केयर एज की रिपोर्ट में सबसे नीचे बिहार पर एक तहकीकात

CARE Edge रिपोर्ट 2025 में बिहार को 17 बड़े राज्यों में सबसे निचले पायदान पर रखा गया है. स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, बैंकिंग और अधोसंरचना जैसे हर पैमाने पर पिछड़ा बिहार.

author-image
आमिर अब्बास
New Update
फैक्ट्री में काम करते मजदूर

पटना से चलकर जब मैं मधुबनी के पंडौल ब्लॉक के एक गांव पहुंचा, तो गांव के बाहर एक टूटी हुई ईंटों की पटरी पर एक बुजुर्ग बैठे मिले. पूछने पर बोले— "अखबार में पढ़ले रहीं कि बिहार सबसे पीछे है. अब हम तो रोज देखेनी, एमे का नया बात बा?"

उनके चेहरे पर न मायूसी थी, न गुस्सा. मानो 'पीछे' होना अब आदत में शुमार हो चुका हो.

कुछ यही ताजा रिपोर्ट में भी सामने आया है.

बीते हफ्ते ग्लोबल रेटिंग एजेंसी CARE Edge ने एक रिपोर्ट जारी की — भारत के 17 बड़े राज्यों के सामाजिक और आर्थिक विकास का तुलनात्मक अध्ययन. इस रिपोर्ट में बिहार 17 में 17वें पायदान पर है. यानी सबसे नीचे.

इस रिपोर्ट ने बिहार के उस ज़मीनी सच को फिर सामने ला दिया है, जिस पर न तो सत्ताधारी दल ज्यादा बात करना चाहता है, न विपक्ष के पास कोई ठोस विकल्प है.

लेकिन आंकड़ों के बीच असली कहानी क्या है? क्या यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है, या जमीन पर बुनियादी हकीकत भी इतनी ही खराब है?
डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने बिहार के अलग-अलग जिलों के गांवों और कस्बों में जाकर लोगों से बात की — यही है इस ग्राउंड रिपोर्ट की असली धड़कन.

बिहार सबसे पीछे क्यों? रिपोर्ट के आंकड़ों की पड़ताल

CARE Edge रिपोर्ट कहती है कि:

  • कंपोजिट स्कोर में बिहार का स्कोर सिर्फ 34.8
    (17 में से 17वें नंबर पर)

  • स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और गरीबी के पैमानों में सबसे निचले पायदान पर

  • बैंकिंग सेवाओं, कर्ज की सुगमता, सरकारी खर्च की गुणवत्ता में खराब स्थिति

  • राजकोषीय अनुशासन के मामले में सिर्फ पंजाब से बेहतर

यानी अगर कोई पैमाना उठाकर देखें — स्वास्थ्य हो, शिक्षा हो, या नौकरी— हर जगह बिहार सबसे पीछे.

पर क्या यह कहानी सिर्फ आंकड़ों में है? या गांव-गांव में भी लोग यही झेल रहे हैं?

शिक्षा: ईंट के बिना इमारत कैसे बनेगी?

दरभंगा जिले के एक सरकारी स्कूल में गया. क्लास 5 की छात्रा पूजा कुमारी से पूछा—"बिहार का नाम सबसे नीचे आया है, जानती हो क्यों?"

वो बोली— "हमार स्कूल में मास्टरनी कभी-कभार ही आवेली. किताब नइखे. बोर्ड पर लिखे खातिर खड़िया ले आइल जाला."

पूजा के स्कूल में शौचालय नहीं है. लड़कियां स्कूल छोड़ने लगी हैं. रिपोर्ट में भी यही बात आई— शिक्षा के मामले में बिहार का स्कोर सबसे नीचे. सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढांचे का घोर अभाव. कई स्कूलों में तो बेंच तक नहीं हैं. शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं.

बिहार के सरकारी स्कूल की दयनीय स्थिति: भविष्य से खिलवाड़

पढ़ाई का स्तर क्या है?

ASER रिपोर्ट (2023) बताती है कि कक्षा 5 के बच्चों में से केवल 30% ही कक्षा 2 का पाठ पढ़ सकते हैं.

इसका असर क्या है? हर साल हज़ारों बच्चे इंटरमीडिएट के बाद बाहर चले जाते हैं, क्योंकि आगे उच्च शिक्षा के मौके गांव-कस्बों में नहीं मिलते.

स्वास्थ्य: 'अस्पताल है, डॉक्टर नहीं' की कहानी

गया के बेलागंज ब्लॉक में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र. वहां एक महिला — रेखा देवी — अपने पांच साल के बीमार बेटे को लेकर आई थीं. रेखा बोलीं— "पिछले दो दिन से डॉक्टर नइखे. कंपाउंडर बोला पटना जाएं. हम गरीब लोग पटना कैसे जाइब?"

स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल कुछ ऐसा ही है. रिपोर्ट में भी बिहार इस सेक्टर में सबसे नीचे है.

NHFS-5 के मुताबिक:

  • बिहार में केवल 35% महिलाएं ही संस्थागत प्रसव कराती हैं.

  • डॉक्टरों की भारी कमी है.

  • जिला अस्पतालों में उपकरण पुराने हैं या खराब.

कोविड के दौर ने तो पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी थी. पटना के बड़े अस्पतालों में ही ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लाइनें लगी थीं.

बढ़ता बजट, बिगड़ता स्वास्थ्य: राजधानी पटना के खस्ताहाल UPHC की कहानी

रोज़गार: पढ़ाई करके भी मजदूरी

पश्चिम चंपारण के एक गांव में एक बीए पास युवक मिला — रमेश ठाकुर. पूछा— "क्या कर रहे हो?" बोला— "सिविल सेवा की तैयारी कर रहे थे. लेकिन अब मज़दूरी करते हैं."

बिहार के ग्रामीण इलाकों में यही हकीकत है. रोज़गार का घोर संकट है.

CARE Edge रिपोर्ट के अनुसार— आर्थिक विकास के मामले में बिहार सबसे निचले 3 राज्यों में.
रोजगार सृजन के अवसर न के बराबर.

बिहार में:

  • MSME सेक्टर ठप पड़ा है.

  • निवेश प्रस्ताव आते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में नहीं बदलते.

यही कारण है कि हर साल लाखों युवा दिल्ली, मुंबई, पंजाब, हरियाणा के खेतों में मजदूरी करने चले जाते हैं. रेलवे स्टेशनों पर छठ, होली के बाद इनकी भीड़ साफ दिखाई देती है.

फूटपाथी दुकानदार का रोजगार खत्म होने की कगार पर है

बैंकिंग और वित्तीय समावेशन: खातों में पैसे तो आए, पर उपयोग?

प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत लाखों खाते तो खुले. पर असली सवाल है— उनमें पैसा कितना है?

शेखपुरा जिले के एक गांव में महिलाएं बोलीं— "खाता त खुल गयल बा. लेकिन बैंक के लाइन में दिन भर लगब त कौन काम करी?"

रिपोर्ट कहती है:

  • बैंकिंग सेवा की पहुंच अब भी बहुत कमजोर.

  • डिजिटल लेन-देन का इस्तेमाल सीमित.

  • कर्ज की उपलब्धता कठिन.

इसका असर है— ग्रामीण अर्थव्यवस्था नकद पर ही चलती है. सूदखोर महाजनों का बोलबाला है.

अधोसंरचना: सड़कों से आगे की कहानी

पटना में सड़कों की बात तो होती है. लेकिन गया, कटिहार, सहरसा जैसे जिलों में गांवों तक पक्की सड़कों का जाल नहीं पहुंचा है.

रिपोर्ट बताती है:

  • अधोसंरचना के विकास में बिहार पिछड़ा है.

  • बिजली के कनेक्शन बढ़े, लेकिन आपूर्ति अनियमित.

  • औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर न के बराबर.

यह निवेशकों के लिए भी बड़ी बाधा है.

क्यों पिछड़ रहा है बिहार? विशेषज्ञों की नजर

पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री डॉ. अरुण कुमार कहते हैं:

"नीति और नीयत दोनों की कमी है. हर चुनाव में सिर्फ वादे होते हैं, जमीनी अमल नहीं."

राजनीतिक विश्लेषक नीरज कुमार का मानना है:
"बिहार में जातिगत राजनीति ने विकास के मुद्दों को पीछे धकेल दिया है. स्वास्थ्य, शिक्षा पर निवेश बढ़ेगा तभी रिपोर्ट के आंकड़े बदलेंगे."

सरकार क्या कहती है?

बिहार सरकार के योजना एवं विकास मंत्री बिजेंद्र यादव का बयान रिपोर्ट में छपा है:
"हमें पता है बिहार एक पिछड़ा राज्य है. इसे सुधारने में वक्त लगेगा. कई योजनाएं चल रही हैं." पर ज़मीनी हकीकत यह है कि योजनाओं के ऐलान होते हैं, पर अमल में भारी कमी है. बजट का बड़ा हिस्सा खर्च ही नहीं हो पाता.