भारत में एक मुस्लिम लड़की ने सफेद कोट पहकर और स्टेथोस्कोप से मरीजों की जांच करने का सपना देखा. इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने खुद को पढ़ाई में लगा दिया और कड़ी मेहनत से ऊंचाईयों पर पहुंची.
देश की पहली मुस्लिम महिला न्यूरोसर्जन मरियम अफीफा अंसारी बनी. इनकी कहानी ने ना सिर्फ मुस्लिम समाज की महिलाओं को, बल्कि हर उस महिला के सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा है जो कई बंदिशों में उलझ कर रह जाती है. जो यह सोचती हैं कि लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा.
27 साल की उम्र में मरियम ने अपनी कड़ी मेहनत और लग्न से इस पहचान को हासिल किया. मरियम अंसारी का जन्म 1992 में महाराष्ट्र में हुआ, उन्होंने मालेगांव के एक उर्दू माध्यम स्कूल से सातवीं तक पढ़ाई की. यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह हैदराबाद गई, जहां से उन्होंने अच्छे नंबर के साथ दसवीं की पढ़ाई की, यहां वह पढ़ाई में लगातार बेहतर करती गई. इस दौरान उन्होंने दुरुशेवर गर्ल्स हाई स्कूल में गोल्ड मेडल भी हासिल किया. मरियम ने उस्मानिया मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस पढ़ाई की और इसी कॉलेज से जनरल सर्जरी में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान इन्होंने पांच गोल्ड मेडल जीते.
2019 में मरियम ने रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जनस इंग्लैंड से एमए (MRCS) डिग्री हासिल की. 2020 में डिप्लोमा ऑफ नेशनल बोर्ड कोर्स पूरा किया. न्यूरोसर्जन बनने के जुनून को मरियम ने 2020 में हासिल किया. इस साल नीट की परीक्षा में उन्होंने 137वां रैंक हासिल किया और देश की पहली मुस्लिम महिला न्यूरोसर्जन बनने की ओर कदम बढ़ाया.
अपने सपने के साथ-साथ मरियम ने अपनी मां के सपने को भी पूरा किया. मरियम की मां एक सिंगल मदर है और पैसे से एक टीचर है. उन्होंने मरियम को पढ़ाने के लिए न जाने कितने ही संघर्ष किए और अपनी बेटी को बुलंदियों पर पहुंचाया. मरियम की सफलता ने मुस्लिम समाज में लड़कियों के पढ़ने और उनके सपनों को जीने के लिए भी पर लगा दिया.
इस सफलता को पाने के बाद मरियम ने कहा कि अब मैं मिस अफीफा से डॉक्टर अफीफा बन गई हूं. मेरी सफलता भगवान की देन है और मेरी जिम्मेदारी भी. मैं इस पेशे से समाज की सेवा करने की कोशिश करूंगी और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को संदेश देना चाहूंगी कि वह कभी हार ना माने. लोग क्या कहेंगे इस पर न जाए अपने आप को कड़ी मेहनत और लग्न से साबित करें.