बिहार की जन वितरण प्रणाली (PDS) के डीलरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल का रास्ता चुना है. यह हड़ताल सिर्फ़ सरकारी नीतियों के खिलाफ़ एक विरोध नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की पीड़ा की गूंज है, जो वर्षों से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. सरकार की अनदेखी, अधिकारियों की दबावपूर्ण रणनीतियाँ, और डीलरों की आर्थिक तंगी – यह सब मिलकर इस हड़ताल को जन-आंदोलन में तब्दील कर चुका है.
PDS डीलर: सेवा या संघर्ष?
PDS डीलर सिर्फ़ खाद्यान्न वितरक नहीं हैं, बल्कि वे लाखों गरीबों के लिए अन्नदाता की भूमिका निभाते हैं. सरकार के निर्देशानुसार, वे हर महीने गरीबों को राशन उपलब्ध कराते हैं, जिससे समाज के वंचित तबके को राहत मिलती है. लेकिन क्या सरकार इन डीलरों के अधिकारों और समस्याओं की सुध ले रही है?
55,000 से अधिक PDS डीलर पूरे बिहार में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. सरकार उनकी बात नहीं सुन रही, और डीलर भी अब झुकने को तैयार नहीं. हालत यह है कि गरीब जनता राशन के लिए तरस रही है, और डीलर अपनी जीविका के संकट से जूझ रहे हैं.
"हम दूसरों का पेट भरते हैं, लेकिन हमारे बच्चे भूखे हैं"
रोहतास जिले के PDS डीलर नितेश पांडे की आँखों में आंसू छलक आते हैं जब वे बताते हैं,
"सरकार हमसे उम्मीद करती है कि हम गरीबों को राशन दें, लेकिन हमें जो मिलता है, वह हमारे परिवार के लिए पर्याप्त नहीं. हम भी इंसान हैं, हमारे भी बच्चे हैं. जब सरकार अन्य राज्यों में डीलरों को मानदेय देती है, तो हमें क्यों नहीं?"
सरकार से उनकी माँगें कुछ असाधारण नहीं हैं – वे बस इतना चाहते हैं कि उन्हें भी एक स्थायी मानदेय मिले, जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें. झारखंड में 140 रुपये प्रति क्विंटल कमीशन मिलता है, गुजरात और राजस्थान में PDS डीलरों को मासिक वेतन दिया जाता है, लेकिन बिहार में उन्हें सिर्फ़ 90 रुपये प्रति क्विंटल मिलता है, जो किसी भी हाल में पर्याप्त नहीं है.
बिहार के अलग अलग जिला में प्रदर्शन
हड़ताल का असर राज्यभर में साफ़ दिख रहा है. गोपालगंज से लेकर फारबिसगंज तक, हर जिले में डीलर अनशन पर बैठे हैं. पटना के गर्दनीबाग में 20 जनवरी से अम्बिका यादव भूख हड़ताल पर बैठे हैं, लेकिन सरकार ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की. अम्बिका यादव से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि “ सरकार हमें 90 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से देती है यानी कि 90 पैसे प्रति किलो . ऐसे में हमें घर चलाने में काफ़ी समस्या होती है. हमारा भी परिवार हैं लेकिन सरकार हमारी मांगों को अनदेखा कर रही है. लेकिन हमने भी ठान लिया है की अगर इस बार सरकार ने हमारी बात नहीं मानी तो ये हड़ताल और बड़ा भी हो सकता है.”
आम नागरिकों को भी हो रही समस्या
सैकड़ों गरीब परिवार, जो सिर्फ़ PDS राशन पर निर्भर थे, अब खाली हाथ घर लौट रहे हैं.बिहार के 9 करोड़ से अधिक उपभोक्ता इस संकट से प्रभावित हो रहे हैं. गरीबों के घरों में चूल्हे ठंडे पड़ गए हैं. जो लोग रोज कमाते और खाते हैं, उनके लिए यह हड़ताल मौत जैसी स्थिति पैदा कर रही है.
"हम क्या करें? सरकार सुन नहीं रही, और डीलर राशन नहीं दे रहे. हमारे पास खाने को कुछ नहीं है. डीलर की मांग को सरकारी जल्द पूरी करे ताकि हमारे घर में भी चूल्हा जल सके” ये कहते कहते शारदा देवी की आँखें नम हो गई. शारदा देवी पटना में अकेले रहती हैं. अकेले रहने के कारण वो पूरी तरह PDS पर निर्भर हैं. हड़ताल के कारण उनकी समस्या भी बढ़ते जा रही है.
सरकार की बेरुखी और डीलरों का गुस्सा
सरकार बार-बार आश्वासन तो देती है, लेकिन ठोस कदम उठाने से पीछे हट रही है. पिछले 10 वर्षों से PDS डीलर अपनी माँगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ़ वादे ही मिले. इस बार वे आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं.
पालीगंज के नन्द कुमार बताते हैं कि "हमारे पास अब कोई चारा नहीं बचा है. सरकार दबाव बनाने के लिए लाइसेंस रद्द करने की धमकी देती है, लेकिन हम डरने वाले नहीं. अगर हमारी माँगे पूरी नहीं हुईं, तो विधानसभा चुनाव में इसका जवाब देंगे. हमारी मुख्य 5 मांगे हैं, वैसे तो अलग अलग टुकड़ों की अलग अलग मांगे थी लेकिन अब एक जगह मिलकर मुख्य 5 मांगे हैं हमारी.”
PDS डीलरों की प्रमुख मांगें
1) एसएफ्सी गोदाम से बिचौलियों पर पूर्ण प्रतिबंध करते हुए विक्रेता के गोदाम तक बैग के वजन के साथ अनाज का पूर्ण वजन मिलना चाहिए.
2) कंट्रोल नियम 2001 लागू करना.
3) जन वितरण विक्रेता के द्वारा केंद्र के संचालन के लिए दुकान का किराया और दुकान से जुड़ी स्टेशनरी और बाकी व्यवस्थाओं से जुड़ी वस्तुओं के लिए सरकार द्वारा एक उचित राशि प्रदान की जाए
4) पोस मशीन से जुड़ी किसी भी समस्या या मरम्मत के लिए विक्रेता के राशि मिलना चाहिए.
5) सरकार द्वारा जन वितरण विक्रेताओं को दुकान संचालक करने के कार्य के लिए कम से कम ₹30000 प्रति माह मानदेय दिया जाए.
"हम भी इंसान हैं, हमारी भी जरूरतें हैं"
पालीगंज के योगेंद्र कहते हैं कि "सरकार हमें गुलाम समझती है. हमें राशन देने का आदेश मिलता है, लेकिन हमें खुद भूखे रहने की नौबत आ गई है. मेरे परिवार में 4 लोग हैं, 90 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसा मिलता है जिसके वजह से घर का गुज़ारा करना मुश्किल होता जा रहा है. पिछले कई वर्षों से हमने सरकार से आवेदन किया है की हमें भी मानदेय दे हमारा भी परिवार है लेकिन आज तक हमें बस गुलाम ही समझा जा रहा है.”
क्या सरकार करेगी समाधान?
सरकार को चाहिए कि वह हड़ताली डीलरों से तत्काल वार्ता करे. यह सिर्फ़ डीलरों की लड़ाई नहीं, बल्कि गरीब उपभोक्ताओं की भी लड़ाई है. अगर समय रहते समाधान नहीं निकला, तो यह हड़ताल और गंभीर रूप ले सकती है. 90 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से कमीशन मिलता है डीलर को जो सच में कम है ऐसे में लोगों को घर चलाना मुश्किल होता साफ़ दिख रहा है. सरकार को चाहिए की इस विषय कर गंभीरता से सोचे और संज्ञान ले.