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लाडली पटना में एक डांस क्लास चलती हैं. क्लास से घर लौटते समय उनके साथ एक अजीब सी घटना घटी. घर जाते समय उनको एक व्यक्ति ने अजीब तरह से छुआ, विरोध करने पर वो व्यक्ति वहां से भाग गया. इस घटना से ये साफ़ ज़ाहिर होता है की बिहार में महिलाएं अभी भी सुरक्षित नहीं हैं.इस विषय पर जब हमने लाडली से बात की तो उन्होंने बताया कि “ मैं जब घर आ रही थी तभी रास्ते में एक लड़के ने मेरा दुपट्टा खींचा और गलत तरह का छुआ जब मैंने उससे पकड़ने की कोशिश की तो वो भाग गया और ये सिर्फ़ एक घटना नहीं है. अगर पार्टी करने जाओ तो लोग ऐसे देखते हैं की जैसे मैंने कोई अपराध किया हो.” लाडली आगे बताती हैं कि
“ सरकार ने बहुत से कानून बनाए होंगे लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई भी कानून मदद नहीं करता. राह चलते हमें छेड़ दिया जाता है छू दिया जाता है और प्रशासन भी कुछ नहीं करती. अगर शाम से वक्त बाहर निकलो और ऐसी घटना हो तो प्रशासन कहती है की ये लड़कियों के बाहर निकलने का वक्त थोड़ी है.”
बढ़ते अपराध और सहमी हुई बेटियां
बचपन से सिखाया जाता है कि लड़कियों को सावधान रहना चाहिए, लेकिन यह कब सिखाया जाएगा कि लड़कों को सही रास्ते पर चलना चाहिए?बिहार और पूरे भारत में महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों की बढ़ती संख्या सिर्फ़ आंकड़ों का खेल नहीं है, यह उन असंख्य मासूम जिंदगियों की दास्तान है जो हर दिन दर्द, डर और अन्याय सहने को मजबूर हैं. हर रोज़ किसी न किसी कोने से ऐसी खबरें आती हैं, जो दिल दहला देती हैं. सवाल यह है कि आखिर कब तक? कब तक बेटियां सुरक्षित महसूस करने के लिए डर के साये में जिएंगी? कब तक समाज चुप रहेगा?
बिहार में महिलाओं की सुरक्षा: आंकड़े सब बयां कर देते हैं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में प्रतिदिन चार महिलाओं के साथ बलात्कार होता है. 2020 में जनवरी से सितंबर तक 1,106 घटनाएं दर्ज की गईं, जो बिहार में महिलाओं की सुरक्षा की भयावह तस्वीर पेश करती है. 2021 में महिलाओं के खिलाफ 17,950 अपराध दर्ज हुए, जबकि 2020 में यह संख्या 15,359 थी. 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 20,222 हो गया.
यानी हर साल महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा बढ़ रही है, लेकिन अपराधियों के हौसले कम नहीं हो रहे. बिहार में 2021 में दहेज हत्या के 1,000 मामले दर्ज किए गए. यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश के बाद देश में सबसे ज़्यादा था. महिलाओं के अपहरण के 8,684 मामले, दहेज प्रताड़ना के 3,367 मामले, पोक्सो के तहत 1,561 केस और घरेलू हिंसा के 2,069 मामले दर्ज किए गए. ये आंकड़े सिर्फ़ रिपोर्ट किए गए मामलों के हैं, हकीकत इससे कहीं ज़्यादा भयावह है.
पंचायत ने बलात्कार की कीमत लगाई: इंसाफ या तमाचा?
सहरसा के महिषी थाना क्षेत्र की घटना ने पूरे समाज को शर्मसार कर दिया. 14 साल की नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ, लेकिन समाज ने उसे न्याय दिलाने के बजाय उसकी इज्जत की कीमत लगा दी—1.11 लाख रुपये! यह कैसा इंसाफ है जहां अपराधी खुलेआम घूम रहा था और पीड़िता की चुप्पी खरीदने की कोशिश की गई? पंचायतों की यह सोच आज भी समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शाती है. जब आरोपी ने जुर्माना देने से इनकार कर दिया, तब जाकर पीड़िता को पुलिस के पास न्याय मांगने जाना पड़ा. क्या यह वही भारत है जहां ‘नारी तू नारायणी’ कहकर स्त्रियों को पूजा जाता है?
छह साल की मासूम के साथ दरिंदगी
दरभंगा के कुशेश्वरस्थान में एक छह साल की मासूम बच्ची के साथ जो हुआ, वह रूह कंपा देने वाला था. एक 50 साल के व्यक्ति ने उसे जबरन उठाया, सुनसान जगह पर ले गया और उसकी मासूमियत को रौंद डाला. जब तक बच्ची घर नहीं लौटी, तब तक माता-पिता खोजबीन करते रहे. और जब बच्ची मिली, तो वह खून से लथपथ थी. इस समाज के लिए इससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता है कि आज मासूम बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं?
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध: सरकारें क्या कर रही हैं?
सरकारें महिलाओं की सुरक्षा के बड़े-बड़े वादे करती हैं. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘निर्भया फंड’, ‘महिला हेल्पलाइन’ जैसी योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन जब अपराधों के आंकड़े हर साल बढ़ते जाते हैं, तो यह साफ हो जाता है कि ये योजनाएं ज़मीन पर कितना प्रभावी हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किए गए. यानी औसतन हर घंटे 51 महिलाओं पर हमला हुआ.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के मुताबिक, भारत में 15-49 साल की एक तिहाई महिलाएं किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार हुई हैं. बिहार घरेलू हिंसा के मामलों में कर्नाटक के बाद दूसरे स्थान पर है. यह साबित करता है कि केवल कड़े कानून बना देने से अपराध नहीं रुकेंगे, जब तक कि समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी.
कानून तो हैं, लेकिन क्या वे प्रभावी हैं?
हमारे देश में बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए कई कड़े कानून हैं. पोक्सो एक्ट, निर्भया एक्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट जैसी व्यवस्थाएं बनाई गई हैं, लेकिन इसके बावजूद दोषसिद्धि दर महज़ 27-28% है. यानी जिन 100 बलात्कार मामलों की शिकायत दर्ज होती है, उनमें से केवल 27-28 मामलों में ही सजा मिलती है. यह बताता है कि या तो पुलिस अपनी भूमिका सही से नहीं निभा रही, या फिर न्यायिक प्रक्रिया इतनी धीमी है कि अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं.
शताक्षी से जब हमने महिलाओं के साथ हो रहे अपराध पर बात की तो उन्होंने अपनी आप बीती बताई कि “ सबसे ज़्यादा परेशानी हमें सार्वजनिक परिवहन में होती है. मैं एक बार ट्रेन से घर जा रही थी तभी एक बूढ़े व्यक्ति जिनकी उम्र 50-60 वर्ष की होगी उन्होंने मुझे गलत तरह से छुआ. यहां तक कि ऑटो रिक्शा से सफ़र करने में डर लगता है. बचपन में जो मेरे साथ हुआ वो मैं किसी को नहीं बता सकती लेकिन अब मैं अपने लिए आवाज़ उठाती हूं और मैं हर लड़कियों से कहूंगी की अगर आपके साथ ऐसी घटना हो तो अपने लिए आवाज़ उठाएं.”
समाज को बदलना होगा, सरकार को सख्ती दिखानी होगी
महिला सुरक्षा सिर्फ़ सरकार का विषय नहीं है, यह पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है. हमें अपनी बेटियों को सिर्फ़ 'सावधान' रहना नहीं सिखाना चाहिए, बल्कि बेटों को भी यह सिखाना चाहिए कि महिलाओं की इज़्ज़त कैसे की जाती है.
- फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ाई जाए, ताकि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिले.
- पुलिस सुधार हो, पुलिस को महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए.
- महिला सुरक्षा फंड सही तरीके से इस्तेमाल हो ‘निर्भया फंड’ जैसी योजनाएं ज़मीन पर लागू हों, न कि फाइलों में दबकर रह जाएं.
- स्कूलों में जेंडर सेंसिटिविटी की शिक्षा दी जाए, ताकि बच्चों को छोटी उम्र से ही सही और गलत का फर्क समझाया जा सके.
- सख्त कानूनों को प्रभावी बनाया जाए, निर्भया कांड के बाद कानून सख्त हुए, लेकिन अपराध रुके नहीं. इसका मतलब है कि क्रियान्वयन में कमी है.
क्या छोटे कपड़े पहनना है अपराध का कारण या फिर गलत मानसिकता
जब भी महिलाओं के साथ कोई अपराध की घटना होती है तो सबसे पहले सवाल उठता है उनके कपड़ों पर. लेकिन क्या सच में छोटे कपड़े पहनने से अपराध में वृद्धि होती है या फिर यह गलत मानसिकता है. लाडली बताती हैं कि “ अगर हमारे छोटे कपड़े पहनने से अपराध होता है तो उन छोटी बच्चियां का क्या, क्या उनके कपड़े भी लोगों को रिझाते हैं? यह एक गिरी हुई मानसिकता है की छोटे कपड़े पहनने से अपराध होता है.”
तनु बताती हैं कि “ हमारे यहां तो फिर भी उतने छोटे कपड़े नहीं पहने जाते , बाहर तो और छोटे कपड़े पहनते हैं लेकिन वहां अपराध दर कम क्यों है. सबसे अहम बात है यहां के लोगों को मानसिकता जो कपड़ों पर सवाल उठाते हैं.”
अब डर नहीं, बदलाव चाहिए
भारत की हर महिला, हर बेटी आज एक सवाल कर रही है – "क्या हमें सुरक्षित माहौल कभी मिलेगा?" यह सवाल सिर्फ़ सरकारों से नहीं, बल्कि पूरे समाज से भी है. अगर हम अब भी नहीं बदले, तो न जाने कितनी और मासूम बच्चियां, बेटियां और बहनें इस अमानवीयता का शिकार होंगी.
अब समय आ गया है कि हम एकजुट होकर अपराधियों के खिलाफ़ खड़े हों, महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दें और यह सुनिश्चित करें कि बिहार और पूरे भारत की महिलाएं बिना डर के अपने सपनों को पूरा कर सकें.