धरमन बाई: तलवारबाजी और तोप में निपुण तवायफ, स्वतंत्रता संग्राम में हुई शहीद

धरमन बाई नृत्य और गायकी के साथ तोप और तलवारबाजी में भी निपुण थीं. उन्होंने अंग्रेजों के साथ युद्ध में कुंवर सिंह के साथ कई लड़ाइयां लड़ी. जरूरत पड़ने पर उन्होंने कुंवर सिंह को आर्थिक सहायता भी दी.

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धरमन बाई

1857 का आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहला आंदोलन हुआ. इस विद्रोह में बिहार के आरा से नायक बाबू वीर कुंवर सिंह थे, जिनकी शौर्य और पराक्रम के चर्चे आज तक हर जुबान पर मौजूद है. आरा, जगदीशपुर और आसपास में इस क्रांतिकारी योद्धा को लोग अपना बल और गौरव मानते हैं. बाबू वीर कुंवर सिंह ने अपनी छोटी रियासत की सेना के बलबूते पर आरा से लेकर रोहतास, कानपुर, लखनऊ, रीवा, बांदा और आजमगढ़ तक अंग्रेजी सेनाओं के छक्के छुड़ाएं. मगर आज के इस लेख में बाबू कुंवर सिंह की वीरता की चर्चा नहीं, बल्कि उनकी प्रेमिका और मशहूर तवायफ धरमन बाई के वीरता की चर्चा है.

धरमन बाई आरा की मशहूर तवायफ थी. जिनके नृत्य को देखने के लिए काशी, मगध के जमींदार से लेकर बड़े अंग्रेज अफसर भी जुटते थे. इनमें कुंवर सिंह का भी नाम शामिल था. वह भी धरमन बाई और करमन बाई बहनों की महफिल में नृत्य देखने आते थे. कहा जाता है कि धरमन बाई और कुंवर सिंह के बीच में गहरा प्रेम था. मगर एक तवायफ और मुस्लिम महिला होने के कारण उनकी कहानी को इतिहासकारों ने दबा दिया गया. 

इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का भी योगदान अतुलनीय है. महिलाओं ने हर कदम पर बढ़-चढ़कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, जिसमें झांसी की रानी से लेकर बेगम हजरत महल तक का नाम शामिल है. इनमें तवायफों का योगदान भी गिना जाता है. आर्थिक योगदान से लेकर रणनीति बनाने तक में तवायफों की भूमिका बेमिसाल रही है. वीरांगना धरमन बाई भी इसमें शामिल हैं. वह पेशे से भले ही एक तवायफ हो मगर उनकी रणनीतिक और कूटनीतिक तरीकों के बाबू कुंवर सिंह भी कायल थे.

धरमन बाई नृत्य और गायकी के साथ तोप और तलवारबाजी में भी निपुण थीं. उन्होंने अंग्रेजों के साथ युद्ध में कुंवर सिंह के साथ कई लड़ाइयां लड़ी. जरूरत पड़ने पर उन्होंने कुंवर सिंह को आर्थिक सहायता भी दी.

बाबू कुंवर सिंह ने गया के जमींदार राजा फतह नारायण सिंह की बेटी सकलनाथो से शादी की थी. मगर प्रेम धरमन बाई से किया. इसकी खबर रानी तक भी पहुंची. कहते हैं कि रानी ने एक बार धरमन बाई और बाबू कुंवर सिंह को महल बुलाया और धरमन बाई को एक तवायफ से जगदीशपुर की रानी का दर्जा दिया.

आजमगढ़ को आजाद कराने में धरमन बाई ने युद्ध अभियान में भाग लिया. उत्तर प्रदेश के कालपी के पास अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध करते हुए धरमन बाई को वीरगति प्राप्त हुई. कहते हैं कि उन्होंने कुंवर सिंह की गोद में ही आखरी सांस ली. उनकी शहादत के बाद बाबू कुंवर सिंह भी ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकें. उत्तर प्रदेश के बलिया के पास अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए उन्हें हाथ में गोली लग गई. तब गंगा पार करते हुए जहर फैलने के डर से उन्होंने अपना हाथ काट कर गंगा में डाल दिया. 26 अप्रैल 1858 को जमशेदपुर में उनका निधन हो गया.

धरमन बाई के नाम पर आरा शहर में धरमन चौक और उनकी बहन करमन बाई के नाम पर करमन टोला है. जगदीशपुर में दोनों बहनों के नाम पर दो मस्जिद का कुंवर सिंह ने निर्माण कराया.

courtesan in Indian freedom Dharaman Bai