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वैसे बिहार का चुनावी परिणाम, बिहार की चुनावी रणनीति पर आधारित है. देश भर में सैकड़ो उपरी पुल है और इस व्यवस्था के कारण जाम जैसी रोजमर्रा समस्या से निवारण मिला है. उपरी पुल ना केवल जाम का निवारण है बल्कि इससे एक दूसरी सड़क भी बन जाती है जो आपातकालीन स्थिति में लाभकारी साधन का प्रतीक है. यह ओवरब्रिज सड़क के अलावा रेलवे के लिए भी बनाया जाता है. सन 1843 में दुनिया का पहला ओवरब्रिज लंदन रेलवे द्वारा नॉरवुड रेलवे जंक्शन पर ब्राइटन मेन लाइट पर अपने वायुमंडलीय रेलवे वाहनों को लेकर जाने के लिए बनाया गया था. ओवरब्रिज को अलग अलग नामो से भी जानते है जैसे:- ओवरपास, ओवरब्रिज या फ्लाईओवर. ओवरब्रिज एक पुल, सड़क, रेलवे या किसी तरीके की संरचना होती है जो किसी अन्य सड़क या रेलवे के ऊपर होती है. अक्सर हम छोटे- बड़े शहरो में देखते है कि रेलवे फाटक बनी हुई है जिसके आर-पार लोग जाम में फसें हुए है और ढाला उठने का इंतज़ार करते है कि कब ढाला ऊपर उठे और हम घर या दफ्तर पहुंचे. इन्ही सब कारणों से रेलवे ओवरब्रिज बनाने की मांग देश भर में उठने लगी.
रेलवे ओवरब्रिज क्या है?
रेलवे ओवरब्रिज एक ऐसा ब्रिज है जो रेलवे पटरी से ऊँचाई पर बनायीं जाती है ताकि जमीन पर चल रही ट्रेनों को आवाजाही में कोई विलम्ब ना हो और आम नागरिको को भी कोई क्षति ना पहुचे और समय से लोग एक स्थान से दुसरे स्थान आसानी से पहुँच जाए. इसका मुख्य उद्देश्य ट्रेन को बिना बाधा के गुजारना होता है.
भारत में ओवरब्रिज
देश में रेलवे का विकास ब्रिटिश काल से ही शुरू हो गया था. रेलवे ओवरब्रिज की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई, और बढ़ते रेल यातायात के कारण रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण किया गया. भारत का पहला रेलवे ओवरब्रिज मुंबई-ठाणे मार्ग पर 1854 में निर्मित दापूरी वायाडक्ट है. भारत का सबसे पुराना रेलवे पुल पाम्बन पुल है जो कि भारत के तमिलनाडु राज्य में है और इसकी संरचना 24 फरवरी 1914 में हुई.वही अगर हम बात करे भारत के सबसे लम्बे ओवरब्रिज की तो वो बोगीबील नदी पुल है, जो ब्रह्मपुत्र नदी पर 4.94 किलोमीटर लंबा है. रेलवे क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज निर्माण के लिए अधिकतम लम्बाई 700 मीटर और चौड़ाई 21 मीटर होती है जिसमे से 8.4 मीटर चौड़ा ब्रिज बनता है. भारत में हजारों रेलवे ओवरब्रिज हैं, क्योंकि रेलवे मंत्रालय और राज्य सरकारें नियमित रूप से नए पुलों का निर्माण करती हैं.
भारत में कुल रेल ओवरब्रिज:-
भारतीय रेलवे ने वर्ष 2014 से 2023 के बीच कुल 10,867 रोड ओवरब्रिज (आरओबी) और रोड अंडर ब्रिज (आरयूबी) का निर्माण पूरा किया है. इसके विपरीत, 2004 से 2014 के बीच केवल 4,148 आरओबी/आरयूबी का निर्माण हुआ था. वर्ष 2023-24 के दौरान दिसंबर 2023 तक, 612 आरओबी/आरयूबी का कार्य पूरा हो चुका है.
बिहार की स्तिथि:-
अक्सर बिहार बहुत सारी चीजों के लिए बदनाम रह चूका है, और जब राजद सुप्रीमो लालू यादव की सरकार बिहार में थी तब की रेल की स्तिथि से हर कोई वाकिफ है. बिहार में रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण 20वीं शताब्दी में शुरू हुआ. पटना और अन्य प्रमुख शहरों में बढ़ती ट्रैफिक समस्या के समाधान के रूप में पहले ओवरब्रिज बनाए गए. बिहार में भी कई ओवरब्रिज बनाए गए हैं, विशेष रूप से प्रमुख रेलवे जंक्शनों और शहरों में. बिहार में वर्तमान में रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) की सटीक संख्या उपलब्ध नहीं है. हालांकि, राज्य में कई आरओबी निर्माणाधीन है जैसे, सारण, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, खगड़िया, सहरसा, दरभंगा, और समस्तीपुर—में 14 नए आरओबी का निर्माण 2026 तक पूरा होने की योजना है. इन परियोजनाओं की कुल लागत लगभग 1,000 करोड़ रुपये है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें बराबर योगदान कर रही हैं.
रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) की राशि का स्रोत:-
रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) के निर्माण के लिए धनराशि मुख्यतः केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान की जाती है. केंद्र सरकार में, भारतीय रेल मंत्रालय और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) प्रमुख भूमिका निभाते हैं. राज्य सरकारें भी इन परियोजनाओं में वित्तीय योगदान देती हैं. कुछ मामलों में, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से निजी कंपनियाँ भी निवेश करती हैं. नवीनतम नीति के अनुसार, मानवयुक्त लेवल क्रॉसिंग गेटों को समाप्त करने के लिए आरओबी/आरयूबी का निर्माण प्राथमिकता पर किया जाता है, जिससे ट्रेन संचालन में सुरक्षा और सड़क उपयोगकर्ताओं की सुविधा बढ़ती है.
बिहार के सहरसा जिले का बंगाली बाजार एक प्रमुख स्थान है जो सहरसा जिले का केंद्र भी है और जहाँ से लोग 24/7 गुजरते है. इसी बंगाली बाजार में स्थित रेलवे फाटक पर रेल ओवरब्रिज की माँग कई सालों से चल रही है. लोग इस ओवरब्रिज के कारण बहुत सारे आंदोलन भी कर रहे है जिसका कोई निष्कर्ष आजतक नहीं निकला. बंगाली बाजार के पास रेल ओवरब्रिज ना होने के कारण जाम की स्थिति बनी रहती है. लोग कई बार 1-2 घंटा जाम में फँसे रहते हैं. इसी परेशानी को दूर करने के लिए सहरसावासी रेल ओवरब्रिज की माँग कर रहे है. इस भीषण जाम को लेकर बहुत भीड़ रहती है जिसके कारण कई लोगो को मौत भी हो चुकी है. एक लम्बे समय से उच्च न्यायालय में इसपर केस चल रहा था परन्तु कुछ वक़्त पहले केस को ख़ारिज कर दिया गया और वहां ओवरब्रिज बनने की स्वीकृति मिल गयी है. यह ओवरब्रिज लगभग 183 करोड़ की लागत से बनेगा.
सहरसावालों ने दिया सबको मौका, पर कोई नहीं बना पाए ओवरब्रिज
इसी सन्दर्भ में टीम ने सहरसा निवासी विधाता से बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि बंगाली बाजार रेल फाटक सहरसा के मुख्य रास्तों में से एक है और ट्रेन की लगातार आवाजाही से 3-4 घंटा भी फाटक बंद रहता है. यहाँ तक कि कही भी जाने के लिए बंगाली बाजार रेलवे फाटक पार करके ही जाना पड़ेगा.
ना तो आरजेडी की सरकार और ना ही नीतीश की डबल इंजन की सरकार किसी ने भी ओवरब्रिज का निर्माण नहीं किया. विधाता ने कहा कि चुनाव है इसलिए थोड़ी बहुत सुगबुगाहट होती है पर इसका कोई असर नहीं होता है. विधाता ने आगे कहा कि बहुत बार शिलान्यास भी हुआ परन्तु कोई काम नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि सहरसा के विकास के लिए ओवरब्रिज बहुत जरुरी है. वो कहते है कि उन्होंने ऐसा क्या ही मांग लिया है, जो सरकार उनकी मांगें पूरी नहीं कर रही है. उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि सहरसा के बनने के बाद सुपौल बना है पर आज सुपौल सहरसा से ज्यादा विकसित है. विधाता ने कहा कि चुनाव के वक़्त काम शुरू होता है और चुनाव ख़तम होते ही काम बंद कर दिया जाता है.
बड़ी- बड़ी मशीने आई, पर चुनाव हारने के बाद ग़ायब हो गई
डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने सामाजिक कार्यकर्ता सोझां झा से बात की. सोहन झा ने बताया कि शहर के बीचो- बीच रेलवे लाइन है जिसके कारण शहर 2 भागो में विभाजित है और लगभग 30-35 साल पहले उस समय के रेलवे मंत्रियों ने ओवरब्रिज का शिलानयास किया था और कहा था कि रेलवे ओवर ब्रिज बनना चाहिए. सोझन बताते है कि शहर के पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ़ सरकारी कार्यालय है जैसे पुलिस चौकी, अस्पताल और बहुत बार आपातकालीन स्थिति में जाम में फसें रहने के कारण मरीजो की मृत्यु हो जाती है. उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 2014 के चुनाव के वक्त संसद शरद यादव ने बड़ी- बड़ी मशीने लगवाई और जब पप्पू यादव ने शरद यादव को चुनाव में हरा दिया तो वो सारी मशीने ग़ायब हो गई. परंतु संसद पप्पू यादव के कार्यकाल में एक संगठन बनायी गई जिसका नाम रखा गया कोशी युवा संगठन जिसके अध्यक्ष ख़ुद सोझन झा रहे और पैदल मार्च, आक्रोश मार्च जैसे धरना वो सड़को पर देने लगे. सोझन कहते है कि उन्हें इन सब मामलों के कारण गिरफ़्तार भी किया गया था क्यूंकि वो हज़ारो लोगो के साथ रेल की पटरी पर सो गए थे. फिर जब उन्होंने आमरण अनशन किया तो केंद्र सरकार द्वारा 73 करोड़ की राशि ओवरब्रिज बनाने के लिए दी गई थी. परंतु कुछ बड़े- बड़े व्यापारी जिसका मुआवजा सरकार दे चुकी है इसके बावजूद वो लोग सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा किए हुए है और अलग - अलग पार्टियों के नेता से डील करके वहाँ ओवरब्रिज बनने के काम में रुकावट डालने की कोशिश कर रहे है. सोझन बताते है कि उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार इसके लिए लड़ते रहे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पथ मंत्री नितिन नवीन से मुलाक़ात की और अपनी माँगो को सामने रखा. हाल ही में नीतीश कुमार जब चुनावी यात्रा के लिए सहरसा गए थे तो ओवरब्रिज को लेकर लिखित रूप में दिया कि जल्द ही इसका काम शुरू हो जाएगा.