कन्या उत्थान योजना में लापरवाही, ज़रूरतमंद बच्चियों को नहीं मिल रहा लाभ

बिहार के विभिन्न जिलों में जन्म लेने वाली 12 हजार से अधिक बेटियां इस योजना के लाभ से वंचित रह गई है. इसमें मुजफ्फरपुर, नालंदा, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, पूर्णिया, रोहतास, सहरसा, सारण, सुपौल, बांका, भोजपुर, बक्सर, जमुई, कटिहार और किशनगंज शामिल हैं.

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मां के साथ बच्चे

“मेरी बेटी अक्टूबर में एक वर्ष की हो जाएगी. इस दौरान उसको जो भी टीका दिलवाना था वो पड़ा है. लेकिन ना तो उसके जन्म के समय और ना अबतक हमको एक भी पैसा सरकार से मिला है. योजना के बारे में सुने है कि बेटी होने पर पैसा मिलता है, लेकिन कहां मिलेगा, कैसे मिलेगा ये सब नहीं पता है.” यह कहना है नालंदा जिले के सरगांव, गांव कि रहने वाली ब्यूटी कुमारी का.

ब्यूटी तीन बच्चों की मां है, जिनमें दो बेटियां हैं. लेकिन ब्यूटी का कहना है कि जानकारी के अभाव में उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल सका है. ब्यूटी की बड़ी बेटी छह वर्ष की जबकि छोटी दो माह बाद एक वर्ष की हो जाएगी. लेकिन दोनों बेटियों को बिहार सरकार द्वारा संचालित 'मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना' के तहत मिलने वाली प्रोत्साहन राशि का लाभ नहीं मिल सका है.

ब्यूटी बताती हैं “बड़ी बेटी के जन्म के समय केवल 1400 रूपया मिला था, जबकि बहुत लोग से सुने थे कि पहली बेटी होने पर पांच हजार रुपया मिलता है.”

कन्या उत्थान योजना के तहत बच्ची के जन्म के बाद मां को दो हजार रूपए दिए जाते हैं. जबकि केंद्र कि मातृ वंदना योजना के तहत गर्भवती महिला को अलग-अलग किस्तों में पांच हजार रुपए दिए जाते हैं. 

ब्यूटी के सभी बच्चों का जन्म पंजीकरण हुआ है और नियमित तौर पर सभी का टीकाकरण भी हुआ है. 

गांव में काम करने वाली आशा और आंगनवाड़ी केंद्र की सेविका टीकाकरण के समय आकर बच्चों को ले जाती हैं. लेकिन दो साल तक टीकाकरण पूरा होने के बाद जो राशि बच्चियों के अभिभावक को मिलनी चाहिए वह इन्हें नहीं मिल सका है. साथ ही इन महिलाओं को गर्भावस्था के समय और उसके बाद मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिली हैं.

दरअसल बिहार सरकार राज्य में कन्या भ्रूण हत्या में गिरावट लाने और उनके जन्म को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से साल 2018 में 'मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना' लाई गई थी. योजना के तहत लड़की के जन्म पर 2000, एक वर्ष पूरा होने पर 1000, दो वर्ष पूरा होने एवं सम्पूर्ण टीकाकरण कराने पर 2000, स्कूल में नामांकन के बाद पहली से बारहवी कक्षा तक पोशाक (school uniform) के लिए राशि, सातवीं से बारहवी तक सेनेटरी नैपकिन के लिए राशि और दसवी से स्नातक तक की परीक्षा पास करने पर भी प्रोत्साहन राशि देती है. पूरी योजना में राज्य सरकार एक लड़की को 94,100 रूपए देती है.

टीकाकरण का डाटा नहीं हुआअपलोड

कहावत है, कितनी भी बड़ी योजना बना लो लेकिन अगर उस योजना को समय पर धरातल पर नहीं उतारा जाए तो सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती है. इस कहावत को चरितार्थ करते नजर आते है बिहार सरकार के अधिकारी. जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर पहुंचना था उन्हीं की उदासीनता के कारण आम जनता को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के तहत बच्चियों के दो साल का होने और सम्पूर्ण टीकाकरण होने के बाद मिलने वाली दो हजार की राशि विभाग के अधिकारीयों और कर्मचारियों के उदासीनता के कारण नहीं मिल सका है.

टिका के विवरण

तिरहुत क्षेत्र के अपर निदेशक डॉ ज्ञान शंकर द्वारा हाल ही में योजना की कि गई समीक्षा के अनुसार “बिहार के विभिन्न जिलों में जन्म लेने वाली 12 हजार से अधिक बेटियों को इस योजना के लाभ से वंचित रह गई है. राज्य के विभिन्न अस्पतालों में 1 अप्रैल से 15 जुलाई तक 20,361 बेटियों ने जन्म लिया है. इसमें दो वर्ष की उम्र तक होने वाली 11,989 बेटियों को सभी प्रकार का टीकाकरण भी हुआ है. लेकिन इनका ई-जननी पोर्टल पर डाटा अपलोड नहीं किया गया, जिसके कारण बच्चियों के अभिभावक को दो हजार राशि नहीं मिल सकी.''

बच्चियों के अभिभावक संबंधित कार्यालय का चक्कर लगाते-लगाते उम्मीद छोड़ दे रहे हैं. और ब्यूटी जैसे कुछ अभिभावक जिन्हें कभी इसकी कोई जानकारी ही नहीं मिल पाती है कि उन्हें कहां से आवेदन करना है? अपर निदेशक ने समीक्षा रिपोर्ट में जिलावार डाटा भी जारी किया है जिसमें वैसे जिले भी सामने आए हैं जहां से एक भी बच्ची का डाटा पोर्टल पर अपलोड नहीं हुआ है. इसमें मुजफ्फरपुर, नालंदा, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, पूर्णिया, रोहतास, सहरसा, सारण, सुपौल, बांका, भोजपुर, बक्सर, जमुई, कटिहार और किशनगंज शामिल हैं. यहां 15 जुलाई तक जन्म लेने वाली एक भी बेटियों का डाटा दर्ज नहीं किया गया है.

पटना में 1017 में मात्र 11, भागलपुर में 1411 में मात्र 14, दरभंगा में मात्र तीन, गया में दो, खगड़िया में दो, लखीसराय में दो, मुंगेर में एक, सीतामढ़ी और सिवान में दो-दो बेटियों की प्रविष्टि अपडेट की गई है. इस प्रकार सभी 38 जिलों में मात्र 365 का ही डाटा ई-जननी पोर्टल पर अपलोड किया गया.

इस रिपोर्ट के बाद अपर निदेशक ने सिविल सर्जन को पत्र लिखकर खेद जताया है और कहा कि ऐसी लापरवाही उदासीनता को दर्शाती है. उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर योजना के तहत संपूर्ण टीकाकरण के लाभार्थियों के आंकड़ों को समय से ई-जननी पोर्टल पर अपलोड करने के निर्देश दिए हैं.

लिंगानुपात में कमी

राज्य में लिंगानुपात (प्रति हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या) की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू की गयी योजना को लेकर अधिकारीयों कि यह लापरवाही चिंता का विषय है. साल 2011 कि जनगणना के अनुसार बिहार में एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 918 थी जो राष्ट्रीय औसत (लिंगानुपात  948) से कम थी.

वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-20) की रिपोर्ट में भी राज्य के विभिन्न जिलों में इसमें गिरावट के आंकड़े जारी हुए थे. जिलावार देखने पर मुज्जफरपुर की स्थिति सबसे खराब है, जहां 1000 पुरुषों पर मात्र 685 महिलाएं हैं. जबकि NFHS-4 के समय यहां लिंगानुपात 930 था. मुज्जफरपुर के बाद सारण जिलें में भी गिरावट दर्ज कि गयी हैं. यहां NFHS-4 (लिंगानुपात 976) के मुकाबले NFHS-5 में लिंगानुपात 779 दर्ज किया गया है.

कन्या उठान योजना

दरभंगा में लिंगानुपात 982 से घटकर 812, मधुबनी में 954 से घटकर 805 हो गयी है. समस्तीपुर जिलें में जहां लिंगानुपात 1049 था इसमें भारी गिरावट गरज हुई है. NFHS-5 के अनुसार लिंगानुपात घटकर 890 हो गया है. शेखपुरा में भी 1015 से घटकर 888 हो गया है. वहीं लखीसराय में 934 से घटकर 886 जबकि औरंगाबाद में 905 से घटकर 886 रह गया है.

हालांकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) के रिपोर्ट में औसतन आंकड़े में सुधार दर्शाया गया है. जिसके अनुसार राज्यभर में औसतन 1000 पुरुष पर 1090 महिलाएं हैं. वहीं सात वर्ष से कम उम्र के बच्चियों में यह आंकड़ा घटकर 916 रह जाता है.

ऐसे में यह जरुरी है कि सरकार द्वारा कन्या जन्म दर को बढ़ाने के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं के संचालन में लापरवाही ना की जाए. वहीं संबंधित अधिकारी और नेता भी नियमित अन्तराल पर इन योजनाओं की समीक्षा करें. अभी ‘राज्य में कन्या उत्थान योजना’ के तौर पर चर्चा केवल स्नातक के बाद मिलने वाली 50 हजार की प्रोत्साहन राशि की ही ज्यादा होती है. जरूरत है कि इसके तहत संचालित हो रहे अन्य स्कीमों की भी चर्चा और निगरानी हो.