दिव्यांग व्यक्तियों का 'प्रचार' होता है लेकिन उनके अधिकार नहीं मिलते

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद बिहार तीसरा ऐसा राज्य है जहां विकलांगों की संख्या सबसे अधिक है. विकलांगों की 8.69% आबादी बिहार में हैं. इसमें  8.98% पुरुष और 8.13% महिला है.

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दिव्यांग व्यक्तियों का 'प्रचार'

दिव्यांगजनों के प्रति अपनी भावना व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं “हम अपने दिव्यांग बहनों और भाईयों के लिए एक समावेशी और सुगम्य भविष्य सुनिश्चित करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रहे हैं.”

सरकार का नारा है 'सशक्त दिव्यांगजन समर्थ भारत’ लेकिन पीएम के इस कथनी और करनी के परिणाम धरातल पर कुछ खास नज़र नहीं आते हैं. दिव्यांगों के लिए आज भी सम्मानजनक और सुविधापूर्ण जीवन जीना आसान नहीं हुआ है.

दिव्यांग व्यक्तियों का 'प्रमाणपत्र बनवाना काफी कठिन कार्य

बिहार के अरवल जिले के करपी प्रखंड के रहने वाले मोहम्मद फारुख की कहानी इस समस्या का एक छोटा सा उदाहरण है. लगभग 45 वर्षीय फारुख मानसिक तौर पर विक्षिप्त हैं. उनके माता-पिता ही किसी तरह घर चलाते हैं. बहुत बार प्रयास करने के बाद भी फारुख का विकलांगता प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहा था.

पेशे से पत्रकार और समाजसेवी जफर इकबाल के काफ़ी प्रयास के बाद मो. फारुख का विकलांगता प्रमाण पत्र और पेंशन कार्ड बन सका. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए जफ़र बताते हैं “मो. फारुख की उम्र लगभग 40 साल है. वो मानसिक तौर पर विक्षिप्त होने के साथ-साथ हल्की शारीरिक विकलांगता से भी ग्रस्त हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय हैं. उसके मां-बाप झाड़ू-पोछा लगाकार परिवार चलाते हैं.”

फारुख की समस्या और परिवार की माली हालत को देखते हुए जफर इकबाल ने सदर अस्पताल अरवल में आवेदन देकर उसका विकलांगता प्रमाणपत्र बनवाए का प्रयास किया. लेकिन अस्पताल में मानसिक विकलांगता की जांच करने वाले डॉक्टर ना होने के कारण इसमें समस्या आ रही थी. काफी भाग दौड़ के बाद डॉक्टर ने उसे विकलांगता प्रमाणपत्र बनाकर दिया.

जफर आगे बताते हैं “फारुख को 40% विकलांगता का प्रमाणपत्र बनाकर दिया गया था. इसलिए इसके आधार पर विकलांगता पेंशन के लिए आवेदन किया गया. आवेदन के बाद सत्यापन के लिए उसे ब्लॉक बुलाया गया. जहां बीडीओ सर ने उस प्रमाणपत्र को मानने से इंकार कर दिया और रेड क्रॉस सोसाइटी, पटना से प्रमाण पत्र बनवाकर लाने को कहा.”

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दिव्यांग व्यक्तियों को भ्रष्टाचार का करना पड़ता है सामना

सरकारी योजनाओं के मिलने में आने वाली समस्याओं पर ज़फर कहते हैं -“कोई भी योजना भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है. दिव्यांगों को भी इस समस्या से जूझना पड़ता है. वृद्धा पेंशन कार्ड, विधवा पेंशन या विकलांगता पेंशन कार्ड बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में दलाल पांच से छह हजार रुपए लेते हैं."

दलाल अच्छा हो तो सारे प्रोसेस के बाद पेंशन मिलने लगता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कई दलाल सक्रीय हैं जो पैसे लेने के बाद भी काम नहीं करवाते हैं. वे साइबर या सुविधा केंद्र से आवेदन तो करवा देते हैं लेकिन उनका आवेदन ब्लॉक से कभी पास नहीं हो पाता है. ऐसे में पीड़ित परिवार या व्यक्ति को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है."

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जून 2023 में दिए आंकड़ों के अनुसार 94.30 लाख लोगों का यूडीआईडी (UDID) कार्ड बनाया गया है.

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2011 की जनगणना में 2.68 करोड़ आबादी

दिव्यांग सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय पर मौजूद आकड़ों के अनुसार देश की 121 करोड़ आबादी में 2.68 करोड़ आबादी दिव्यांग हैं यानि कुल आबादी का 2.21%  व्यक्ति किसी ना किसी तरह की शारीरिक या मानसिक निःशक्तता से ग्रस्त है. इनमें 1.50 करोड़ पुरुष और 1.18 करोड़ महिलाएं शामिल हैं. हालांकि यह आंकड़े साल 2011 की जनगणना पर आधारित हैं.

वहीं राज्यवार आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद बिहार तीसरा ऐसा राज्य हैं जहां विकलांगों की संख्या सबसे अधिक है. विकलांगों की 8.69% आबादी बिहार में हैं. इसमें  8.98% पुरुष और 8.13% महिला है. दिव्यांग जनों की 10.98% आबादी गांवों में जबकि 3.48% आबादी शहरों में रहती है.

दिव्यांग जनों के अधिकारों को समान रूप से महत्त्व देने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस घोषित किया है. केंद्र सरकार दिव्यांगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का संचालन कर रही है.

इसी क्रम में दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना, दिव्यांग व्यक्तियों को सहायक उपकरणों के खरीद के लिए सहायता योजना, दिव्यांग व्यक्तियों को स्व-रोजगार स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय विकलांग वित्त और विकास निगम योजना चलाया जा रहा है.

केंद्र सरकार शिविर लगा के खानापूर्ति कर देती है 

25 नवंबर को देशभर में 20 स्थानों पर दिव्यांगो और वरिष्ठ नागरिकों के बीच निशुल्क सहायक उपकरण बांटने के लिए शिविर का आयोजन किया गया है. पूर्णतः केंद्र सरकार द्वारा आयोजित इस शिविर में 60 हज़ार दिव्यांगों और बुजुर्गों को सहायक उपकरण दिए जाने हैं. साल 1981 से आयोजित हो रहे इस शिविर का अबतक 15 हजार बार आयोजन किया जा चूका है जिसका लाभ  26 लाख लोगों को मिला है.

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साथ ही निजी क्षेत्रों में काम करने वाले दिव्यांग कर्मचारियों के लिए पेंशन और बिमा प्रोत्साहन योजना और दिव्यांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना का संचालन किया जा रहा है.

लेकिन क्या इन सारी योजनाओं का लाभ दिव्यांगजनों को आसानी से मिल पाता है.