भारत में मौजूदा समय में शिक्षा का अधिकार हर बच्चे को मिला है. अनिवार्य शिक्षा भारत में सरकार द्वारा लागू की गई है. सरकार द्वारा समय-समय पर शिक्षा के क्षेत्र में कई बदलाव लाए जाते हैं, जिसमें कई बार नीतियों और नियमों को भी शामिल किया जाता है. लेकिन देश में मौजूदा समय में शिक्षा बस रोजगार पाने का जरिया बन चुकी है. जिस कारण इसे चुनाव में भी सबसे ज्यादा भुनाया जाता है. शिक्षा और रोजगार को लेकर कई चुनावी वादे पार्टियां करती हैं. जाहिर है शिक्षा के उभरते महत्व को इन्होंने भांप लिया है.
आज के समय में शिक्षा राजनीतिकरण के अलावा बाजारीकरण का भी शिकार हो चुकी है. देश के हर राज्य में शिक्षा का हब बनाने के लिए बड़ा बाजार तैयार किया गया है. जिसमें दिल्ली का मुखर्जी नगर, राजस्थान का कोटा, महाराष्ट्र का पुणे, बिहार का पटना शामिल है. शिक्षा के इस बाजारीकरण को ऐसे समझा जा सकता है कि जैसे बिहार का लिट्टी चोखा खाने में मशहूर है, वैसे ही दिल्ली का मुखर्जी नगर सिविल सर्विसेज कोचिंग के लिए विख्यात है. हर तरह के शिक्षा के लिए देश में अलग-अलग बाजार मौजूद है, जहां शिक्षा माफियाओं के द्वारा धड़ल्ले से व्यापार चलता है. आज की चक्का चौंध शिक्षा को गांव से जमीन बेचकर पढ़ने वाला एक मजदूर वर्ग भी खरीदने को मजबूर है. वादा सिर्फ शिक्षा से एक अच्छे रोजगार की गारंटी.
देश में हर कोई अच्छे शिक्षा, अच्छे रोजगार की चाहत में इस बाजार का रुख करता है. जहां पहले से तैयार माफिया द्वारा इन्हें दबोच लिया जाता है.
देश में सरकारी शिक्षा अब सड़कों पर चोट खाती हुई नजर आती है. जिसे खुद सरकार द्वारा ही नजरअंदाज किया जाता है. सरकार के द्वारा प्राइवेट संस्थानों को बढ़ोतरी और तवज्जो देने के कारण सरकारी संस्थाओं के ऊपर से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है. देश में अमूमन बड़े नेताओं और राजनेताओं के बच्चों को प्राइवेट संस्थानों में पढ़ते या विदेश में पढ़ाई करते हुए देखा गया है. जिससे देश के शिक्षा गुणवत्ता पर सरकार खुद सवाल उठाने को मजबूर कर रही है. सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाओं के कारण इसे अब बस गरीब तबके के लोगों तक सीमित होते देखा जा रहा है. मौजूदा समय में गरीब भी प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों की शिक्षा करने के लिए एडी रगड़ रहा है. देश के लचर शिक्षा व्यवस्था को बॉलीवुड ने भी दर्शाने की कोशिश की है, हिंदी मीडियम और अंग्रेजी मीडियम जैसी फिल्मों को देखकर शिक्षा के बाजारीकरण को समझा जा सकता है.
हालांकि भारत में शिक्षा शुरुआत से ही व्यवसाय का हिस्सा नहीं रही है. पहले देश में शिक्षा ज्ञान वृद्धि का एक जरिया रही है. मगर समय के साथ और सरकार की अनदेखी के कारण, शिक्षकों की मिलीभगत से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का माहौल बिगड़ता जा रहा है. आज के दौर में शिक्षक पढ़ाने को व्यवसाय और छात्र पढ़ने को बस एक रोजगार का जरिया समझ बैठें हैं. इसी व्यवसायीकरण और रोजगार का फायदा बीच की कड़ियां उठा रही है.
मौजूदा समय में हर गली, मोहल्ले, सोसाइटी में प्राइवेट कोचिंग सेंटर, ट्यूशंस खुल गए हैं. इसके अलावा ऑनलाइन कोचिंग सेंटरों की भी भरमार हो गई है. जहां से कई झूठे-सच्चे दावे खुल्लम-खुल्ला होते हैं और बच्चों के शिक्षा की सौदेबाजी होती है. निजी संस्थाओं के खोखले वादों में अभिभावक और छात्र दोनों आ जाते हैं. शिक्षा से कोसों दूर रहे लोग भी शिक्षण संस्थानों को खोलकर पैसों का अंबार लग रहे हैं. मगर इस बाजारीकरण और व्यापार को फलने-फूलने में किसका बड़ा हाथ है, यह विचार का विषय है. यह सरकार की चूक है या फिर हमारी शिक्षा प्रणाली अब बच्चों को शिक्षित करने में विफल है?