“मेरा अभी बस 2 बेटा हुआ है. 2 बेटों को लाने के लिए हमको पहले 3 बेटियों को पैदा करना पड़ा. जब से लेकिन बेटे पैदा हुए हैं लगता है कि बुढ़ापा अच्छा बीतेगा.” ये कहना है बिहार की राजधानी पटना में रहने वाली सुधा देवी का. सुधा देवी पटना के फुलवारी शरीफ इलाके में रहती हैं. सुधा देवी खुद घरों में झाडू पोछा का काम करती हैं. उनके पति एक मोटरसाइकिल गैराज में काम करते हैं.
16 साल की उम्र में बियाही गयी सुधा देवी पहली बार 17 साल की उम्र में मां बनी. लेकिन जब उन्हें पता चला कि उन्हें बेटी पैदा हुई है तब उनकी सारी खुशियां चूर हो गयीं. मंगनू पासवान के घरवालों ने सुधा देवी में ‘खोट’ बताया और डॉक्टर से इलाज करवाने को कहा. फुलवारी शरीफ के ही पास रहने वाले एक झोला छाप डॉक्टर ने उन्हें एक गोली दी और कहा कि इससे उन्हें पुत्र प्राप्ति होगी.
बेटे की चाह में सुधा देवी और उनके पति मंगनू पासवान ने फिर अगले 3 साल में दो और बेटियों को जन्म दिया. अब मंगनू पासवान और सुधा देवी पर 5 बच्चों की जिम्मेदारी है. उन्हें खाने के लिए दो वक्त की रोटी का भी ठिकाना नहीं हो पाता है. लेकिन फिर भी उनके चेहरों पर फिक्र की एक शिकन भी नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि उनके बेटे बड़े होकर उनके बुढ़ापे की लाठी बनेंगे. उनके बेटों की वजह से उनका भविष्य बेहतर होगा.
ये कहानी सिर्फ सुधा देवी और मंगनू पासवान की नहीं है. बल्कि ये कहानी बिहार में हर दूसरे घर की है. बेटों की चाह में अधिक बच्चों को जन्म देने की वजह से बिहार का प्रजनन दर, राष्ट्रीय प्रजनन दर से अधिक है. राष्ट्रीय प्रजनन दर 2. 0 का है. वहीं बिहार का प्रजनन दर 2.98 का है, जो देश में सबसे अधिक है. अगर स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों की माने तो राज्य के कुछ इलाके, जैसे किशनगंज में ये आंकड़ा बढ़कर 4.8 तक भी पहुंच जाता है.
बेटों की चाह क्यों?
बिहार के समाज में आज भी बेटों की चाह अधिक है. अभी भी लोगों का ये मानना है कि बेटियां बोझ होती हैं. ऐसा क्यों सोचा जाता है इसका एक जीता जागता उदाहरण हम अभी अपने आस-पास ही देख सकते हैं. बिहार में अभी लगन, यानी शादी, का सीजन चल रहा है. इसी सीजन में हमें ये भी पता चलता है कि शादियों में कितने दहेज दिए जा रहे हैं. बिहार में लड़कों का रेट कार्ड चलता है. सरकारी नौकरी में अगर क्लर्क है तो 20 लाख, अगर उच्च अधिकारी है जिस विभाग में ‘ऊपरी’ कमाई ज्यादा है तो ये रेट 40-50 लाख तक भी जाता है. अगर प्राइवेट नौकरी में डॉक्टर या इंजिनियर है तो उस लड़के का रेट भी 30-40 लाख के करीब आंकी जाती है. दहेज के दलदल से बचने और दूसरों से दहेज लेने की नीयत बेटों की चाह की सबसे बड़ी वजह है.
गर्भ निरोध का इस्तेमाल कम
नीति आयोग की 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में बड़ी संख्या में महिलाएं परिवार नियोजन से दूर हैं. परिवार नियोजन के लिए ऑपरेशन करवाने वाली मात्र 36% महिलायें हैं. वहीं गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करने वाली महीलाओं की संख्या छह जिलों में 10% से भी कम है. पश्चिम चंपारण में मात्र 3.9%, पूर्वी चंपारण में 5.5%, सारण में 8%, गोपालगंज में 8.9%, मुजफ्फ़रपुर 9.2% और सिवान में 9.4% महिलाएं ही गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर रही हैं.
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में आज भी 50% लड़कियों की शादी 15-19 वर्ष की उम्र में हो जाती है. इसके बाद भी इस उम्र की मात्र 2% शादीशुदा लड़कियां गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करती हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार 2019-21 में बिहार के शहरी क्षेत्र में महिलाओं की फर्टिलिटी रेट (प्रजनन दर) 2.4 है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह दर 3.1 है.
एनएफएचएस के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिलाओं के प्रजनन दर में लगातार गिरावट हो रही है. साल 2015-16 में शहरी क्षेत्र में यह दर तीन जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 3.4 रही थी. हाल के दशकों में भारत के प्रजनन दर में काफी गिरावट दर्ज की गयी है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 1950 में भारत में प्रजनन दर जहां 5.7 थी वहीं आज यह घटकर 2.0 हो गया है.
पुरुष नसबंदी यानी 'मर्दानगी' कम करना
एनएफएचएस-5 के रिपोर्ट के अनुसार देश में परिवार नियोजन की दर 66.7% है. इसमें पुरुष नसबंदी की दर मात्र 0.3% जबकि महिला नसबंदी दर 37.9% है. वहीं बिहार में परिवार नियोजन की दर 55.8% हैं जिसमें पुरुषों की नसबंदी दर 0.1 और महिलाओं में यह दर 34.8 रही है.
फिरोज आलम किशनगंज के पोठिया के रहने वाले हैं. फिरोज आलम के 3 बेटियां और 1 बेटा है. नसबंदी करवाने के सवाल पर फिरोज कहते हैं "पहली बात तो ये गैर-मजहबी बात है. दूसरी बात कि मर्दों में अगर कुव्वत (क्षमता) है कि वो 70 साल की उम्र में भी बाप बन सकता है तो क्या हम नसबंदी करके अपनी मर्दानगी मार लें? औरत एक समय तक ही मां बन सकती है लेकिन मर्द तो कभी भी बाप बन सकते हैं. इसे नसबंदी से खत्म नहीं करना चाहिए."
परिवार नियोजन में महिलाओं की राय बेमानी
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट कहती है कि 90% महिलाओं को परिवार नियोजन की जानकारी है, उन्होंने अपने पति से परिवार नियोजन को लेकर चर्चा भी की है लेकिन इस पर फ़ैसला लेने में मात्र 18% महिलाओं की सहमति रही है.एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट के 2018 के रिपोर्ट के अनुसार राज्य में तीन में से एक महिला को पहला बच्चा बिना किसी योजना के हुआ है.
वहीं तीन में से एक महिला के पास ही परिवार नियोजन से जुड़ी जानकारी थी. वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया की साल 2018 की रिपोर्ट कहती हैं कि बिहार का स्वास्थ्य विभाग लगभग 40 लाख जोड़ों को गर्भनिरोधक उपाय देने में विफ़ल रहा है.