कवच एक स्वदेशी एंटीक कॉलेजिन तकनीक है. दावा किया जाता है कि इस तकनीक को भारतीय रेल के सभी व्यस्त रूट पर लगाया जाएगा, ताकि रेल हादसे को देशभर में रोका जा सके. इस डिवाइस को इंजन के अलावा रेलवे के रूट पर भी लगाया जा सकता है. कवच एक ही ट्रैक पर एक दूसरे के करीब आने वाली ट्रेन सिग्नल, इंडिकेटर, अलार्म के जरिए पायलट को इसकी सूचना देता है. इस तकनीक के आने के बाद रेलवे में दुर्घटनाओं पर अंकुश लगने का दवा हो रहा था. रेलवे में इसे क्रांति की तरह देखा जा रहा था. लेकिन कवच निर्माण के बाद भी देशभर में कई रेल हादसे होते रहे हैं. उड़ीसा रेल हादसा इनमें से एक बड़ा उदाहरण है, जिसमें 275 लोग मारे गए थे. इस रेल हादसे के बाद बताया गया था कि कवच सिस्टम को 1500 किलोमीटर में लगाया जा चुका है. इसे 2024 में 3000 किलोमीटर में लगाया जाना था और फिर अगले साल 3000 किलोमीटर में.
कवच एंटी कॉलेजिन तकनीक जिन भी रूट पर नहीं लगी है, वहां आए दिन रेल हादसे होने की खबर आती है. उड़ीसा से पश्चिम बंगाल तक, बिहार से झारखंड तक रेल हादसे हो रहे हैं. झारखंड में 30 जुलाई को रेल हादसे में दो लोगों की मौत हो गई. इस हादसे के बाद एक बार फिर रेलवे की सुरक्षा पर सवाल खड़ा हो रहा है. हालांकि रेल हादसे के बाद तत्परता दिखाते हुए रेलवे और राज्य सरकार की ओर से मुआवजा की घोषणा हुई है. लेकिन रेल मंत्री के इस्तीफे की आवाज अब भी कहीं दबी हुई है. दरअसल एनडीए के सरकार में यह आवाज हमेशा ही धीमी सुनाई देती है. जबकि यूपीए की सरकार में रेल हादसे के बाद इस्तीफा की गूंज उठती थी. विपक्ष इतना ताकतवर और रेल मंत्रियों में इतनी नैतिकता थी कि वह अपनी जिम्मेदारियों में असफल होने पर इस्तीफा देते थे.
1956 में तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तमिलनाडु रेल दुर्घटना के बाद इस्तीफा दिया था. इस हादसे में 142 लोगों की जान चली गई थी. इसके बाद बिहार सीएम नीतीश कुमार ने भी 1999 में गैसल ट्रेन हादसे के बाद इस्तीफा दिया था. इस रेल हादसे में 285 लोगों की जान चली गई थी. ममता बनर्जी ने 2000 में दो रेल दुर्घटनाओं के बाद अपने पद से इस्तीफा दिया था. लेकिन वाजपेई ने उनका इस्तीफा अस्वीकार किया था. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लालू प्रसाद यादव ने थे इस्तीफा दिया था. 2017 में सुरेश प्रभु ने चार दिनों में दो रेल दुर्घटनाओं कु जिम्मेदारी लेते हुए पीएम मोदी को अपना इस्तीफा दिया था.
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भी रेल दुर्घटनाएं हो रही है. हालांकि रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में रेल दुर्घटनाओं में कमी आई है. पिछले 10 सालों में ट्रेन दुर्घटनाओं में लगभग 2.6 लाख लोगों की जान गई है. हालांकि इनमें ज्यादातर मौत ट्रेन से गिरने और ट्रेन के नीचे दबने के कारण हुई है. मगर रेल रेल दुर्घटनाओं में जिम्मेदारी लेने के लिए अब सरकार के मंत्रियों के पास ताकत नहीं बची है. कोई भी घोटाला हो, कोई भी हादसा हो या सरकार की कहीं भी असफलता हो, इसकी जिम्मेदारी अब सरकार नहीं लेती. बल्कि सरकार मुआवजे बांटने और आश्वासन देने के लिए तत्पर रहती है.
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी केंद्र सरकार पर इसको लेकर निशाना साधा मंगलवार को ट्रेन दुर्घटनाओं को लेकर पश्चिम बंगाल सीएम ने सोशल मीडिया के जरिए केंद्र से पूछा कि क्या यही शासन व्यवस्था है आखिर रेल पुत्री पर मौत हो और छोटू का या अंतहीन सिलसिला कब तक सहन किया जाएगा भारत सरकार की संवेदनहीनता का कोई अंत नहीं है?
हजारों रेल दुर्घटनाओं के बाद अब भी सवाल वही का वही है कि आखिर कवच सिस्टम कब तक देशभर में लग जाएगा? कब इस तरह के रेल हादसों पर लगाम लगेगी? सरकार के बड़े वादों को धरातल पर उतरने में कब तेजी लाई जाएगी? कब तक आम जिंदगियों को लाखों रुपए के लिफाफे से दबाया जाएगा?