एससी/एसटी आरक्षण के लिए आज देश को बंद किया गया. इस बंद के दौरान सड़कों पर संगठनों के कई कार्यकर्ताओं ने हाथों में बड़े पोस्टर-बैनर और सर पर कफन बांधकर मार्च में निकले. इन्हें देखकर ऐसा लगा मानों जी-जान एक करके सुप्रीम कोर्ट को आज ही फैसला लेने पर मजबूर कर देंगे. विरोध मार्च में यह पुलिस की लाठियों को फैसला बदलने की राह में एक रोड़ा मानकर झेलते गए. आज के व्यापक प्रदर्शन ने दिखा दिया की एकजुटता आज के समय में भी मौजूद है.
क्रीमी लेयर के आरक्षण का विरोध सबसे ज्यादा बिहार में देखा गया. जहां राजनीतिक पार्टियों ने भी इसका खूब समर्थन दिया. एक केंद्रीय मंत्री भी इस मामले पर कोर्ट के विचारों के खिलाफ दिखे. वही विपक्ष तो हर सरकार विरोधी मुद्दे को भुनाने की कोशिश में रहता है.
जिस तरीके से आरक्षण का यह पुरजोर विरोध बस एक सीमित समुदाय तक रहा, वैसे ही कोलकाता मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर की रेप और हत्या के मामले में बस डोक्टरों तक सीमित रहा. आज जहां भारत बंद रहा तो वहीं रेप मामले में लोगों की बोलती बंद रही. जो लोग इसपर बोल रहे हैं वह बिना सोचे-समझे बयान दे रहे है. कोलकाता में हुई भयावह घटना पर डॉक्टरों की हड़ताल के बीच ममता सरकार भी विरोध मार्च में शामिल रहीं. देश के कोने कोने में अमूमन महिलाओं, कुछ एक गिने चुने पुरुषों और डॉक्टरों के द्वारा प्रोटेस्ट हुए. इस विरोध मार्च में भी एकजुटता थी. सोशल मीडिया के जरिए आम आदमी भी इसमें शामिल रहे. दुख जताते, अपनी सोच से फैसल सुनाते, रेप समस्या को जड़ से खत्म करने और आरोपियों की सजा का सुझाव दे रहे हैं. इस डिजिटलाइजेशन के दौर में प्रोटेस्ट ऑनलाइन ही आयोजित हो तो ज्यादा सही है. सड़कों पर प्रदर्शनकारी पुलिस की लाठियों के शिकार होते है. वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया पर ज्यादा भरोसा करते हैं, ऐसे में हर तरह की चीजों के लिए डिजिटलाइजेशन को प्रमोट करना ही बेहतर है, चाहे वह प्रदर्शन ही क्यों ना हो.