बीते कुछ वर्षों में देश में पत्रकारों पर सरकार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दबाव बढ़ा है. सरकार या उसके बनाए नियमों की आलोचना करने पर पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है. उन पर जानलेवा हमले हो रहे हैं. उन्हें फ़र्जी आरोपों के आधार पर गिरफ़्तार किया जा रहा है.
किसान आंदोलन, सीएए कानून विरोध और दिल्ली दंगों की रिपोर्टिंग के दौरान कई संस्थानों के पत्रकार पर मुकदमे दर्ज किये गए और कईयों को गिरफ्तार भी किया गया था. स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया, दी वायर के प्रमुख सिद्धार्थ वरदराजन, ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर, राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों पर राजद्रोह, दंगा भड़काने और गलत न्यूज फैलाने जैसे आरोप लगाए जा चुके हैं.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने साल 2021 में 37 नेताओं की लिस्ट जारी की थी जो मीडिया पर अंकुश लगा रहे थे उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे.
CPJ (Committee to Protect Journalists) पत्रकारों पर हो रहे हमले के आंकड़ों को भी इकठ्ठा करता है. लेकिन CPJ जैसी संस्था से भी बिहार के ग्रामीण पत्रकारों अक्सर नज़रंदाज़ हो जाते हैं. बिहार के ग्रामीण पत्रकारों पर होने वाले हमले पिछले 10 सालों में काफ़ी बढ़े हैं. लेकिन ग्रामीण पत्रकारों पर हमले की ख़बरें अक्सर दब जाती है.
शराब और बालू माफ़िया की रिपोर्टिंग मतलब ज़िन्दगी ख़त्म
इसी वर्ष 26 जून को मुज़फ्फ़रपुर जिले के माड़ीपुर चौक क्षेत्र में एक 40 वर्षीय पत्रकार शिव शंकर झा की गला रेतकर हत्या कर दी. हत्या के पीछे शराब माफ़िया का हाथ बताया जा रहा है. हालांकि पुलिस इस हत्या के पीछे पैसे की लेनदेन और शराब माफ़िया दोनों एंगल से जांच कर रही है.
यह पहली बार नहीं था जब शराब माफ़िया ने किसी पत्रकार की हत्या की हो. मई 2022 में बेगूसराय जिले के बखरी प्रखंड में एक 26 वर्षीय युवा पत्रकार सुभाष कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. इस हत्याकांड के पीछे भी शराब माफ़िया का हाथ बताया गया था. सुभाष कुमार स्थानीय वेब मीडिया संस्थान में रिपोर्टर थे और लगातर शराब और बालू माफ़िया के ख़िलाफ़ रिपोर्ट बना रहे थे.
राज्य में बीते एक दशक में दर्जनों हमले और हत्याकांड की घटनाएं हो चुकी हैं.
न्याय मिलने का लंबा इंतज़ार
बिहार में पत्रकारों की हत्या की ख़बर कोई नई बात नहीं है. बिना किसी सुरक्षा इंतज़ाम के स्थानीय पत्रकार जोखिम उठाकर शराब, बालू या इन जैसी दूसरी मुनाफ़ाखोरी वाले व्यवसायों में हो रही धांधली की रिपोर्टिंग करते हैं. लगातार रिपोर्ट्स बनाने के कारण ये पत्रकार इन माफ़िया संचालकों की नज़र में आ जाते हैं.
साल में 2016 में सीवान जिले में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान अख़बार के पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड का मामला इसका एक उदहारण मात्र है. राजदेव क्राइम बीट की खबरें लिखा करते थे. कहा जाता है उनकी हत्या दिवंगत राजद नेता शहाबुद्दीन के इशारे पर हुई थी.
इस मामले में अब तक दोषियों को सज़ा नहीं मिल पाई है. जबकि मामले की जांच सीबीआई कर रही है. अक्टूबर 2023 में इस मामले की मुख्य गवाह बादामी देवी की मृत्यु हो गयी है. यही वही बदामी देवी हैं जिसे सीबीआई ने डेढ़ साल पहले की मृत घोषित कर दिया था. बाद में परिजनों बदामी को कोर्ट में हाज़िर किया जिसके बाद सीबीआई की बड़ी चूक सबके सामने आई थी.
राजदेव हत्याकांड को बीते आठ साल गुजर चुके हैं पर पत्रकारों के न्याय और सुरक्षा की स्थिति जस की तस बनी हुई है. इस अन्तराल में कई स्थानीय पत्रकारों की हत्या हुई जिसमें पुलिस ने आपसी रंजिश, प्रेम प्रसंग तो कहीं पैसे के लेनदेन का मामला दर्ज कर, जांच के एंगल बदल दिया.
2021 में मधुबनी जिले के रहने वाले अविनाश झा हत्या मामले में भी पुलिस ने प्रेम-प्रसंग की बात कही. जबकि परिजन और स्थानीय लोग हत्या का कारण अवैध नर्सिंग होम पर रिपोर्टिंग को मानते हैं. दरअसल, अविनाश अपनी रिपोर्ट के माध्यम से जिले में संचालित निजी नर्सिंग होम्स में चल रही धांधली का ख़ुलासा कर रहे थे. अपने आख़िरी फ़ेसबुक पोस्ट में भी उन्होंने नर्सिंग होम्स को लेकर बड़े ख़ुलासे की बात कही थी. लेकिन उससे पहले ही उनकी हत्या हो गयी.
बिहार के पत्रकारों के पास नहीं है सुरक्षा का कोई उपाय
राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा की बात की जाए तो वह शून्य है. पत्रकारों को ना तो प्रशासन की तरफ़ से और ना ही मीडिया संस्थान की तरफ़ से कोई सुरक्षा प्रदान किया जाता है. जिसके कारण संगीन विषयों पर ग्राउंड रिपोर्ट्स बनाना समय के साथ जोख़िम भरा काम बन गया है.
राजदेव रंजन, अविनाश झा, सुभाष कुमार और इनके जैसे अनगिनत स्थानीय पत्रकार जो सत्ता गठजोड़ में पनप रहे अपराध, अवैध शराब बिक्री, अवैध बालू खनन और भू-माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ रिपोर्ट बना रहे थे, अपराधियों के शिकार बन गए.
अगस्त 2023 में अररिया जिले के रहने वाले विमल यादव की हत्या अपराधियों ने उनके घर में घुसकर कर दी. विमल कुमार स्थानीय अख़बार में काम करते थे. घटना के बाद कहा गया कि उनकी हत्या गवाह बनने के कारण की गयी. 2019 में विमल के बड़े भाई की हत्या हुई थी. विमल यादव इस मामले में मुख्य गवाह थे. इसी कारण अपराधियों ने घर में घुसकर विमल को गोलियों से छलनी कर दिया.
ऐसे में प्रश्न उठता है जब बिहार पुलिस हत्या जैसे संगीन अपराध के मामले में मुख्य गवाह को सुरक्षा देने में सक्षम नहीं है तो वह सामान्य नागरिकों की सुरक्षा कैसे करेगी?