साहित्य अकादमी पुरस्कार 2024 की घोषणा हुई. इनमें 21 भाषाओं के लिए लेखकों, नाटककारों, उपन्यासकारों, कवियों को चुना गया है. हिंदी के लिए कवियित्री गगन गिल के नाम का चयन हुआ है. उन्हें यह सम्मान ‘मैं जब तक आई बहार’ के लिए दिया जाएगा.
कवियित्री गगन गिल का जन्म 1959 में दिल्ली में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली से ही पूरी की. इंग्लिश में एमए करने के बाद उन्होंने बतौर पत्रकार करियर की शुरुआत की. 1983-93 लगभग एक दशक तक वह टाइम्स आफ इंडिया समूह और संडे ऑब्जर्वर में कुछ समय के लिए साहित्य संपादन के काम से जुड़ी रहीं. 1984 में उन्होंने पहला काव्य संग्रह ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ प्रकाशित किया. इस रचना से ही वह चर्चा में बन गई, 1984 में उन्हें भारत भूषण अग्रवाल से नवाजा गया. 1992-93 में वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका में पत्रकारिता की नीमेन फैलो बनी.
मगर बाद में वह साहित्य के क्षेत्र में पूरी तरह रच बस गई और लिखना शुरू किया. गगन गिल की मां दिल्ली में प्रधानाचार्य और पंजाबी की सुप्रसिद्ध लेखिका रहीं. जिनसे कवियित्री गगन को भी साहित्य का बोध हुआ और वह 20 की उम्र से ही कविताओं में ढलने लगी. कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गगन गिल की रचनाओं को अमेरिका-इंग्लैंड समेत देश-विदेश के कई यूनिवर्सिटीज में पढ़ाया जाता है.
गगन गिल की रचनाओं में महिलाओं के दुख और उदासियां पढ़ने मिलती हैं. कुछ मौकों पर उन्हें महादेवी वर्मा भी कहा गया.
गगन गिल ने अब तक पांच कविता संग्रह और चार गद्य कृतियां लिखी हैं. इनके पांच काव्य संग्रह रचनाओं में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ (1989), ‘अंधेरे में बुद्ध’ (1996), ‘यह आकांक्षा समय नहीं’ (1998), ‘थपक थपक दिल थपक थपक’ (2003), ‘मैं जब तक आई बहार’ (2018) शामिल है. इसके साथ ही दिल्ली में उनींदे (2000), अवाक (2008), देह की मुंडेर पर (2018) और इत्यादि (2018) गद्य कृतियों में शामिल है.
इन्हें भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (1984), संस्कृति सम्मान (1989), केदार सम्मान (2000) हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान (2008) और द्विजदेव सम्मान (2010) दिया गया. इसके अलावा अवाक वृतांत है, जो कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर लिखा गया है. इसे बीबीसी ने सर्वश्रेष्ठ यात्रा वृतांत के तौर पर चुना था.
कवित्री गगन गिल सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं पर भी बखूबी सवाल करती हैं. किसान आंदोलन के समय उन्होंने किसानों के पक्ष में लेखकों से एक साझा बयान जारी करने का अनुरोध किया था. अगस्त 2022 में बिलकिस बानो के गुनहगारों को रिहा करने पर भी कवयित्री ने आवाज उठाई थी. उन्होंने आग्रह के साथ फैसले के खिलाफ लड़ने के लिए एक अलग सा मानवीय तरीका सुझाया था. वह कहती हैं कि इस पर लोगों की पत्तियों से बात करनी चाहिए. पत्नियां चाहती हैं कि कुछ हो, कोई ना कोई कुछ करें.