कविताओं के जरिए महिलाओं के लिए आवाज उठाने वाली दलित लेखिका रजनी तिलक

समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव सदियों से चला आ रहा है. मगर इसके समानांतर ही दलितों के साथ हो रहे भेदभाव की भी चर्चा होनी चाहिए, जिसके लिए दलित लेखिका रजनी तिलक ने आवाज बुलंद की.

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सौम्या सिन्हा
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लेखिका रजनी तिलक

लेखिका रजनी तिलक

मैं स्त्री हूं, जीरो हूं, जीरो से संख्या में बदल सकती हूं और अपना स्थान रखती हूं… लेखिका रजनी तिलक द्वारा लिखी गई यह कविता की पंक्ति उनके लिए है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर आते हैं. समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव सदियों से चला आ रहा है. मगर इसके समानांतर ही दलितों के साथ हो रहे भेदभाव की भी चर्चा होनी चाहिए. दलित समुदाय से आने वाली महिलाओं पर अधिक अत्याचार और प्रताड़नाएं होती हैं, जिनके खिलाफ आवाज उठाने में सामाजिक कार्यकर्ता और दलित लेखिका रजनी तिलक का बड़ा योगदान रहा है.

27 में 1958 को दिल्ली में जन्मी रजनी तिलक का असल नाम तिलक कुमारी था. मगर अपने एक्टिविज्म की शुरुआत में उन्होंने अपना नाम बदलकर रजनी स्वराज रख लिया. इसके बाद से उन्हें रजनी तिलक के नाम से जाना जाने लगा.

दिल्ली की एक दलित बस्ती में जन्मी रजनी ने बचपन से ही दलितों के साथ हो रहे अत्याचारों को देखा और महसूस किया. रजनी के पिता पेशे से दर्जी थे और मां गृहणी थी. घर की आर्थिक हालत सही नहीं थी जिस कारण हाई स्कूल के बाद रजनी को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. मगर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए रजनी ने सिलाई, कढ़ाई इत्यादि कामों में हाथ बंटाया और घर की आर्थिक स्थिति सुधारने में अपना योगदान दिया.

आईटीआई करने के दौरान रजनी का अपने जैसी नारीवादी विचारधारा वाली महिलाओं से संपर्क हुआ. इसके बाद तो मानो उनके अंदर समाज में बदलाव की एक अलग लहर उठ गई. यहीं से रजनी ने अपने अंदर के कार्यकर्ता व्यक्तित्व को पहचानते हुए कई दलित आंदोलन का नेतृत्व किया. इस दौरान उन्होंने कभी पुरुषों से अलग समाज बनाने का पक्ष नहीं लिया, क्योंकि उनका मानना था कि समाज में बदलाव लाने के लिए पुरुषों की मौजूदगी भी जरूरी है. उनका मानना था कि जब अंतर्जातीय और अंतर धार्मिक विवाह होंगे तब कहीं पितृसत्तात्मक व्यवस्था में सुधार होगा .

महिलाओं के अधिकारों के लिए रजनी तिलक ने देश के कोने-कोने में यात्राएं की. इन यात्राओं से उन्होंने हर जगह से स्त्रियों को अपने साथ जोड़ने का भी प्रयास किया. करीब 40 सालों तक वह जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर महिलाओं के लिए काम करती रही. महिलाओं के ऊपर हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया था.

दलित नारीवादी आंदोलनों की प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता रजनी ने कई कविताएं महिलाओं, दलितों को लेकर लिखी. भले ही उनकी यह कविताएं सालों पुरानी हो मगर आज भी इन्हें पढ़ कर मौजूदा समय का संदर्भ महसूस होता है.

रजनी तिलक की आत्मकथा “अपनी जमीं अपना आसमां”, कहानी संग्रह “बेस्ट ऑफ करवा चौथ”, कविता संग्रह “पदचाप”, “हवा सी बेचैन युवतियां” काफी चर्चित है.

दलित अधिकार कार्यकर्ता रजनी तिलक सेंटर फॉर अल्टरनेटिव दलित मीडिया की कार्यकारी निदेशक थी. उन्होंने नेशनल एसोसिएशन ऑफ दलित आर्गेनाइजेशन की स्थापना की. दलित लेखक समूह के अध्यक्ष के रूप में भी इनका कार्यकाल रहा है. 2013 में रजनी तिलक को महिला आयोग के द्वारा उत्कृष्ट महिला उपलब्धि दी गई.

मात्र 59 वर्ष की आयु में 30 मार्च 2018 को दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल में रजनी तिलक का निधन हो गया. उन्हें रीढ़ की बीमारी के लिए अस्पताल ले जाया गया था.

Dalit feminism in India Dalit writers of India writer Rajni Tilak