापन के शीर्षक में ब्राह्मण को हाइलाइट किया। इस विज्ञापन में कई तरह के बिंदुओं को उजागर किया गया जो कि निम्नलिखित है:
- इसमें विज्ञापनदाता एक अमीर और कामकाजी पत्नी की इच्छा रखते हैं हालांकि वे खुद ही बेरोजगार है।
- वे संभावित दुल्हन में विशेष शारिरिक उपस्थिति की उम्मीदें भी करते हैं।
- वे न केवल एक सुंदर पत्नी की उम्मीद करते हैं बल्कि वह निष्पक्ष पत्नी की भी आशा करते हैं।
- वे चाहते हैं कि उनकी पत्नी दयालु हो।
- विज्ञापन के अनुसार दुल्हन में मातृत्व गुण और बच्चों की परवरिश क्षमता होनी चाहिए।
प्रतिगामी वैवाहिक विज्ञापन की आवश्यकता के प्रकार
इस तरह के वैवाहिक विज्ञापन प्रतिगामी इसलिए हैं क्योंकि इनमें गलत जातिवादी था और रूढ़िवादिता देखी जाती है। आइए इन विज्ञापनों की आवश्यकता के प्रकारों पर नजर डालें-
- निष्पक्ष और सुंदर पत्नी की आवश्यकता
इस तरह के विज्ञापनों में बहुत ही सुंदर महिला की तलाश की जाती है तथा अधिक इनमें महिलाओं की त्वचा के रंग को सुंदरता के साथ देखा जाता है। इस तरह के 25 प्रतिशत विज्ञापन महिलाओं के भौतिक विशेषताओं पर बल देते हैं जिनमें ऊंचाई, त्वचा का रंग शामिल होता है। वहीं इस में 11 प्रतिशत वे विज्ञापन शामिल है जो दूल्हे की चाहत रखते हैं। अध्ययनों से पता चलता है साल 2018 में मार्केटिंग के लिए वैवाहिक विज्ञापनों में 16 फीसदी ने महिलाओं की त्वचा के रंग का उल्लेख किया।
- मातृत्व गुण
जिस तरह इस विज्ञापन में बच्चों को बड़ा करने के एक विशेषज्ञ की आवश्यकता पर बल दिया जाता है। उसी तरह अधिकतर विज्ञापनों में मातृत्व गुण की आवश्यकता पर बल दिया जाता है। ऐसे सवाल उठता है कि क्यों आखिर महिलाओं को एक बच्चे की परवरिश के लिए जिम्मेदार माना जाता है? क्या उसमें पिता की भागीदारी की आवश्यकता नहीं होती।
- एक अच्छा रसोईया
विज्ञापन में दूल्हा महिला की खाना पकाने की गुणवत्ता को महत्व देता है जिसे ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाओं को इस गुण के साथ ही पैदा होना अनिवार्य है लेकिन खाना बनाना और सफाई करना जीवन कौशल है तथा इसमें सभी को भागीदारी लेनी चाहिए इनमें केवल महिलाओं की जिम्मेदारी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।