रविवार(15 दिसंबर) को भारत के दो बड़े कलाकारों का निधन हुआ. इनमें एक कलाकार तबला वादक जाकिर हुसैन, जिन्होंने छोटी उम्र से तबला बजाना सीखा और उम्र के साथ उसमें पारंगत होते गए. वहीं दूसरी कलाकार ने उम्र के आधे पड़ाव पर कला जगत में पैर रखा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कला और खुद की पहचान बनाई.
पद्मश्री से सम्मानित बैगा चित्रकार जोधइया बाई बैगा का रविवार को 86 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने अपने गांव लोढा में अंतिम सांस ली. आदिवासी समाज से आने वाली जोधइया बाई ने 67 वर्ष की आयु में बैगा कला बनाने की शुरुआत की और इसे एक अमिट पहचान दिलाई.
वह जंगल से खाद, लकड़ी इत्यादि चुनकर लाती और उसे बेचकर ही सालों तक अपनी आजीविका चलाती रही थी. दूसरी बैगा आदिवासी महिलाओं की तरह ही साधारण जिंदगी गुजार रही थी. मगर पति के निधन के बाद 67 वर्ष की आयु में उन्होंने पेंटिंग बनाने की शुरुआत की. उन्होंने आजिविका चलाने के लिए बैगा कला को सीखा. उन दिनों दिवंगत कलाकार और कला भवन, शांतिनिकेतन के पूर्व छात्र आशीष स्वामी जनगण तस्वीर खाना चलाते थे, जहां के स्टूडियो से जोधइया बाई ने भी पेंटिंग सीखीं.
वह पहले फर्श पर रंगोली बनाती थी, धीरे-धीरे सब्जियों पर चित्रकारी करने लगी और बाद में लकड़ी, दीवारों, कैनवास, और बाद में हैंडमेड पेपर पर भी चित्रकारी करने लगीं. उन्होंने अपने पोते के बनाए हुए मुखौटों को भी बैगा चित्रकला से सजा दिया. वह अपनी पेंटिंग्स में बाघ, बाघ देवता, जंगली सूअर और भेड़ियों, जो उनके जमीन की रक्षा करते है को शामिल करती थीं. मगर महुआ के पेड़ और अन्य स्थानीय बैगा रूपांकनों से वह अधिक लगाव रखती थीं.
उनकी पेंटिंग से बैगा जनजाति की कला एक बार फिर जीवंत होने लगी. वह बैगा चित्रकला को संरक्षित करने के साथ-साथ इसे प्रचारित करने के लिए जानी जाने लगी. ढलती उम्र में उन्होंने कई ऐसे मुकाम हासिल किए जिसके जरिए उन्हें देश दुनिया में काफी प्रसिद्धि मिली. एक समय जोधइया बाई की कला की तुलना गोंड कलाकार जगढ़ सिंह श्याम से होने लगीं थी.
साल 2019 में जोधइया बाई की पेंटिंग को इटली के शोकेस में रखा गया था. तब एक 80 वर्षीय कलाकार की पेंटिंग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचा दी थी. बैगा कला में विशिष्ट योगदान के लिए 22 मार्च 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 8 मार्च 2022 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था.
लंबे समय तक ग्रामीण कलाकारों को नजरअंदाज किया गया. उनकी कलाओं को महज साज सजावट की चीजों के रूप में देखा गया. मगर गांव में बसे असली और अलग कलाओं को अब कहीं जाकर महत्व दिया जाने लगा है. जोधइया बाई ने अन्य महिलाओं को यह सीख दी कि जिंदगी के हर पड़ाव पर कुछ नया सीखा जाता है. सीखने और आगे बढ़ने को उम्र के अंकों में जकड़ा नहीं जा सकता.