भोजपुरी में भिखारी ठाकुर के बाद अब रिमोट से लहंगा उठाने वाले गीतकार

एक तपका भोजपुरी से अश्लीलता हटाने की कोशिश कर रहा है, तो वही दूसरा रिमोट से लहंगा उठाने जैसी सामग्री बेच रहा है. सोशल मीडिया भी इसे बढ़ावा दे रहा है.

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भिखारी ठाकुर के बाद अब भोजपुरी संगीत

भिखारी ठाकुर के बाद अब भोजपुरी संगीत

जब भी किसी चीज का व्यवसायीकरण होता है तो वह भ्रष्ट हो जाती है. भले ही वह शिक्षा हो, विकास या फिर फिल्में. इन सब में व्यवसाय आने के बाद इसे बेचने के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है. जिसका परिणाम एक बड़े समाज को झेलना पड़ता है. फिल्मों के बारे में कहा जाता है कि यह समाज का आईना है. इसी आईने को हमारा ही समाज अश्लील और फूहड़ बना रहा है. खासकर भोजपुरी सिनेमा जगत इससे ज्यादा प्रभावित है. हालांकि अंग्रेजी और हिंदी में भोजपुरी से ज्यादा फुहड़ता है, मगर वह समृद्ध समाज की चादर में अश्लीलता को छिपा लेता है. भोजपुरी समाज को अनपढ़, गरीब और पिछड़ा मानकर इसे शोषित किया जा रहा है. फिल्मों और गानों के जरिए भी इस समाज से जुड़े परंपरा को कलंकित किया जा रहा है.

भोजपुरी की समृद्ध भाषा परंपराओं और कुरीतियों को एक साथ लेकर चलती है. जहां भोजपुरी भाषा में परंपरागत गीत, संगीत और फिल्में है. तो वही कुरीतियों पर प्रहार करने वाले नाटक, कहानी, लोकगीत इत्यादि मशहूर है. राज्य के पलायन जैसे गंभीर मुद्दों पर भी भोजपुरी में कई रचनाएं मिलती हैं. बिहार की यह समृद्ध भाषा 2011 की जनगणना के मुताबिक 5.6 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है. मगर देश में छठे स्थान पर बोली जाने वाली भोजपुरी अपने आप को बेदाग करने की लड़ाई में फंसी हुई है.

हाल में ही सोशल मीडिया पर भोजपुरी गानों-फिल्मों को लेकर एक व्यंग्यात्मक वीडियो साझा किया जा रहा है. जिसमें व्यंग के तरीके से भोजपुरी में रची बसी अश्लीलता को पेश किया गया. इस वीडियो को देखते हुए कई बार खुद से भी सवाल करने का ख्याल आता है. वीडियो में अधिक पढ़े-लिखे होने के कारण भोजपुरी भाषा को पहचानने, बोलने और स्वीकारने से लोग मना कर देते हैं, इसपर भी प्रहार किया गया है. दरअसल बाहर रहने और वहां के इलीट क्लब में शामिल होने के लिए पुरानी परंपराओं से लोग कन्नी काट लेते हैं.

भोजपुरी गानों और फिल्मों में जिस तरह से महिलाओं का अश्लील चित्रण किया जा रहा है, वह पितृसत्तात्मक समाज की सोच पर सोचने को मजबूर कर देता है. भोजपुरी गानों में महिलाओं के कपड़े और उनपर असहज शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, वह पूरी तरह से असहज महसूस कराता है.

इन दागों के बीच समय-समय पर भोजपुरी भाषा को मान्यता देने की आवाज सांसदों में उठी है. दशकों से इस भाषा को पहचान दिलाने के लिए जद्दोजहद चल रही है. मगर जहां एक तपका भोजपुरी से अश्लीलता हटाने की कोशिश कर रहा है, तो वही दूसरा रिमोट से लहंगा उठाने जैसी सामग्री बेच रहा है. सोशल मीडिया भी इसे बढ़ावा दे रहा है. आजकल हर हाथ में मोबाइल और इंटरनेट पहुंच चुका है, जिस कारण धड़ल्ले से भोजपुरी के अश्लील गीत-संगीतों को साझा किया जा रहा है. मगर इसी सोशल मीडिया के जरिए भोजपुरी का दूसरा साफ-सुथरा और परंपरागत गीत संगीतों भी समाज में जगह बनाने की कोशिश कर रहा है.

इस भाषा को फिर से उसकी असल पहचान दिलाने के लिए भिखारी ठाकुर जैसे महान कलाकार वापस नहीं आ सकते हैं. ऐसे में मौजूदा भोजपुरी कलाकारों को ही अपनी कलम से महिलाओं के साफ चित्रण को पेश करना होगा.

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