भारत में महिला के रूप को अमूमन साड़ियों, सलवार- कमीज, लहंगा, घुंघट में सोचा जाता है. भारतीय महिलाओं को लेकर यह मानसिकता बन चुकी है कि वह नाजुक, घरेलू कामकाज तक सिमित हैं. महिलाओं के पहनावे से लेकर उनके काम के क्षेत्र बांधने की भी कोशिश की. मगर इसी देश की महिलाओं ने इन तस्वीरों को बदला है.
राजस्थान के बीकानेर जिला की दलित महिला बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह ने विश्व स्तर पर भारतीय महिला की अलग दमदार पहचान बनाई है. उन्होंने उस बॉडीबिल्डिंग खेल जिसे पुरुष समाज तक सीमित रखा जाता है, उसमें देश का नाम रौशन किया है. इस खेल को चुनौतियों भरा समझ कर महिलाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाता.
प्रिया सिंह की शादी 8 साल की उम्र में हो गई थी. शादी के बाद वह ससुराल आ गई, मगर यहां आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने काम करने का फैसला किया. महज पांचवी क्लास तक पढ़ाई करने के कारण उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी. किसी की सलाह पर प्रिया ने जिम में नौकरी शुरू की. मजबूरी में जिम पहुंची प्रिया ने यह कभी सोचा भी नहीं होगा कि यहीं से उनके सफलता की कहानी शुरू हो जाएगी.
साल 2022 में 39वें अंतरराष्ट्रीय महिला बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता पटाया में आयोजित हुआ. इस प्रतियोगिता में प्रिया ने गोल्ड मेडल जीतकर देश का मान-सम्मान बढ़ाया. उनके इस कदम ने भारतीय महिलाओं को बॉडीबिल्डिंग जगत में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है.
प्रिया ने जिम में नौकरी के दौरान कड़ी मेहनत की और ट्रेनिंग ली. इस दौरान उन्हें पता चला कि बॉडीबिल्डर के क्षेत्र में महिलाएं ना के बराबर है. इसे चुनौती की तरह देखते उन्होंने बॉडीबिल्डिंग कंपटीशन में भाग लेने की तैयारी शुरू की. मगर इस समय उनके कपड़े को लेकर लोग सवाल उठने लगे. परिवार और पति की सहमति तो थी, मगर समाज की ओर से एक दबाव बनाया जा रहा था. रिश्तेदारों ने भी परिवार से दूरी बना ली. जिस कंपटीशन में उन्होंने हिस्सा लिया वहां बिकिनी कॉस्ट्यूम पहनना था. घुंघट समाज से ताल्लुक रखने के कारण उनके बिकिनी कॉस्ट्यूम पर लोगों का नजरिया निराश करने वाला था.
पहली बार प्रिया 2018 में बॉडीबिल्डिंग के मंच पर गई और राजस्थान की पहली सफल महिला बॉडीबिल्डर बनी. यहां से शुरू हुए सफर को उन्होंने कभी रुकने नहीं दिया. मगर उनके सफलता को वाहवाही देने वाले लोग नाममात्र के थे. 2022 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल करने के बावजूद उन्हें एयरपोर्ट पर स्वागत करने परिवार के चुनिंदा लोगों के अलावा कोई नहीं पहुंचा. ना सरकार की ओर से उनके इस मुकाम को पहचान दी गई.
आज वह लाखों महिलाओं भले ही वह शादीशुदा हो या कुंवारी उनके लिए बॉडीबिल्डिंग क्षेत्र में एक आइकन है. महिलाओं के लिए बॉडीबिल्डिंग की राह को प्रिया ने थोड़ा आसान बनाया, मगर वह मानती है कि समाज की मानसिकता बेटियों को बेड़ियों में जकड़े हुए हैं.
प्रिया कहती हैं कि इस समाज में आज भी संकुचित मानसिकता वाले लोग हैं. यह लोग जातिवाद, बेटी को पीछे खींचने वाली मानसिकता से भरे हुए हैं. समाज में लोग बहू को घूंघट में रखने और चूल्हा-चौका तक ही बांधे रखने की सोच रखते हैं.