ऐसे कैसे ओलंपिक्स में दिखेंगे बिहार के खिलाड़ी ?

बिहार में खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब नहीं, बल्कि पढ़ोगे लिखोगे तो होंगे साहब का कॉन्सेप्ट देखा जाता है. इसका ताजा उदाहरण पेरिस ओलंपिक 2024 में भी देखने मिला.

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ओलंपिक्स में दिखेंगे बिहार के खिलाड़ी

ओलंपिक्स में दिखेंगे बिहार के खिलाड़ी

डेमोक्रेटिक चरखा में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के 54 हजार स्कूलों में खेल के मैदान उपलब्ध नहीं है. खेल के मैदाने की यह गैर मौजूदगी इस बात का साफ संकेत देती है कि राज्य में खेल कितना पिछड़ा हुआ होगा. बिहार में खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब नहीं, बल्कि पढ़ोगे लिखोगे तो होंगे साहब का कॉन्सेप्ट देखा जाता है. इसका ताजा उदाहरण पेरिस ओलंपिक 2024 में भी देखने मिला. पेरिस ओलंपिक में इस बार बिहार से मात्र एक महिला खिलाड़ी भाग लेने पहुंची. पेरिस ओलंपिक में भारत से इस बार 171 एथलीटों का जत्था रवाना हुआ है, जिसमें सबसे ज्यादा हरियाणा से 24 एथलीट्स ने भाग लिया है. इसके बाद दूसरा नंबर 19 एथलीट्स के साथ पंजाब का है.

पेरिस ओलंपिक में बुधवार को हरियाणा की रेसलर विनेश फोगाट को ओलंपिक से डिसक्वालीफाई किया गया. इस पूरे मुद्दे पर देश में राजनीति भी गरमाई, आम जनता से लेकर हर कोई कहीं ना कहीं उदास महसूस कर रहा है. विनेश फोगाट के डिसक्वालीफिकेशन ने एक बच्चे तक को रेसलिंग और फोगाट सिस्टर्स के बारे में बताया. लेकिन बिहार के खेल मंत्री विनेश फोगाट को लेकर अलग ही ज्ञान देते हुए नजर आए हैं. राज्य के खेल मंत्री सुरेंद्र महतो ने विनेश फोगाट को बिहार की बेटी बता दिया. खेल मंत्री के इस बयान पर सब ने अपने दांतों तले उंगलियां दबा ली. राज्य के खेल मंत्री को इस बात की जानकारी तक नहीं है कि बिहार से एकमात्र एथलीट श्रेयसी सिंह पेरिस ओलंपिक में खेलने गई हैं.

जब राज्य के खेल मंत्री ही खेल और अपने खिलाड़ियों से अनभिज्ञ है, जब खेल मंत्री खुद देश में बड़े पैमाने पर चर्चित विनेश फोगाट के बारे में नहीं जानते,  तो फिर बिहार में वह किस स्तर तक खेल विकसित करेंगे में यह एक विचारणीय विषय है. इसी साल सुरेंद्र महतो को नीतीश कैबिनेट में शामिल कर खेल मंत्री बनाया गया. खेल मंत्री की ये जिम्मेदारी सुरेंद्र महतो के कंधों पर इस बयान के बाद अशोभनीय लगती है. देश में ऐसे हालात कई मंत्रियों के साथ देखे गए हैं. देश के मंत्री अपने विभाग की जिम्मेदारी, खामी, परेशानी इत्यादि को संभालने में असफल साबित होते हैं. हालांकि मंत्रियों को अपनी कुर्सी इतनी आरामदायक लगती है कि वह लीच की तरह इससे चिपक जाते हैं. कई बड़े मंत्रालयों और विभागों में घोटालों/असफलताओं के बावजूद मंत्री अपने पद पर सालों साल तक बने रहना चाहते हैं. विरोध का शोर उनके कानों तक नहीं पहुंचता.

खैर बात एकबार फिर बिहार और खेल की करते हैं. बदलते समय के साथ अब खेल में करियर के सुनहरे अवसर है, जिसे राज्य सरकार भी बढ़ावा देती है. बिहार सरकार मेडल लाओ नौकरी पाओ जैसे अभियानों के तहत खेल को बढ़ावा देने का काम कर रही है. हालांकि खेल को लेकर बिहार में कोई भी अच्छा स्टेडियम आज मौजूद नहीं है. राजधानी पटना में रणजी मैच के आयोजन में  मोइन उल हक स्टेडियम की सच्चाई सबके सामने खुल गई. जहां बिहार में पहले कभी अंतरराष्ट्रीय मैच का आयोजन हुआ करता था, वहां अब राज्य स्तरीय मैच के लिए भी मैदान तरसते हैं.
बिहार सरकार ने खेल विश्वविद्यालय की स्थापना को भी अपने स्वीकृति दी है. हालांकि यह भी अभी बीरबल की खिचड़ी की तरह बन रहा है. 

राज्य में आउटडोर खेल के अलावा इंडोर खेलों के भी कमी स्कूलों में देखी गई है. बिहार के कई स्कूल ऐसे हैं जहां लूडो, कैरम, चेस इत्यादि खेल सामग्रियों को स्कूलों की अलमारी में सजाया जाता है. राज्य में कई स्कूली बच्चे गली क्रिकेट तक ही अपने आप को सीमित रख पाते हैं, क्योंकि उन्हें टीवी पर दिखने वाले खेलों में जाने का रास्ता नहीं मालूम. स्कूल छोड़ने के बाद आगे की पढ़ाई का बोझ बच्चों पर डाल दिया जाता है. जिस कारण वह अपनी खेल की प्रतिभा को कभी उभार नहीं पाते. राज्य में खेल की ऐसी स्थिति में बिहार के खेल मंत्री का अभिज्ञ बयान खेलों के प्रति उनके रुझान पर सवाल उठाता है.

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