रमाबाई रानाडे: शादी के बाद शिक्षित हुई और महिला आंदोलन की रखी नींव

रमाबाई रानाडे का जन्म 25 जनवरी 1862 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के छोटे से गांव देवराष्ट्रि में हुआ. इस समय लड़कियों और महिलाओं पर कई सामाजिक के प्रतिबंध लगे हुए थे, जिनमें एक प्रतिबंध शिक्षा से दूरी भी थी.

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रमाबाई रानाडे

रमाबाई रानाडे

हमारे देश में 19वीं और 20वीं सदी में सामाजिक सुधार के लिए कई अभियान चलाए गए. इनमें महिलाओं ने बदलाव का बीड़ा उठाया और बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया. पुरुषों ने भी उनका बखूबी साथ दिया. इस समय समाज सुधार आंदोलनों के तहत लड़कियों के लिए शिक्षा के मंदिर खोले गए. सती प्रथा जैसी कुप्रथा को हटाया गया, बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया. इन रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ने में महिलाओं ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाएं.

महिला अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली पहली कुछ महिलाओं में सावित्री बाई फुले के साथ रमाबाई रानाडे का नाम शामिल है. रमाबाई रानाडे ने महिला अधिकारों के साथ-साथ सामाजिक कामों में भी बड़ी हिस्सेदारी निभाई. उन्होंने महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे शहर से बाहर निकाल कर भी कई समाजिक कार्य किए.

रमाबाई रानाडे ने उस समय महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ी और अपनी तरह अन्य महिलाओं को पढ़ने और कौशल सीखने के लिए प्रोत्साहित किया. वह खुद भी पढ़ी-लिखी नहीं थी, मगर शादी के बाद उनके पति जस्टिस गोविंद रानाडे ने उन्हें शिक्षित किया.

रमाबाई रानाडे का जन्म 25 जनवरी 1862 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के छोटे से गांव देवराष्ट्रि में हुआ. इस समय लड़कियों और महिलाओं पर कई सामाजिक के प्रतिबंध लगे हुए थे, जिनमें एक प्रतिबंध शिक्षा से दूरी भी थी. इसलिए उनके पिता ने रमाबाई को नहीं पढ़ाया. इसी समय बाल विवाह की प्रथा बहूचलित थी. नतीजतन 11 साल की उम्र में रमाबाई की भी शादी जस्टिस गोविंद रानाडे से कर दी गई. मगर गोविंद रानाडे बेहद खुले विचारों के थे. उन्होंने रमाबाई को शिक्षित करने की ठानी. परिवार के अन्य लोगों के विरोध के बावजूद गोविंद रानाडे ने रमाबाई को पढ़ना-लिखना सिखाया.

गोविंद रानाडे ने रमाबाई को गणित, भूगोल, मराठी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान दिया. रमाबाई अपने पति से बेहद प्रेरित थी, 1882 में वह पति के साथ पुणे आई और यहां सामाजिक बदलाव के लिए काम लगी. शिक्षित रमाबाई ने क्रिश्चन मिशनरी में अंग्रेजी की शिक्षा हासिल की और कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हुए महिलाओं के ऊपर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का काम किया. वह महिलाओं के जीवन में उत्थान के लिए काम करने लगी. शुरुआती समय में वह प्रार्थना समाज से जुड़ी और यहां सामाजिक सुधारों के बारे में गहराई से समझ बनाई. प्रार्थना समाज एक समाज सुधारक आंदोलन था, जिसमें कई सामाजिक मुद्दों पर बैठक और चर्चाएं होती थी.

इन बैठकों की चर्चाओं को रमाबाई ने अन्य महिलाओं तक पहुंचाने का काम किया. वह सार्वजनिक रूप से होने वाले धार्मिक अनुष्ठान, जैसे कीर्तन, पूजा-पाठ में महिलाओं के साथ शामिल होती और उन्हें वहां शिक्षा की ओर मोड़ने का काम करती. उन्होंने महिलाओं को पढ़ना-लिखना और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

धीरे-धीरे रमाबाई रानाडे एक कुशल वक्ता बनी और लोगों को संबोधित करना शुरू किया. उनका पहला भाषण नासिक हाई स्कूल में था. जिसे जस्टिस गोविंद रानाडे ने लिखा. रमाबाई ने आर्य महिला समाज की एक शाखा मुंबई में स्थापित की. इसके साथ ही उन्होंने यहां हिंदू लेडीज सोशल एंड लिटरेरी क्लब की शुरुआत की. यह संस्था महिलाओं को भाषा, सामान्य ज्ञान, सिलाई और हस्तकला की ट्रेनिंग देती थी.

रमाबाई रानाडे ने 1909 में सेवा सदन की स्थापना की. इस सेवा सदन से हजारों महिलाएं जुड़ी और बड़े स्तर पर समाज में महिलाओं के लिए काम शुरू हुए. सेवा सदन 1915 में एक सोसायटी के तौर पर रजिस्टर हुआ. इस संस्था ने एक महिला प्रशिक्षण कॉलेज, तीन महिला हॉस्टल की शुरुआत की. इसके तहत सेवा सदन नर्सिंग और मेडिकल एसोसिएशन की शुरुआत हुई, जिसमें महिला नर्स को ट्रेनिंग दी जाने लगी.

रमाबाई नाम लड़कियों के लिए प्री प्राइमरी शिक्षा को अनिवार्य करने के लिए आंदोलन किया. साल1921-22 में महिलाओं के लिए वोट के अधिकार के लिए बंबई प्रेसीडेंसी में आंदोलन किया. वह महिलाओं के लिए बराबर प्रतिनिधित्व की मांग करती थीं.

समाज सुधारक के साथ-साथ वह एक लेखिका भी थी. उन्होंने मराठी भाषा में अपनी ‘आत्मकथा अमाच्य आयुष्यतिल कही आठवानी’ लिखी, जिसमें उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन की जानकारी दी. इसके साथ ही उन्होंने जस्टिस गोविंद रानाडे के व्याख्यानों का भी एक संग्रह प्रकाशित किया. रमाबाई के जीवन और सामाजिक सुधारों के कार्य को लेकर मराठी में एक टीवी सीरियल भी बनाया गया. महिला आंदोलन की नींव को मजबूत करने वाली रमाबाई रानाडे का निधन 1924 में हुआ.

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