वैश्विक भूख सूचकांक 2024: बिहार की भयावह स्थिति की कहानी

वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) एक ऐसा उपकरण है जो देश में भूख की गंभीरता को मापता है. भारत का स्कोर 27.3 इसे 'गंभीर' श्रेणी में रखता है. पटना जिले में 65.4% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

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नाजिश महताब
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बस्ती में फैलता कुपोषण

भूख केवल एक शारीरिक पीड़ा नहीं है, यह एक ऐसी सच्चाई है जो लाखों लोगों के सपनों, उम्मीदों और भविष्य को निगल जाती है. भारत, जो कभी 'सोने की चिड़िया' कहलाता था, आज वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) 2024 में 27.3 के स्कोर के साथ 127 देशों में 105वें स्थान पर है. यह स्थिति हमें केवल शर्मिंदा करती है, बल्कि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि इतने सारे प्रयासों और योजनाओं के बावजूद, हम क्यों असफल हो रहे हैं?

बिहार, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भारत के गौरव का प्रतीक है, आज कुपोषण और भूख के आंकड़ों में देश के सबसे निचले पायदान पर खड़ा है. यह स्थिति केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन बच्चों की हकीकत है जो अपने बचपन को भरपेट भोजन के सपने में गुजार देते हैं

भूख और कुपोषण के आंकड़ों की भयावहता

वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) एक ऐसा उपकरण है जो देशों में भूख की गंभीरता को मापता है. भारत का स्कोर 27.3 इसे 'गंभीर' श्रेणी में रखता है. हालांकि 2023 की तुलना में भारत के स्कोर में थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन यह सुधार ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. देश में 13.7% आबादी अल्पपोषित है, 35.5% बच्चे अविकसित हैं, और 18.7% बच्चे कमजोर हैं. बाल मृत्यु दर 2.9% है.

बिहार में स्थिति और भी भयावह है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के अनुसार, बिहार में 48.3% बच्चे अविकसित, 20.8% बच्चे कमजोर और 43.9% बच्चे कम वजन के हैं. राज्य में 6 महीने से 5 साल तक के 63.5% बच्चों में एनीमिया पाया गया. पटना जिले में 65.4% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. यह स्थिति हमें बताती है कि बिहार के बच्चों का भविष्य उनके वर्तमान की तरह ही अधूरा है.

बिहार में कुपोषण का दंश

बिहार में कुपोषण केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक समस्या भी है. राज्य में 63.1% गर्भवती महिलाएं और 63.6% सामान्य महिलाएं कुपोषण से जूझ रही हैं. यह स्थिति उन बच्चों को प्रभावित करती है जो इन महिलाओं के गर्भ से जन्म लेते हैं

विशेषज्ञों के अनुसार, पतलेपन वाला कुपोषण सबसे अधिक खतरनाक है. यह स्थिति बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बना देती है, जिससे उनका संपूर्ण विकास बाधित होता है. शिवहर, जहानाबाद और रोहतास जैसे जिलों में कुपोषण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं

राहुल (बदला हुआ नाम) जो 7 साल का छोटा सा बच्चा है पर दुर्भाग्य ऐसा है कि वो गरीब है. खाने पीने के लाले पड़े है जिसके कारण वह कुपोषण से झुझ रहा है. जब हमने राहुल के परिजनों से हमने जब बात की तो उन्होंने बताया कि "हम गरीब लोग हैं साहेब. हमारे खाने में पोषण जैसा कुछ नहीं होता क्योंकि हमारे पास खरीदने को पैसे नहीं होते हैं. ऊपर से सरकार के तरफ़ से जो बच्चों के लिए खाने को मिलता है जैसे आंगनबाड़ी में जो खाना मिलता है उससे बच्चे का विकास नहीं हो पाता है. मेरा बेटा काफ़ी कमज़ोर हो गया है. हम सरकार से ये उम्मीद करते हैं कि सरकार इस पर ध्यान देगी."

बिहार में योजनाएं और उनके प्रभाव

भारत सरकार ने पोषण अभियान, पीएम गरीब कल्याण योजना और राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं. लेकिन इन योजनाओं का प्रभाव बिहार जैसे राज्यों में स्पष्ट रूप से नहीं दिखता. यह योजनाएं कागज पर तो प्रभावी लगती हैं, लेकिन इनके जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में कमी है

बिहार में कुपोषण की समस्या का एक बड़ा कारण सामाजिक और आर्थिक असमानता है. गरीब परिवारों को भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है

पटना के कमला नेहरू नगर स्लम में रहने वाले अधिकतर बच्चे कुपोषण के मार से झुझ रहें हैं. हद तो ये है कि सरकार भी उन पर ध्यान नहीं देती है. बबलू उसी स्लम में रहता है जो कुपोषण से जूझ रहा है. जब हमने वहां के परिजनों से बात की तो उन्होंने बताया कि "हमारे बच्चे कमज़ोर हो गए हैं. बच्चों के शरीर में मांस तो दिखता ही नहीं सिर्फ़ हड्डियां दिखती हैं. हम कोशिश करते हैं की अच्छा खाना खिलाए लेकिन पैसों की तंगी से मार खा जाते हैं. सरकार द्वारा जो राशन मिलता है उसमें क्या ही होगा. हम चाहते हैं कि  हमारा बच्चा भी मज़बूत बने ताकि आगे बढ़ सके लेकिन कुपोषण के कारण कुछ भी संभव नहीं दिख रहा."

कुपोषण केवल बच्चों के शारीरिक विकास को बाधित करता है, बल्कि यह उनके मानसिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है. कुपोषित बच्चे अपने साथियों के मुकाबले पढ़ाई और खेल में कमजोर होते हैं. इससे उनके आत्मविश्वास पर बुरा असर पड़ता है, और वे समाज में अपने लिए बेहतर स्थान बनाने में असमर्थ रहते हैं. कुपोषण का एक और प्रभाव समाज और देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है

समाधान की दिशा में कदम

बिहार में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए हमें समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है

1. पोषण शिक्षा: सबसे पहले, हमें लोगों को पोषण के महत्व के बारे में शिक्षित करना होगा. महिलाएं, विशेष रूप से गर्भवती महिलाएं, को सही आहार के बारे में जानकारी देना महत्वपूर्ण है

2. स्थानीय भोजन पर जोर: स्थानीय स्तर पर उपलब्ध खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ावा देना चाहिए. इससे केवल बच्चों को पौष्टिक भोजन मिलेगा, बल्कि स्थानीय किसानों की आय में भी वृद्धि होगी

3. आर्थिक सशक्तिकरण: गरीब परिवारों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना होगा

4. सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन: सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा. इसके लिए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी

5. स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता: बच्चों और गर्भवती महिलाओं को समय पर स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए. इसके लिए स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ानी होगी और उनमें आवश्यक सुविधाएं प्रदान करनी होंगी

पटना यूनिवर्सिटी के सोशल वर्क के गेस्ट फैकल्टी प्रभाकर से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया किहंगर इंडेक्स में भारत का 105वा रैंक आने के कई कारण है एक है महंगाई, बेरोज़गारी और सरकारी योजनाएं. महंगाई बढ़ती जा रही है और परचेसिंग पावर कम होता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ़ सरकार द्वारा जो अनाज दिया जाता है वो पूरा न्यूट्रीशन को फुलफिल नहीं करता है उसमें बस कार्बोहाइड्रेट रहता है. ऐसे में सरकार को चाहिए की वो  इसपर विचार करे और संज्ञान ले.”

मानवता के लिए जागरूकता आवश्यक

बिहार में कुपोषण की स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में मानवता के उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां हर बच्चे को भरपेट भोजन और स्वस्थ जीवन का अधिकार है

हमारे समाज में यह समस्या केवल सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है. यह हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि हम इन बच्चों के लिए बेहतर भविष्य बनाएं. हमें यह समझना होगा कि हर बच्चा हमारे समाज का हिस्सा है और उसकी भलाई से ही हमारा भविष्य सुरक्षित है

भूख और कुपोषण का मुद्दा केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है. यह उन अनगिनत बच्चों की कहानी है जो हर दिन भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. यह उन माताओं की पीड़ा है जो अपने बच्चों को भरपेट खाना नहीं खिला पातीं. बिहार में कुपोषण की भयावह स्थिति हमारे सामने एक कड़वा सच है. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी प्राथमिकताओं को सही कर पा रहे हैं? क्या हमारे विकास के मॉडल में सबसे कमज़ोर वर्ग के लिए जगह है

हमें मिलकर इस स्थिति को बदलना होगा. यह केवल सरकारी योजनाओं और नीतियों की बात नहीं है. यह हमारे प्रयासों और हमारी सोच का मामला है. हमें इस स्थिति को बदलने के लिए आगे आना होगा. भूख और कुपोषण के खिलाफ लड़ाई केवल बिहार की नहीं है. यह पूरी मानवता की लड़ाई है. और इस लड़ाई में हर व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है.