बिहार के मुखिया और विकास पुरुष हाल के दिनों में ही लोकसभा चुनाव में अपने काम के दावों के ढोल पिटते हुए राज्यभर में घूमे. चुनाव में चाचा-भतीजे के विकास को लेकर खूब लड़ाई भी देखी गई. जुबानी जंग में चाचा अपने विकास का दावा कर रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर भतीजे ने अलग राग अलाप रखा था. भतीजे का दावा है कि चाचा कोई काम नहीं करते, बल्कि उनसे करवाना पड़ता है. भतीजे ने हजार बार यह दावा किया है कि जब चाचा के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे, तब उन्होंने(भतीजे) बिहार सरकार के खाते से निकाल कर जबरदस्ती नौकरियां बांटी और कई विकास कार्यों को करवाया. हालांकि इस लड़ाई में चाचा-भतीजे के राजनीति की रोटियां फूल गई और पिस आम जनता गई.
इन दोनों के दावों में एक और दावा स्वास्थ्य को लेकर किया जाता है. बिहार में जब राजद और जदयू की सरकार थी, तब तेजस्वी यादव स्वास्थ्य मंत्री थे और अचानक ही पीएमसीएच में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर दौरा किया करते थे. इधर पीएमसीएच को विश्वस्तर का बनाने के लिए 5,540 करोड़ रुपए सीएम नीतीश ने बहाए हैं. पीएमसीएच अब भी निर्माणाधीन है, लेकिन इलाज के लिए खुला है. आम जनता की लंबी लाइन आय दिन पीएमसीएच परिसर में लगी रहती है. हालांकि एक तरीके से देखा जाए तो लगता है पीएमसीएच में आम जनता का ही इलाज होता होता है, क्योंकि यहां कभी खुद पूर्व स्वास्थ्य मंत्री या मौजूदा सीएम इलाज कराने नहीं जाते हैं.
बड़े नेता इलाज करवाने क्यों नहीं जाते सरकारी अस्पताल
जब भी राज्य के नेताओं, मंत्रियों की तबीयत बिगड़ती है तो वह सभी बड़े प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करते हैं. अपने ही विश्वस्तरीय ढांचे-सांचे और डॉक्टरों पर मंत्रियों को भरोसा नहीं होता. हालांकि राज्य के मंत्रियों को उनके स्वास्थ्य के लिए सरकार की ओर से मोटी रकम दी जाती है. स्वास्थ्य देखभाल में मिली इस रकम को मंत्री शायद पूरी तरह से खर्चना चाहते हैं या शायद अपनी ही बनाई हुई व्यवस्था पर उन्हें भरोसा नहीं है.
यह बात जग जाहिर है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव अपना इलाज कराने बिहार ही नहीं बल्कि देश के बाहर गए थे. सिंगापुर से इलाज करा कर बिहार लौटने पर उनकी बेटी ने यहां की जनता को धन्यवाद दिया. लेकिन बिहार में इलाज करवा कर सिंगापुर की जनता को शुक्रिया करने का सौभाग्य नहीं दिया. इधर सीएम नीतीश भी बीमार होते ही मेदांता, पारस जैसे बड़े अस्पतालों में जाते है, ज्यादा बीमार होने पर राजधानी दिल्ली से इलाज चलता है. आज भी सीएम नीतीश के बीमार होने की खबर आई, खबर कुछ ऐसी थी कि- सीएम को हाथ में दर्द की शिकायत, इलाज के पहुंचे मेदांता.
लेकिन एक गांव में रहने वाला व्यक्ति जब बीमार होता है तो भागकर पास के पीएचसी में जाता है. गंभीर अवस्था में इलाज के लिए गांव से शहर आने के लिए उसे ना तो सड़क मिलती है और ना ही कोई गाड़ी. किसी तरह से अगर वह शहर पहुंचता भी है, तो महंगे अस्पतालों में इलाज के लिए नहीं जा पाता और सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए नंबर लगवाता है.
आज के समय में स्वास्थ्य व्यवस्था भी चरमराई हुई नजर आती है. गांव तो दूर शहरों में भी बनाए गए स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टर से लेकर मरिज तक के लिए इंतजार करते हैं. कई स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाओं और सुविधाओं की कमी के कारण मरीज इलाज कराने नहीं जाते. वहीं कई ऐसे भी स्वास्थ्य केंद्र राजधानी पटना में मौजूद है जिनकी स्थिति जर्जर देखने मिलती है.
अब इसमें बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या बिहार सरकार छोटे स्वास्थ्य केन्द्रों की मर्मती का पैसा बचाकर एक बड़े सरकारी अस्पताल पर लगाना चाहती है. अगर वह उस पर पैसा भी लगा देती है, तो कोई गुरेज नहीं, मगर इलाज के लिए सरकार के नेता,मंत्री और खुद राज्य के मुखिया प्राइवेटअस्पताल पर भरोसा क्यों करते हैं?