मुखिया हड़ताल: किन मांगों को लेकर पंचायत का काम ठप्प पड़ा है?

राज्य के 8053 पंचायतों के मुखिया का आरोप है कि मनरेगा योजना के संचालन में ग्राम पंचायतों पर लगाए गए अंकुश के कारण उन्हें ग्रामीणों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. इसके साथ ही पंचायत के विकास कार्यों के लिए भी उनके पास पर्याप्त अधिकार नहीं है

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मुखिया हड़ताल: किन मांगों को लेकर पंचायत का काम ठप्प पड़ा है?

बिहार में बीते 15 अक्टूबर से सभी ग्राम पंचायतों के मुखिया हड़ताल पर हैं, जिसके कारण ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ग्राम पंचायतों के प्रधान मनरेगा और पंचायतों में चलने वाली अन्य कल्याणकारी योजनाओं के संचालन में मुखिया के अधिकारों को कम किये जाने का विरोध कर रहे हैं.

राज्य के 8053 पंचायतों के मुखिया का आरोप है कि मनरेगा योजना के संचालन में ग्राम पंचायतों पर लगाए गए अंकुश के कारण उन्हें ग्रामीणों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. इसके साथ ही पंचायत के विकास कार्यों के लिए भी उनके पास पर्याप्त अधिकार नहीं है. 

क्या कहते हैं मुखिया?

हड़ताल का समर्थन कर रहे जमुई जिले अलीगंज प्रखंड के मुखिया प्रतिनिधि अशोक सम्राट मनरेगा संचालन में आने वाली परेशानियों को लेकर बताते हैं “मनरेगा के तहत अब केवल 20 योजनाओं के संचालन की स्वीकृति दी जाती है. इसमें भी ऊपर से आदेश है कि जल जीवन हरियाली के तहत सोख्ता निर्माण और चेक डैम का निर्माण किया ही जाना है. मैंने चार चेक डैम का निर्माण किया उसका भुगतान अबतक नहीं हुआ है. मैंने डब्लूपीओ (वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट) का निर्माण कराया उसका भुगतान नहीं हुआ है. मेरे पंचायत की लायबिलिटी डेढ़ करोड़ रूपए है. अब ऐसे में पंचायत विकास के योजनाओं के संचालन हम कैसे करेंगे.”

अशोक सम्राट बताते हैं, पंचायत विकास के लिए उनके पंचायत में अभी केवल पांच योजनायें चल रही हैं. ऐसे में सीमित कार्यकाल में उन्हें पूरा किया जाना काफी मुश्किल कार्य है. क्योंकि किसी योजना के लिए एक बार में मात्र पांच लाख रुपए स्वीकृत किये जाते हैं.

दरअसल, पंचायत में चलने वाली योजनाओं में आने वाली भ्रष्टाचार की शिकायतों पर रोक लगाने के उद्देश्य से इसी वर्ष जुलाई महीने की कैबिनेट मीटिंग में बिहार सरकार ने पंचायत निर्माण कार्य मैन्युअल को मंजूरी दी है.

इसके अनुसार, अब पंचायतों में 15 लाख से नीचे की योजनाओं में भी टेंडर प्रक्रिया का पालन करना होगा. साथ ही राशि के अनुसार कार्य को पूरा किए जाने की अवधि भी तय की गयी है. इसके अनुसार 15 लाख रुपये तक की योजना छह महीने, 15 से 50 लाख तक की योजना आठ महीने 50 लाख से एक करोड़ रुपये तक की योजना 10 माह में पुरे करने होंगे. एक करोड़ से दो करोड़ रुपये तक की योजना एक साल में जबकि दो से पांच करोड़ रुपये तक की योजना 15 महीनों में पूरे किये जाने हैं. जबकि पांच करोड़ से अधिक की योजनायें 18 महीनों में पूरे किये जाने हैं.

मांग के अनुसार लोगों को नहीं दे पाते हैं मनरेगा में काम- मुखिया

ग्राम प्रधान मनरेगा में पर्याप्त संख्या में लोगों को काम नहीं मिलने का भी मुद्दा उठाते हैं. उनका कहना है कि काम मांगने वाले लोगों की संख्या अधिक है लेकिन सरकार सीमित संख्या में ही रोजगार दे रही है.

अशोक सम्राट कहते हैं “मेरे पंचायत में 11 गांव हैं. हजारों लोग मनरेगा में काम मांगने आते हैं. लेकिन हमारी मज़बूरी है, हम एक योजना में 25 से ज्यादा लोगों को काम नहीं दे सकते हैं. सरकार का आदेश है. उसमें भी कई बार 22 से 23 लोगों को ही मंजूरी मिलती है. अब आप हिसाब लगा सकते हैं कि एक पंचायत से हम 500 से ज्यादा लोगों को काम नहीं दे सकते हैं.”

मुखिया बताते हैं, पहले योजनाओं के संचालन को लेकर कोई सीमा नहीं थी. एक पंचायत में 20 से ज्यादा योजनायें चलाई जाती थी. अगर काम मांगने वाले लोग अधिक रहते थे है तो एक योजना में 50 से 100 मजदुर भी काम करते थे.

सम्राट कहते हैं “अगर पंचायत में 10 लाख की कोई योजना शुरू की गयी है तो उसमें बहुत मुश्किल से 40 मजदुर काम करते हैं. वो भी बहुत बोलने के बाद.  हमारे पास डिमांड करने का अधिकार है लेकिन लॉगइन का अधिकार ब्लॉक के ऑपरेटर के पास है. पंचायत में बीते चार माह से नए लोगों का जॉब कार्ड भी नहीं बनाया जा रहा है.”

राज्य में मनरेगा के तहत 91.1 लाख लोग कार्य कर रहे हैं, जबकि पंजीकृत मजदूरों की संख्या 160.5 लाख है. यानि काफी संख्या में मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है. एक्टिव मजदूर यानि काम कर रहे मजदूरों की संख्या कम होने का पहला कारण काम ना मिलना है. वही, दूसरा कारण न्यूनतम मजदूरी भी है. 

योजनाओं में कटौती

बिहार मुखिया संघ के प्रदेश के अध्यक्ष मिथिलेश कुमार बताते हैं “14 साल से  पंचायत में योजनाओं की प्रशासनिक स्वीकृति का दायरा नहीं बढ़ाया गया है. जो काम पहले पांच लाख में होता था आज उसकी लागत 10 से 12 लाख हो चुकी है. ऐसे में योजनाओं को दो तीन भागों में बांट कर पूरा करना पड़ता है. इससे योजनाओं की लागत और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ता है.”

अहियापुर पंचायत के मुखिया एक घटना पर बताते हैं “अभी इसी वर्ष मैंने दहपर से सरगांव तक सड़क निर्माण का कार्य पूरा करवाया है. इसकी दूरी लगभग दो किलोमीटर है. लेकिन उसकों पूरा करने में छह महीने से ज्यादा का समय लग गया. क्योंकि एक बार में स्वीकृति नहीं मिला.”

पंचायत में मनरेगा के अलावे अन्य योजनाओं का भी संचालन भी नहीं हो पा रहा है. पंचायत में कबीर अंत्येष्टि योजना और पीएम आवास योजना, पीएम विश्वकर्मा योजना का संचालन नहीं हो रहा है. जिसके कारण मुखिया को ग्रामीणों के रोष का सामना करना पड़ रहा है.

अशोक बताते हैं “अब तो पंचायत में निकलना मुश्किल हो गया है. लोग बहुत कुछ सुनाते हैं बस, मारते ही नहीं है. मुझे मुखिया बने तीन साल हो गया है लेकिन एक भी आवास हम नहीं दे पाए हैं. लोग पूछते हैं घर नहीं दीजिएगा. लेकिन उनको क्या पता, 2019 से ही पीएम आवास का पोर्टल नया नाम जोड़ने के लिए खुला नहीं है.”

“पहले गांव में किसी की मौत होने पर उनके घर जाते थे. उनको कबीर अंत्येष्टि योजना के तहत तीन हजार रुपए की आर्थिक मदद देते थे. लेकिन अब ये ऑनलाइन हो गया है. पिछले तीन साल में 40 लोगों का ऑनलाइन आवेदन किए लेकिन पेमेंट हुआ मात्र छह लोगों का. अब ये लोग भी बार-बार आते हैं कि पैसा कब आएगा.”

पीएम विश्वकर्मा योजना का संचालन भी पंचायतों में नाम मात्र का हो रहा है. कोदवरीया पंचायत से 309 लोगों ने योजना के लिए आवेदन दिया है लेकिन उनके ट्रेनिंग और रोजगार की व्यवस्था अबतक नहीं की गयी है.

क्या है मुखिया संघ की मांग

हड़ताल पर गए मुखिया संघ ने सरकार के समक्ष अपनी कुछ मांगे रखी हैं. मांग पूरी किये जाने के बाद ही वे कार्य पर लौटने की बात कर रहे हैं. मुखिया संघ की प्रमुख मांग है कि सरकार मनरेगा में योजनाओं के संचालन पर लगी सीमा को समाप्त करे. साल  2008 से ही मनरेगा अंतर्गत संचालित योजनाओं की प्रशासनिक स्वीकृति का दायरा 5 लाख तक निर्धारित है. जिसे पंचायत स्तर पर बढ़ाकर 15 से 20 लाख किया जाए.

मनरेगा में पंचायत स्तर पर परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु पंचायत लॉगइन से ही जॉब कार्ड, योजनाओं की एंट्री डिमांड, वेज लिस्ट, मैटेरियल लिस्ट आदि समस्त कार्य किए जाने का प्रावधान है. साथ ही मजदूरों का भुगतान, सामग्री का भुगतान पंचायत स्तर से करने का प्रावधान है. साल 2012 तक मुखिया एवं पीआरएस आदि के माध्यम से भुगतान होता था लेकिन विगत कुछ वर्षों से भुगतान कार्यक्रम पदाधिकारी एवं प्रखंड लेखपाल द्वारा किया जाता है.

मुखिया संघ का कहना है कि दोनों व्यक्ति संविदा कर्मी है. संविदा कर्मियों के माध्यम से भुगतान नियमानुकूल नहीं है. जब प्रशासनिक स्वीकृति पंचायत स्तर से दी जाती है तो फिर भुगतान प्रखंड लेवल से क्यों?

मनरेगा में तीन वर्ष पूर्व हल्की मशीनरी के प्रयोग की अनुमति थी, जिसे बंद कर दिया गया है. जमुई जिले के दरखा पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि रोहित कुमार राज इसपर कहते हैं “गांव की गलियों में मिट्टी मिलना मुश्किल काम है इसलिए अधिक दूरी से मिट्टी लाना पड़ता है. मजदूरों को अधिक दूरी से मिट्टी लाना पड़ता है. अगर छोटा ट्राली उपयोग में लाया जाये तो काम तेजी से होगा और मजदूरों को भी आसानी होगी. साथ ही रोड निर्माण में रोलर आदि की आवश्यकता है ताकि योजनाओं की गुणवत्ता बेहतर हो सके.”

राज्य के कई जिलों में कठोर मिट्टी उपलब्ध है जिसके कारण सामान्यतः राज्य के मजदूर निर्धारित घन फिट मिट्टी नहीं काट पाते हैं. मुखिया संघ की मांग है कि प्रति व्यक्ति घन फिट मिट्टी का निर्धारण नए शिरे से किया जाए.

मुखिया संघ मनरेगा में मजदूरी दर बढ़ाये जाने की भी मांग कर रहे हैं. उनका कहना सरकारी दर 310 रुपए है. जबकि उन्हें 350 से 400 रुपये देने पड़ते हैं. वहीं विभाग द्वारा लेबर मद की राशि भी समय पर उपलब्ध नहीं कराई जाती है. वर्तमान में इस राशि का भुगतान तीन माह से अधिक समय पर किया जा रहा है. साथ सामग्री मद का भुगतान भी समय पर नहीं होता है जिसके कारण योजनाओं के क्रियान्वयन पर प्रतिकूल असर पड़ता है.

बिहार मुखिया संघ के प्रदेश के अध्यक्ष मिथिलेश कुमार हड़ताल को लेकर बताते हैं “हमारी मांग को लेकर कई बिंदुओं पर सचिव से हमारी वार्ता हुई है. उनका कहना है फिलहाल कुछ मांगे पूरी की जायेंगी और शेष मांग को कैबिनेट बैठक में मंजूरी दिलाई जाएगी.”