देश की दूसरी दलित लोकसभा स्पीकर: मीरा कुमार

15वीं लोकसभा में कुमार को देश की पहली महिला स्पीकर के तौर पर चुना गया. 2009 से 2014 तक दलित मीरा कुमार ने लोकसभा में स्पीकर के तौर पर सेवाएं दी. 

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मीरा कुमार

मीरा कुमार

बिहार की राजनीति में कुछ महिलाएं ही उभर कर शीर्ष तक पहुंची हैं, जिसमें एक बड़ा नाम पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार हैं. पूर्व उप प्रधानमंत्री और दलितों के बड़े नेता जगजीवन राम की बेटी देश की पहली महिला लोकसभा स्पीकर रह चुकी हैं. मगर राजनीतिक परिवार से आने के बावजूद मीरा कुमार शुरू से राजनीति में नहीं उतरी थीं. यहां तक की राजनीतिक विरासत संभालने की जिम्मेदारी बेटा सुरेश राम को दी जाने वाली थी, मगर वह विवादों में घिर गए. उस वक्त मीरा कुमार भी अपनी नौकरी में व्यस्त थी. मगर बाद में राजनीति में आई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बिहार के भोज्पुत जिले में बाबू जगजीवन राम और इंद्राणी देवी के घर 31 मार्च 1945 को मीरा कुमार का जन्म हुआ. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा देहरादून के वेल्ज्ञम गर्ल्स स्कूल और महारानी गायत्री देवी गर्ल्स स्कूल जयपुर से पूरी की. आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के मिरांडा हाउस और इंद्रप्रस्थ कॉलेज में उन्होंने नामांकन लिया. यहां से उन्होंने कानून में ग्रेजुएशन और इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की. कुमार पढ़ाई में मेधावी थी और इसी के चलते उन्होंने भारतीय विदेश सेवा(IFS) में योगदान दिया. 1973 में उनका चयन IFS में हुआ. स्पेन, मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम में वह उच्चायुक्त के पद पर रहीं, लेकिन विदेश में मन नहीं लगा. आखिरकार एक दशक तक नौकरी करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ी और पिता की तरह पूरी राजनीति में उतर गई.

उन्होंने पहली बार साल 1985 में बिजनौर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा मगर हार गई. फिर उसी सीट पर उपचुनाव में एकबार फिर कांग्रेस के टिकट पर मीरा कुमार उतरी और जीत हासिल की. इस चुनाव में उनकी जीत ने खूब सुर्खियां बटोरी थी. विदेश से लौटी एक पूर्व IFS अफसर ने तब दो बड़े दलित नेताओं को हराया था. लोकदल के दलित नेता के तौर पर उभर रहे रामविलास पासवान और मायावती को चुनाव में शिकस्त दी थी. इस चुनाव में जीतने के बाद धीरे-धीरे करके मीरा कुमार राजनीति में बुलंदियों की सीढ़ियां पर चढ़ती गई. वह पांच बार दिल्ली की करोल बाग सीट से सांसद बनी, फिर 2004 के चुनाव में बिहार की सासाराम सीट से लोकसभा चुनाव जीत कर केंद्रीय मंत्री के पद पर बैठी. उन्होंने 2004 से 2009 तक केंद्र में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का काम संभाला. इसके बाद 2009 में तीन दिन के लिए जल संसाधन मंत्री बनीं. साल 2009 में मीरा कुमार ने सासाराम सीट से फिर जीत हासिल की, इसके बाद उन्हें पहले जल संसाधन मंत्रालय सौंपा गया. लेकिन कांग्रेस ने उनके लिए कुछ और ही बड़ा फैसला ले रखा था. इसके बाद उन्हें जल संसाधन मंत्रालय से इस्तीफा दिलवाया गया और वह लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनी गईं. 15वीं लोकसभा में कुमार को देश की पहली महिला स्पीकर के तौर पर चुना गया. 2009 से 2014 तक दलित कुमार ने लोकसभा में स्पीकर के तौर पर सेवाएं दी. 

मृदुभाषी मीरा कुमार जीएमसी बालायोगी के बाद दूसरी दलित स्पीकर बनीं.

मीरा कुमार की छवि राजनीति में ऐसी थी कि वर्ष 2017 में उन्हें राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया था. संयुक्त विपक्ष ने कुमार को मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के खिलाफ प्रत्याशी बनाया था. देश के राष्ट्रपति पद के लिए किसी प्रमुख दल द्वारा नामित होने वाली कुमार दूसरी महिला बनीं. कहते हैं कि राजीव गांधी ने ही इस IFS अधिकारी को अपने पिता की विरासत संभालने के लिए मनाया था. आखिर वह नेहरू-गांधी परिवार की बात कैसे टाल सकती थी, उनका इस परिवार से बचपन से नाता था.

मीरा कुमार ने 1968 में हाईकोर्ट के अधिवक्ता मंजुल कुमार से अंतरजातीय शादी की. वह खेल की भी शौकीन रहीं हैं, उन्होंने निशानेबाजी और घुड़सवारी में कई मेडल अपने नाम किए हैं. इसके अलावा वह कविता लिखने और पढ़ने का भी शौक रखती हैं. 

राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते हुए मीरा कुमार कई बार हार से भी रूबरू हुई हैं. साल 1989 में बिजनौर सीट के चुनाव में वह हार गईं थीं. अपने पिता की परंपरागत सीट सासाराम में भी उन्हें हार झेलनी पड़ी थी. इसके बाद 1991 में भी उन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा. 1999 में दिल्ली की करोल बाग सीट पर वह भाजपा उम्मीदवार से हार गईं थीं. 2014 और 2019 में भी उन्हें मोदी लहर में सासाराम सीट से हार का सामना करना पड़ा है.

5 साल स्पीकर का पद संभालने के बाद उन्होंने राजनीति से ही विदाई ले ली. उनके परिवार की राजनीतिक विरासत को अब बेटे अंशुल अविजीत आगे बढ़ा रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बिहार के पटना लोकसभा सीट से कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था, हालांकि वह चुनाव में हार गए थे.

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