भारत में अतिथि देवो भव होता है, अतिथि के अलावा हमारे देश में डॉक्टर को भी भगवान का दर्जा दिया गया है. आज देशभर में डॉक्टर्स डे(National Doctor's Day) मनाया जा रहा है, जिसमें हम अपनी जिंदगी में डॉक्टर के महत्व को देखते हुए उन्हें सम्मानित करते हैं और आज के दिन शुक्रिया कहते हैं. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब भारत में डॉक्टर नहीं बल्कि झाड़-फूंक करने वाले ओझा-वैद्य की भरमार थी. तब लोगों को डॉक्टर के इलाज पर कोई भरोसा नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे यह टूटा और आज के समय में छोटी से बड़ी और गंभीर बीमारियों तक के लिए हम आंख बंद कर डॉक्टर के भरोसे सब कुछ छोड़ देते हैं. इलाज करवाने पहुंचे लोगों को हमेशा यह कहा जाता है कि कभी भी डॉक्टर से कुछ नहीं छुपाना चाहिए. जैसे की हम भगवान से कुछ नहीं छुपा सकते.
आज के समय में सबसे ज्यादा लोग डॉक्टर इंजीनियर बनने का ही सपना देखते हैं. ऐसे कई जगह पर हम डॉक्टर के साथ मारपीट और अप्रिय दुर्घटना की खबरें भी सुनते हैं.. जान बचाने वाले डॉक्टर पर भी जानलेवा हमला किया जाता है. डॉक्टर पर हिंसक होने के ज्यादा मामले कोरोना काल में देखे गए थे, जब लोग कोरोना से ऊबर नहीं पा रहे थे तब मरीजों और परिजनों का गुस्सा डॉक्टर पर ही देखने मिलता था. कोरोना के दौरान जहां दुनिया भर में स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर कोरोना जैसी बीमारी का इलाज किया. फ्रंटलाइन पर रहकर निस्वार्थ मन से लोगों की जिंदगी बचाने की कवायद में लग रहे. उसका उल्टा फल उन्हें उस दौरान देखने मिला था. एक तरफ़ डॉक्टर लोगों की जिंदगी बचा रहे थे, तो दूसरी तरफ़ उन्हीं के जैसे दूसरे डॉक्टरों के साथ मारपीट जैसी घटनाएं हो रही थी. अकेले भारत में दर्जनभर से ज्यादा डॉक्टर पर हमले की खबरें आई थी. जिसमें डॉक्टरों पर जानलेवा हमला, घरों से बाहर निकालना, अपशब्द कहना, मारपीट करना शामिल था.
एक रिपोर्ट के मुताबिक 19 फरवरी 2021 से 45 दिनों के अंदर दुनियाभर में डॉक्टर के खिलाफ हिंसा की कुल घटनाओं में से 68% अकेले भारत में दर्ज की गई थी. कोरोना के बाद भी डॉक्टर पर हो रहे हमले थम नहीं रहे हैं. बीते दिन ही कोलकाता के एक मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों ने मारपीट का विरोध जताया था. इसके अलावा कई बार डॉक्टर ने काली पट्टी पहन कर भी मारपीट का विरोध किया है. लेकिन विरोध के दौरान भी वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे है.
भारत में डॉक्टरों पर हो रहे हैं हिंसक घटनाओं के साथ ही एक और इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात है. दरअसल हमारे देश में डॉक्टरों की भारी कमी रही है. देश के कई बड़े-छोटे अस्पताल डॉक्टरों की किल्लत झेल रहे हैं, जिसकी वजह से मौजूद डॉक्टरों पर काम का बोझ बढ़ जाता है. देश में अस्पतालों की संख्या में आयदिन बढ़ोतरी हो रही है. 2014 में पीएम मोदी के पहले टर्म की सरकार में एक दर्जन से अधिक एम्स का निर्माण कराया गया था. सरकार ने देश के 761 जिलों में एक बड़ा अस्पताल बनाने की योजना रखी है, लेकिन इन बड़े अस्पतालों में नियुक्त करने के लिए डॉक्टर देश के पास नहीं है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 1991 में भारत का डॉक्टर अनुपात प्रति 1000 रोगियों पर 1.2 डॉक्टर के रिकॉर्ड उच्चतर स्तर पर पहुंच गया था. 2020 तक के अनुपात घटकर 0.7 रह गया. बीते साल ही तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीया ने बताया था कि वास्तव में भारत में प्रति 834 रोगियों पर एक डॉक्टर है. डॉक्टरों की किल्लत से उबरने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने निजी और सार्वजनिक कॉलेज में मेडिकल सीटों की संख्या दोगुनी कर दी थी. मार्च 2014 से पहले यह संख्या 51,348 थी, जिसे लगभग 1,01,043 किया गया था.
इसके साथ ही सरकार ने यह भी बताया है कि मार्च 2022 तक ग्रामीण भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सर्जन, चिकित्सकों, स्त्री रोग विशेषज्ञों और बाल रोग विशेषज्ञों की लगभग 80 फ़ीसदी कमी है.
बीमारियों का इलाज करने वाले डॉक्टर काम के बोझ और लोगों के हिंसक रवैया से खुद अस्वस्थ होते जा रहे हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सर्वे के मुताबिक कई डॉक्टर अपने खिलाफ हुए आपराधिक मुकदमे, हमले के डर से जूझ रहे हैं. जिसके कारण उन्हें नींद की कमी, तनाव, सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही डॉक्टर्स को रूढ़िवादी सोच से भी जूझना पड़ता है. रिपोर्ट के मुताबिक 82.7 डॉक्टर दुनियाभर में तनाव से ग्रसित है. मरीजों को 6 से 8 घंटे की भरपूर नींद लेने की सलाह देने वाले डॉक्टर्स खुद नींद पूरी नहीं कर पाते हैं. काम के दबाव के कारण डॉक्टर अल्प निद्रा के शिकार हो गए हैं.
अगर आप कभी किसी सरकारी अस्पताल में एक मामूली इलाज के लिए भी जाएंगे तब आपको पता लगेगा कि एक डॉक्टर पर हजारों मरीजों की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में कई बार डॉक्टर की जिंदगी हॉस्पिटल, क्लिनिक और रोगियों के बीच में ही निकल जाती है. कई बार हमारे डॉक्टर्स को त्यौहार, खास दिन मनाने के लिए भी अपनी ड्यूटी से समय नहीं मिलता. इसलिए हमें बस आज के दिन ही नहीं बल्कि हर रोज डॉक्टर्स का सम्मान करना चाहिए.