12 अगस्त को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जा रहा है. देश-विदेश में जहां कई तरह के प्रतिभावान युवाओं को सम्मानित किया जा रहा है, तो वही बिहार में युवाओं पर लाठीचार्ज किया जा रहा है. बिहार के युवा बिहार पुलिस की लाठियां को खाकर किसी भी परीक्षा के नतीजे तक पहुंचते हैं. राज्य में आलम अब यह हो गया है कि किसी भी सरकारी परीक्षा में युवाओं की सीधी भर्ती नहीं होती, बल्कि पहले इन्हें ठोक पीटकर अस्पतालों में भर्ती कराया जाता है और उसके बाद नौकरियों में.
राज्य में आयोजित होने वाली अमूमन हर परीक्षा में कोई ना कोई रुकावट, परेशानी, प्रदर्शन जरूर होते हैं. बिहार सरकार भी अब इसकी आदी हो चुकी है, राज्य में होने वाली परीक्षाओं का या तो पेपर लीक होता है, या फर्जीवाड़ा, डोमिसाइल की मांग या वन कैंडिडेट वन रिजल्ट की मांग रखी जाती है. इन सभी मांगों के लिए बिहार पुलिस पहले से ही लाठी जवाब तैयार रखती है.
पटना की सड़कों पर आज बीपीएससी शिक्षक अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज किया गया. यह शिक्षक अभ्यर्थी बीपीएससी कार्यालय के बाहर वन कैंडिडेट, वन रिजल्ट और डोमिसाइल लागू करने की मांग लेकर पहुंचे थे. मगर सरकार ने इन मांगों को बैठकर सुनने की बजाय अभ्यर्थियों को खड़े-खड़े खड़े दिया.
बिहार को छात्र आंदोलन की जननी कहा जाता है, इन्हीं छात्र आंदोलनों से राज्य के मुखिया उभरे. लालू यादव, सुशील कुमार मोदी जैसे बड़े चेहरे पर इन्हीं आंदोलनों की पहचान है. बिहार ने दुनिया को गणतंत्र का ज्ञान दिया, जिसके अनुसार शासन के सामने अपनी मांगों को रखने का पूरा अधिकार दिया गया है. इसके साथ ही मुद्दों को लेकर विरोध का भी हक लोकतंत्र की ओर से मिला है. लेकिन इसमें शायद एक चीज साइलेंट हो गई है, वह है शासन के विरोध में जाओगे तो लाठियां खाओगे.
यह पहला मौका नहीं है जब इस तरीके से शिक्षाक अभ्यर्थियों पर ताबड़तोड़ लाठियां चटकाय गई है. इसके पहले भी शिक्षक, शिक्षक अभ्यर्थी, शिक्षा मित्र, अतिथि शिक्षक, दिव्यांग शिक्षक और न जाने कितनों ने बिहार सरकार की मार झेली है.
अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के पहले 1 अप्रैल मूर्ख दिवस के दिन सड़कों पर अतिथि शिक्षकों की पिटाई हुई थी. उसके पहले फरवरी में सक्षमता परीक्षा का विरोध कर शिक्षकों पर भी लाठियां बरसी थी. बीते साल दिसंबर में सप्लीमेंट्री रिजल्ट की मांग के बदले में भी अभ्यर्थियों को डंडे पड़े थे. अक्टूबर में शिक्षक भर्ती परीक्षा के रिजल्ट में गड़बड़ी के सुधार की मांग पर बीपीएससी कार्यालय के बाहर शिक्षक अभ्यर्थियों की पिटाई हुई थी. इस तरह की दर्जनों घटनाएं बिहार के नौकरी जगत में काले अक्षरों में दर्द हो गई है.
बार-बार सरकार के इस तरह के रवैये से अभ्यर्थियों का मनोबल टूटता है, जिस कारण हजारों युवा अब सरकारी नौकरियों को तवज्जो नहीं देते. देशभर में एक तरह का नया ट्रेंड देखा जा रहा है, जिसमें युवा इंजीनियरिंग कर बड़े शहरों में काम करने निकल जाते हैं. इस नए ट्रेंड में बिहार भी पीछे नहीं रहा है. मौजूदा समय में कई युवा इंजीनियरिंग कर बाहर जा चुके हैं, तो वहीं राज्य में बढ़ रहे इंजीनियरिंग संस्थानों की भरमार से आने वाले दिनों में युवाओं के रुझान का अंदाजा लगाया जा सकता है.
मगर सवाल यह उठता है कि बिहार सरकार के खिलाफ उठ रही आवाजों का जवाब कब मिलेगा? सरकार कब प्रदर्शनों की मांग को सुनकर नौकरी व्यवस्था में सुधार लाएगी? कब सरकार की आंखें खुलेंगी और वह पेपर लीक, डोमिसाइल, रिजल्ट सुधार, परमानेंट नौकरी इत्यादि जैसे गंभीर मामलों को संज्ञान में लेते हुए लाखों परीक्षार्थियों के हित में सोचेगी?