आज देश में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जा रहा है. मेजर ध्यानचंद की जयंती के मौके पर खेल दिवस की शुभकामनाएं दी जा रही है. हॉकी प्लेयर मेजर ध्यानचंद के खेल में योगदान अतुलनीय है. देश में जहां हम आज खेल दिवस मना रहे हैं, वहां आज भी राष्ट्र का कोई अपना अधिकारिक खेल नहीं है. समय-समय पर हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल इत्यादि को लोकप्रियता के कारण आधिकारिक कहने की भूल की जाती रही है. मगर अब तक सरकार किसी एक खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं दे पाई है. संभवत है इसके पीछे कारण कई होंगे, जिसमें कुछ राजनीतिक तो कुछ खेल प्रेमियों से जुड़े हुए हो सकते हैं.
खेल दिवस के मौके पर आज बिहार सीएम राज्य के पहले खेल विश्वविद्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे हैं. राजगीर में 750 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से खेल विश्वविद्यालय सह अकादमी का उद्घाटन हो रहा है. सीएम का मानना है कि इसके शुरू होते ही बिहार में खेल को नई दिशा मिल जाएगी.
राज्य में खेलों की स्थिति बुनियादी स्तर से काफी दयनीय देखी जाती है. बुनियादी स्तर यानी राज्य में स्कूल समय से ही खेल बच्चों के बीच नदारद रहा है. राज्य के कई ऐसे सरकारी स्कूल है जहां खेलने के लिए पर्याप्त जगह मौजूद नहीं है. जगह की कमी के कारण स्कूलों में शारीरिक गतिविधियां ना के बराबर होती हैं. खेल के नाम पर इंडोर गेम्स होते हैं, बच्चों ने दावा किया है कि वह भी केवल सजावट मात्रा के लिए है.
बिहार सरकार राज्य में खेल को लेकर बीते कुछ सालों से जागरूक नजर आ रही है. जिसके तहत पहले राज्य में मेडल लाओ नौकरी पाओ जैसी योजना शुरू की गई. इसके बाद 2024 में ही अलग खेल विभाग का गठन किया गया. जिसके मंत्री सुरेंद्र महतो का खेल आईक्यू हाल में ही टेस्ट हुआ. ओलंपिक के दौरान उन्होंने विनेश फोगाट को बिहार की बेटी बताया था. इस घटना से खेल मंत्री की काफी किरकिरी हुई थी. खैर सरकार को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनके आधे से ज्यादा मंत्री अपने विभाग में पारंगत नहीं है. इन्हें बस मंत्री पद पर बैठकर योजनाओं पर हस्ताक्षर करने और बयान बाजी की जिम्मेदारी दी गई है.
खेलों की बात करें तो बिहार सीएम ने राजगीर खेल विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा साल 2007 में की थी. मगर इसके बनते-बनते 2024 आ गया. 17 सालों में भी इस विश्वविद्यालय का काम मात्रा 55% तक ही पूरा हुआ है.
इधर नितीश सरकार ने अगले महीने से पंचायत स्तर पर भी खेल क्लब के गठन का आदेश दिया है. यह व्यवस्था खेल विभाग के द्वारा ही शुरू की जाएगी, जिससे राज्य के 81 हजार पंचायत को लाभ मिलेगा. सरकार की योजना है कि पंचायत में खेलने के लिए पर्याप्त मैदान मौजूद हों, ताकि हर गांव से प्रतिभावान खिलाड़ी निकल सके. सरकार की योजना अभी धरातल पर शुरू नहीं हुई है. अगले महीने से विभाग इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम शुरू करेगा. मगर इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि घोषणा के बाद इसकी शुरुआत में 17 साल ना लगे.
सवाल उठता है कि राज्य में खेलों के प्रति इतनी जागरुकता कम क्यों है. जिस राज्य को पढ़ाई-लिखाई में टॉपर माना जाता है, वहां के लोग खेल को महत्व क्यों नहीं देना चाहते. राज्य सरकार के कछुए की चाल वाले विकास ने भी खेल और उसके महत्व को कहीं ना कहीं पीछे धकेल दिया है. जब तक राज्य के लोगों में खेल को लेकर जागरूकता नहीं बढ़ेगी, तब तक बड़े विश्वविद्यालयों और अकादमी खोल देने से मानसिकता नहीं बदलेगी. नीतीश सरकार को इस बदलाव के लिए पुरुषों और महिलाओं की सोच के आधार पर काम करना होगा जिसमें कुछ साल जरूर लगेंगे मगर बदलाव निश्चित होगा.