बिहार में लागू शराबबंदी से NDA नाखुश, विधानसभा में गरमाया शराब बैन हटाने का मुद्दा

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के दोरान जीतन राम मांझी ने जनता के बीच नीतीश सरकार के खिलाफ जनता से शराब प्रतिबंध हटाने वाले को ही वोट देने का आवाहन कर दिया था.

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शराबबंदी से NDA नाखुश

शराबबंदी से NDA नाखुश

बिहार में 8 सालों से लागू शराबबंदी पर आज भी समय-समय पर सियासत होती है. राज्य में लागू पूर्ण शराबबंदी कानून को लेकर एनडीए सरकार में शामिल नेता-मंत्री भी असंतुष्ट नजर आते हैं. तो वहीं विपक्ष की ओर से भी इसे मुद्दा बनाया जाता है. इस बार विधानसभा चुनाव में शराबबंदी एक बार फिर मुद्दा बनता हुआ नजर आ रहा है. चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर ने ऐलान कर दिया कि राज्य में उनकी सरकार बनते ही 24 घंटे के अंदर शराबबंदी कानून वापस ले लिया जाएगा. जनता के बीच शिक्षा, रोजगार की बात करने वाले प्रशांत किशोर के मुंह से शराबबंदी को हटाए जाने का बयान काफी अटपटा लगता है, मगर सच्चाई है कि बिहार में शराब बंदी समय-समय पर चुनावी मुद्दा बना है.

शराब का यह चुनावी कार्ड पहली बार नहीं खेला गया है, बल्कि इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है. केंद्रीय मंत्री और एनडीए में शामिल जीतन राम मांझी भी चुनाव में शराबबंदी कार्ड खेलते नजर आ चुके हैं. बीते साल से ही लोकसभा चुनाव की तैयारियों के दोरान उन्होंने 

हालांकि सत्ता के मुंह के आगे यह आवाहन महज दिखावा साबित हुआ. चुनावी गठबंधन में मांझी खुद शराब पर बैन लगाने वाली सरकार के साथ चले गए.

जीतन राम मांझी को शराब और शराबियों के लिए कई बार बोलते सुना गया है. आज भी वह शराब नीति को लेकर बातचीत करते हुए यह कह बैठे हैं कि वह खुद शराब पीते हैं. उन्होंने मीडिया के सामने कबूल किया कि वह खुद बिहार में शराब पीते हैं और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाता. ऐसे में केंद्रीय मंत्री मांझी अपनी सरकार पर भी सवाल उठा रहे हैं. अपने सरकार के सुशासन और प्रतिबंधों की असफलता का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं. मांझी के इस बयान से यह भी साफ हो रहा है कि कैसे राज्य में आम जनता के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जाता है और शक्तिशाली लोगों को छूट दी जाती है.

बिहार में शराबबंदी लागू करने वाले सीएम पर ही शराब की दुकानों को पंचायत स्तरों पर खोलने का आरोप लगता है. 2016 में जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार से श्वेतपत्र जारी कर पंचायतों में शराब दुकान खोलने के लिए माफी मांगने कहा था.

2016 में सीएम नीतीश कुमार ने सत्ता में दोबारा लौट के बाद शराबबंदी कानून को लागू किया था. सीएम ने इसे अपनी प्राथमिकताओं में से एक बताया था. उन्होंने ने कहा था कि अतीत में शराबबंदी कानून को पूर्णत लागू करने का कोई रिकॉर्ड नहीं रहा है.  जिन राज्यों में शराबबंदी कानून पहले से लागू है वहां शक्तिशाली और ताकतवर लोग भी मौजूद है, जो इसे असफल बनाने में लगे हुए हैं…..तो क्या ऐसे ही बिहार में यह ताकतवर लोग उनके ही एनडीए सरकार में शामिल होकर शराबबंदी को ठेंगा दिखा रहे हैं?

राज्य में शराबबंदी के कारण गरीब लोगों की पहुंच इससे दूर हो गई है, जिस कारण वह सस्ते और सुगम पहुंच के लिए जहरीली शराब का सेवन कर बैठते हैं. जहरीली शराब के कारण बिहार में हजारों मौत हुई है, जिस पर सीएम का जवाब आता है जो पियेगा वह मारेगा ही. मगर सत्ता की कुर्सी पर बैठे सुशासन बाबू यह नहीं सोच पाते कि उनकी पुलिस प्रशासन की भी इसमें बड़ी नाकामी है. अगर जहरीली शराब बनेगी ही नहीं तो बिकेगी नहीं और कोई मारेगा भी नहीं.

मौजूदा समय में एनडीए में शामिल लोजपा(रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने जहिरली शराब से मौत में मुआवजे की मांग उठाई थी. उन्होंने कहा था कि 2016 में गोपालगंज में 19 लोग मरे थे, तब उनके परिवार वालों को सीएम ने मुआवजा दिया था. सीएम की शराब नीति स्पष्ट नहीं है. वह कभी खुद ही घर-घर में शराब की दुकानें खुलवाते थे और अब पूर्णत शराबबंदी कानून लागू कर दिया.

2022 में छपी बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 1 अप्रैल 2016 से दिसंबर 2022 तक शराब मामले में 5 लाख केस दर्ज हुए थे, जिसमें 6.5 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से 1.5 करोड़ लीटर विदेशी शराब जब्त की गई थी, जबकि करीब 1 करोड़ लीटर अवैध देशी शराब थी. पुलिस ने 80 हजार से ज्यादा अवैध शराब के कारोबार में शामिल गाड़ियों को भी पकड़ा था.

वही इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक बिहार में जहरीली शराब के कारण दिसंबर 2022 तक आधिकारिक तौर पर 300 लोगों की मौत हुई थी. यह आधिकारिक आंकड़ा सिर्फ वही है जो पुलिस ने दर्ज किया. इसके अलावा भी कई मौत जेल और पुलिस प्रशासन के डर से नहीं दर्ज कराई गई हैं.

समय-समय पर बिहार में शराबबंदी की समीक्षा को लेकर भी मांग उठती है. दरअसल राज्य में शराबबंदी के बाद राजस्व नुकसान को एक बड़ा मुद्दा बनाया जाता है. जदयू से अलग हो चुके आरसीपी सिंह ने भी राजस्व नुकसान को लेकर कहा था कि हर महीने शराबबंदी के कारण करीब 6000 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है. तो वही सीएम पर आरोप लगाते हैं कि शराबबंदी की आड़ में राज्य के उन अपराधियों की बड़ी कमाई कराई जा रही है जो इसके अवैध कारोबार से जुड़े हुए हैं. मगर इन सब से बेफिक्र सीएम कुमार लगातार महिलाओं के हित का हवाला देते है. सीएम ने कहा कि शराबबंदी के कारण महिलाओं को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचा है. इसके कारण महिलाओं पर घरेलू हिंसा में कमी आई है और साथ ही खाने-पीने पर खर्च भी अधिक हो रहा है मगर इसके इतर की सच्चाई को केन्द्रीय मंत्री मांझी ने खोल दिया है.

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