आजादी के पहले देश में जातिवाद, छुआछूत और महिलाओं की सामाजिक स्थिति बेहतर नहीं थी. आजादी के बाद भी काफी सालों तक इसमें धीरे-धीरे सुधार हुआ, लेकिन आजाद होने के साथ ही कहीं ना कहीं बदलाव की एक किरण नजर आ रही थी. दरअसल संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी में 389 सदस्यों में एकमात्र दलित महिला को जगह दी गई, उस महिला का नाम दक्षिणायनी वेलायुदन था.
दक्षिणायनी वेलायुदन का जन्म साल 1912 में कोच्चि के एक छोटे से द्वीप मुलावुकड में हुआ. एक छोटे से द्वीप में पर पली-बढ़ी दक्षिणायनी मानो एक मकसद के साथ ही पैदा हुई थी. जन्म से ही जातिवाद भेदभाव को को झेलती हुई दक्षिणायनी हर एक असमानता के खिलाफ आवाज उठाती गई. पुलाया समाज से संबंध रखने वाली दक्षिणायनी पर जाति व्यवस्था का गहरा प्रभाव था. दरअसल पुलाया समुदाय केरल राज्य के आरंभिक समुदायों में से एक माना जाता था. उस दौर में इस समुदाय को घोर छुआ छूत का सामना करना पड़ता था. समुदाय के ऊपर कई तरह की सामाजिक पाबंदियां भी लगाई गई थी. इस समुदाय की महिलाएं ऊपरी वस्त्र नहीं पहन सकती थी, ना ही इस समाज के लोग सड़क पर चल सकते थे और ना ही सार्वजनिक कुएं से पानी भर सकते थे. समुदाय के लोग जब भी बाहर निकलते तो उन्हें रो कर, चिल्ला कर या विशेष तरीके से बोलकर अपने होने की जानकारी देनी पड़ती थी, ताकि उन्हें कोई छू कर ना चला जाए.
हालांकि दक्षिणायनी के जन्म के समय जाति व्यवस्था का विरोध केरल में शुरू हो चुका था. कई समाज सुधारकों ने पुलाया समुदाय के उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने शुरू किए थे जिसका हिस्सा दक्षिणायनी के माता-पिता भी रहें. दक्षिणायनी को हर अन्याय के खिलाफ सवाल उठाने का पाठ उनके माता-पिता से ही मिला. अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा कि वह पांच- भाई बहन थी, जिसमें सबसे ज्यादा प्यार पिता उन्हें ही करते थे. उनके प्यार और समर्थन से ही उन्होंने अपने समुदाय में सबसे कई ऐसे काम किए जो सबसे हुए. इनमें ऊपरी अंग वस्त्र पहनने की शुरुआत भी शमिल है. दक्षिणायनी ने बरसों से चली आ रही इस कुप्रथा के खिलाफ बदलाव किया और न्याय, समानता, समता, गरिमा जैसे संवैधानिक मूल्यों की एक प्रतीक बनीं. वह भारत की पहली दलित महिला ग्रेजुएट भी बनीं.
दक्षिणायनी स्कूल यूनिफॉर्म पहनने वाली पुलाया समुदाय की पहली महिला भी थीं. उनकी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई भी इतनी आसान नहीं थी, उन्हें कदम- कदम पर अपमानित होना पड़ता था. उन्हें साइंस की लेबोरेटरी में जाने पर भी रोक थी, वह दूर से ही लेबोरेटरी में हो रहे प्रयोग को देखती थीं. 1935 में उन्होंने बीए की पढ़ाई पूरी की और 3 साल बाद मद्रास यूनिवर्सिटी से शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा किया. उसके बाद 10 सालों तक (1935-1945) उन्होंने त्रिचुर और त्रिपुनिथुरा के सरकारी हाई स्कूल में एक टीचर के तौर पर काम किया.
दक्षिणायनी ने अपने नाम को लेकर भी आत्मकथा में जिक्र किया है, उन्होंने लिखा कि उस दौर में लड़कियों के अजाकी, पुमाला, चक्की काली, कुरुंबा जैसे अजीबो-गरीब नाम होते थे. तब उनके माता-पिता ने उनका नाम दक्षिणायनी रखा, जिसका अर्थ होता है दक्ष कन्या.
उन्होंने 1940 में आर. वेलायुधन से शादी की. वर्धा के सेवाग्राम में इस शादी के गवाह गांधीजी और कस्तूरबा गांधी थे. शादी एक दिव्यांग पुजारी ने शादी करवाई.
दलितों के अधिकारों पर सवाल उठाते-उठाते वह राजनीति में भी अधिक सक्रिय होती गई. संसद के सत्रों में उन्हें अधिक प्रश्न पूछे जाने और निर्धारित समय सीमा से ज्यादा प्रश्न पूछने के लिए जाना जाता था. सक्रिय राजनीति में उनके काम को सालों तक सराहा गया. 1942 में उन्हें कोचिन विधानसभा सीट के लिए नॉमिनेट किया गया. 1946 में दक्षिणायनी को संविधान सभा की पहली और एकमात्र दलित महिला सदस्या के रूप में चुना गया. 32 वर्षीय दक्षिणायनी संविधान सभा में शामिल हुई सबसे युवा सदस्य भी थी. उनकी बदौलत ही संविधान में धारा 17 को जोड़ा गया, जिसके तहत छुआछूत को दंडनीय अपराध माना गया है. उनका मानना था कि कोई भी संविधान सभा केवल संविधान का निर्माण नहीं करती, बल्कि यह समाज के नए दृष्टिकोण का भी निर्माण करती है.
उनके नाम पर केरल सरकार ने 2019 में दक्षिणायनी वेलायुधन पुरस्कार की स्थापना की. यह पुरस्कार राज्य में अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने में योगदान देने वाली महिलाओं को दिया जाता है. बजट में पुरस्कार के लिए दो करोड़ रुपए की राशि निर्धारित है. दक्षिणायनी वेलायुधन ने 66 वर्ष की आयु में 20 जुलाई 1978 को अंतिम सांस ली.