बुढ़ापे में दादी को बक्से और नानी को फ्रिज का लगाव, लोगों से दूर होते जा रहे बुजुर्ग

मेरी दादी बक्से का चाभी ढूंढने वाले को 50 रुपए का इनाम भी देती थी. यह बहुत दिलचस्प है कि कैसे बुढ़ापे के समय लोगों को किसी चीज से बेहद लगाव हो जाता है, जिसे वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते.

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लोगों से दूर होते जा रहे बुजुर्ग

लोगों से दूर होते जा रहे बुजुर्ग

जब मेरी दादी जिंदा थी तब उन्हें अपनी प्लास्टिक की पुरानी बड़ी कुर्सी बहुत प्यारी थी. इसके अलावा वह अपने टीन के बक्से और उसकी चाभी से भी बहुत जुड़ी हुई थी. अगर कभी उनके बक्से की चाभी गुम हो जाती तो वह पूरा घर सर पर उठा लेती और उसे ढूंढने वाले को 50 रुपए का इनाम भी देती. यह बहुत दिलचस्प है कि कैसे बुढ़ापे के समय लोगों को किसी चीज से बेहद लगाव हो जाता है, जिसे वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते. इन सामानों के साथ-साथ मेरी दादी को मुझसे भी बहुत लगाव था, वह मेरे बिना कभी नहीं सोती थी. अगर मैं उनसे कभी रूठ भी जाती तो वह मुझे बहुत मना कर अपने साथ सुलाने ले जाती.

अमूमन हमारी उम्र के लोगों को फोन से या जानवरों से लगा होता है. अभी के समय में एक छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक, सभी को फ़ोन से लगाव है. लोग अपना फोन खो जाने पर बौखला जाते हैं और किसी तरह से उसे वापस अपने हाथ में देखना चाहते हैं. ऐसा ही लगाव मेरी नानी को 2 साल पहले अपने छोटे से बटन वाले फोन से था. जब मैं नानी घर आई तो मैंने देखा कि वह अपने छोटे फोन को पूरे दिन अपने हाथ में लेकर चलती थी. उन्हें कान से कम सुनाई देता था, इसलिए वह सोते, लेटते, बैठते समय फोन को कानों के पास रखने की कोशिश करती थी. फ़ोन में अगर मैसेज आता और लाइट जलती तो भी नानी को लगता कि किसी ने फोन किया और वह उसे कान में लगा लेती. उनका यह फोन लगाव मेरे लिए बहुत नया था.

समय के साथ मैंने जाना कि दरअसल नानी को फोन से नहीं बल्कि उसपर आने वाले लोगों के कॉल से लगाव था. वह किसी से बात करना चाहती थी, जिसके चलते वह पूरे दिन अपने पास ही फोन रखा करती थी. आज एक बार फिर से मैं नानी के घर पर हूं, मगर अब वह 2 साल पहले वाली बात नहीं रह गई है. नानी को अब कान से और कम सुनाई देने लगा है, जिसके कारण वह फोन तो दूर लोगों की आवाज तक नहीं सुन पाती. लेकिन ऐसा नहीं है कि उनका लगाव किसी चीज के लिए नहीं है. वह अपने फ़ोन और पैसे अब उतना महत्व नहीं देती, मगर घर के फ्रिज को वह पूरे दिन में कम से कम 10- 15 बार खोलती है. मैंने कई बार देखा कि मैं सुबह सो कर उठी हूं तो वह फ्रिज में सब्जियां रख रही हैं. कुछ देर बाद भी वह फ्रिज खोलकर कुछ काम कर रही थी.

नानी का यह फ्रिज लगाव मुझे उस दिन ज्यादा समझ आया जब मैं फ्रिज से कुछ सामान निकाल रही थी और वह ठीक मेरे पीछे खड़े होकर मुझे देख रही थी. मुझे लगा नानी को कुछ निकालना होगा, इसलिए मैं पीछे हट गई. मगर वह आगे नहीं बढ़ी और चुपचाप खड़ी होकर मुझे देखती रही. उसके अगले दिन फिर मैं फ्रिज से कुछ सामान निकालने गई और वह फ्रिज के दरवाजे के गैप से देखने की कोशिश कर रही थी कि मैं क्या निकल रही हूं. उस दिन मैंने देखा कि जब मैं फ्रिज बंद करके जाती हूं तब वह वापस से सामानों को देखती और उसे रखती हैं.

दरअसल नानी का यह फ्रिज मोह इंसानों की कमी के कारण धीरे-धीरे बढ़ता चला गया. जब घर में कोई नहीं होता तो वह सामानों के करीब होती गई, जिसमें उन्हें फ्रिज सबसे खास लगा. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इसमें रोजमर्रा की चीजें रहती है, जिसे वह निकालती और रखती थी. इससे वह फ्रिज को एक तरीके से सजाने का काम करती थी और उन्हें यह बिल्कुल नागवार था कि उनका फ्रिज बाहर या अंदर किसी भी तरीके से अस्थिर नजर आए. मुझे लगता है कि मानसिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए कुछ चीजों से लगाव और कुछ चीजों को स्थिर रखने के लिए जरूरी होता है. जैसा की हमारी उम्र में लोगों को स्थिर रहने के लिए हाथ में फोन चाहिए होता है.

elders moving away from people