महिलाएं और उनसे जुड़े कई सवालों का जवाब आज भी पुरुष प्रधान समाज में ढूंढना मुश्किल होता है. हालांकि आज के दौर में महिलाएं ज्यादा जागरूक सशक्त और हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखती हैं. मगर महिलाओं के इस सशक्तिकरण के पीछे कई अन्य महिलाओं का हाथ है, जिनमें क़िताबें, उपन्यासों को लिखने वाली लेखिकाओं का बड़ा योगदान रहा है. इसमें लेखिका इस्मत चुग़ताई का नाम भी गिना जाता है.
आज से करीब 70 साल पहले इस्मत चुग़ताई ने महिलाओं से जुड़े उन मुद्दों को अपनी रचनाओं में शामिल किया, जिसे उस समय पुरुष प्रधान समाज में रखना जोखिम भरा था. वह अपने लेखन में महिलाओं के मुद्दे को सरल, प्रभावी और मुहावरेदार भाषा में लिखा करती थी. उन्होंने अपनी किताबों में महिलाओं से जुड़े मुद्दों के अलावा समाज की कुरीतियों, व्यवस्थाओं और अन्य दूसरे मुद्दों को भी बखूबी शामिल किया. वह अपने लेखन से करारे व्यंग करने के लिए भी मशहूर थीं.
इस्मत चुग़ताई 19वीं शताब्दी की मशहूर, नारीवादी और विवादित उर्दू लेखिका थी. विवादित इसलिए क्योंकि उनके लेखन से मुस्लिम महिलाओं के दिलों के जज्बात झलकती थे, जिससे कई बार लेखिका विवादों में घिर जाती थीं.
इस्मत का जन्म 21 अगस्त 1915 को बदायूं (ब्रिटिश भारत) उत्तर प्रदेश में हुआ. 10 भाई बहनों में इस्मत नौवें नंबर पर थी, उनके पिता सरकारी विभाग में काम करते थे. इस्मत शुरुआत से ही बगावती तेवर वाली लड़की थी. वह बचपन से ही लड़कों के बराबर हक हासिल करने की कोशिश करती, उनके जैसे सादे लिबास पहनने की जिद करती और जेवर-गहनों को ठुकराती रहती थी. वह 1950 के दौरान इस्लामिया गर्ल्स इंटर कॉलेज, बरेली की पहली प्रिंसिपल भी बनीं.
लेखिका इस्मत को इस्मत आपा के नाम से भी जाना जाता था. उर्दू साहित्य की सर्व प्रमुख लेखिकाओं में भी उनकी गिनती होती थी. उनके लेखन से महिलाओं से जुड़े कई सवाल जो सालों से महिलाओं के इर्द-गिर्द बंधें हैं, वह उठते थे. इस्मत ने मध्यवर्गीय मुस्लिम तबके की महिलाओं से लेकर जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियां और उपन्यासों में बयान किया. उनकी एक कहानी लिहाफ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में उन पर मुकदमा भी चला, जो बाद में खारिज कर दिया गया.
इस्मत की कहानी संग्रह में छुईमुई, एक बात, कलियां, एक रात, शैतान इत्यादि शामिल है. इसके अलावा उपन्यास टेढ़ी लकीर, जिद्दी, अजीब आदमी, दिल की दुनिया, लिहाफ इत्यादि है. इस्मत ने अपनी आत्मकथा ‘कागजी हैं पैराहन’ भी लिखीं. मगर उनकी कहानी ‘लिहाफ’ खासी मशहूर हुई. 1941 में लिखी गई यह कहानी महिलाओं के समलैंगिकता के मुद्दे पर थी. उस दौर में इस मुद्दे पर किसी महिला का लिखना एक दुस्साहस भरा कदम था. इसके बाद उनके ऊपर अश्लीलता के इल्जाम लगाए गए और मुकदमे भी चले. उनकी इस किताब पर 1996 में ‘फायर’ नाम की फिल्म बनी, जिसमें शबाना आज़मी और नंदिता दास ने काम किया था. इस फिल्म के रिलीज होने के बाद भी जबरदस्त हंगामा हुआ था. इसके अलावा ‘टेढ़ी लकीर’ उपन्यास को इस्मत के ही जीवन की समस्याओं को प्लाट मानकर पढ़ा जाता है.
इस्मत चुग़ताई ने अभिनय के क्षेत्र में भी काम किया. उनकी पहली फिल्म छेड़छाड़ 1943 में आई. इसके बाद उन्होंने करीब 13 फिल्मों में काम किया. उनकी आखिरी फिल्म गरम हवा 1973 में आई थी.
लेखिका इस्मत को समय से काफी आगे की सोच वाला माना जाता है. जिस मुद्दे पर समाज में अब जागरूकता अभियान होने शुरू हुए हैं, वह उन्होंने अपने लेखन काफी पहले ही उठाया था. उर्दू अदब की महान लेखिका इस्मत चुग़ताई ने 24 अक्टूबर 1991 को इस दुनिया को अलविदा कहा.