मुस्लिम घराने में लड़कियों और महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जाती रही है. मुस्लिम लड़कियों को तालीम लेने से लेकर परदे के अन्दर रहने तक, बाहर जाने से लेकर अपने सपनों में रंग भरने तक पर रोक लगाई गई. इन महिलाओं को नाचने-गाने तक की आज़ादी नहीं थी. मगर इन्हीं में से एक मुस्लिम लड़की ने कथक क्लासिकल डांस की तालीम ली और अब अपने इस विद्या को दूसरी लड़कियों तक पहुंचा रहीं हैं. बिहार में जन्मी रानी खानम आजाद भारत की पहली और एकलौती मुस्लिम महिला कथक नृत्यांगना बनी. वह तीन दशकों से इस कला से जुड़ी हैं और राष्ट्रिय-अंतराष्ट्रिय स्तर पर अनगिनत कार्यक्रम करती हैं.
रानी खानम ने अपने कथक नृत्य में इस्लामी छंदों, महिलाओं के अधिकारों, एचआईवी/एड्स, लैंगिक समानता और दिव्यांगता जैसे मुद्दों पर कला प्रस्तुति की. उन्होंने तुर्की, काहिरा, बोस्निया और मोरक्को के जाने-माने सूफी संगीतकारों के साथ कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रोग्राम किए. मुस्लिम परिवार में जन्मी रानी ने बचपन से अजान और कुरान के साथ-साथ मंदिरों की प्रार्थनाएं भी सुनीं. बचपन में जब वह यह सब सुनती तो सूफियाना महसूस करने लगती. कुरान की आयतें पढ़कर उनके रोम-रोम में हलचल हो जाती थी. एक इंटरव्यू में वह बताती है कि उनका बचपन बहुत मजेदार था. जब वह छोटी थी तो मछलियां पकड़ती थी, लड़कियों के साथ खेला करती थी. मगर गाने-बजाने पर पाबंदी थी. उन्हें पहली बार बैजू बावरा के गाने ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ सुनकर संगीत से प्रेम महसूस हुआ था.
रानी खानम बचपन में छिपकर रानी नृत्य करती थी. बाद में वह गुरु जी के पास संगीत सीखने गई. मगर यहां उनके गुरु ने नृत्य कला को पहचाना और कथक का सिलसिला शुरू हो गया. वह कहती हैं कि उन्हें कथक नृत्य गॉड गिफ्ट के तौर पर मिला है.
रानी खानम के पिता बचपन में ही गुजर गए थे, जिसके बाद उनकी मां और भाई ने बेगूसराय से दिल्ली जाने का फैसला किया. यहां लोगों के कहने पर उनकी मां ने कथक सीखने का सिलसिला जारी रखा. एक आर्टिस्ट के तौर पर वह इस कला को वह जितना अपनाती गई, उतना ही कत्थक ने उन्हें अपना लिया. उनके आर्टिस्ट सफर के दौरान इस्लाम धर्म भी बीच में आया. लोगों ने इस्लाम में नृत्य करने को हराम बताया और उनकी शादी करने के लिए मां पर दबाव बनाने लगे. महज 13-14 साल की उम्र में घर वालों ने कहना शुरू किया कि शादी करवा दो, वरना आगे कोई लड़का नहीं मिलेगा. मगर समाज की इस सुगबुगाहट को उन्होंने अपने घुंघरूओं की आवाज से दबा दिया.
उन्होंने कथक के प्रसिद्ध कलाकार उस्ताद फतन खान, श्रीमती रेबा विद्यार्थी और पंडित बिरजू महाराज से प्रशिक्षण लिया. उन्होंने कथक केंद्र नई दिल्ली से स्नातक की डिग्री ली है.
रानी खानम मानती है कि नृत्य सामाजिक मुद्दों से जुड़ा हुआ होना चाहिए. उन्होंने अपने नृत्य के जरिए सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाया. इसके साथ ही वह दिव्यांग कलाकार(जो व्हील चेयर परफॉर्म करते हैं) के साथ काम करती हैं. वह युवा कलाकारों के साथ दिव्यांगता, सशक्तिकरण, प्रेरणात्मक परफाॅरमेंस के जरिए दर्शकों को आकर्षित करती हैं.
रानी खानम को उनके नृत्य के लिए महिला उपलब्धि पुरस्कार 2022, राष्ट्रीय एकता पुरस्कार 2017, लॉरिअल फेमिना महिला पुरस्कार 2014, पांचवा राष्ट्रीय महिला उत्कृष्टता पुरस्कार 2012, विश्व नृत्य और इस्लाम 2006 एशियाई सांस्कृतिक परिषद फैलोशिप, न्यूयॉर्क, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की ओर से वरिष्ठ फैलोशिप पुरस्कार, उत्कृष्ट कथक नर्तकी- 1991 इंडिया फाउंडेशन का पुरस्कार भी मिला है. उनकी कोरियोग्राफी को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित प्रदेशों के राज्यपाल और गणमान्यों से काफी प्रोत्साहन मिला है.
रानी खानम क्लासिकल नृत्य को युवाओं के बीच लेक्चर और वर्कशॉप के जरिए शिक्षण संस्थानों में फैलाने की कोशिश कर रही है. इसके लिए वह देश-विदेशों के शिक्षण संस्थानों का दौरा करती हैं. रानी खानम आमद कथक डांस सेंटर दिल्ली की फाउंडर और डायरेक्टर है.