भारत में क्रिकेट को लेकर लोगों के बीच अलग ही जुनून देखने मिलता है. क्रिकेट यहां हर गली-मोहल्ले में खेला जाता है. बच्चों के हाथ में बचपन से ही क्रिकेट की बैट बॉल नजर आने लगती हैं. क्रिकेट का यह जुनून खेल ही नहीं बल्कि खिलाड़ियों को भी अलग दर्जे पर पहुंचा चुका है. मगर हमारे देश में आज भी गली-गली में महिला क्रिकेटरों की कमी महसूस होती है. हालांकि अब महिला क्रिकेट जगत को काफी मान-सम्मान मिल चुका है. स्मृति मंधाना, झूलन गोस्वामी, मिताली राज जैसी महिला क्रिकेटरों ने इस खेल में खुद को स्थापित किया है. मगर इन महिला क्रिकेटरों के लिए यह स्थान बनाने की शुरुआत करीब 48 साल पहले शुरू हो गई थी.
1976 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम का गठन हुआ, जिसमें कई महिला खिलाड़ी शामिल हुई. इनमें से एक महिला ऑल राउंडर खिलाड़ी शांता रंगास्वामी टीम की कप्तान बनी. शांत रंगास्वामी ने बतौर कप्तान अपना पहला टेस्ट मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला. उन्होंने अपने पहले टेस्ट सीरीज में आक्रामक बल्लेबाजी और गेंदबाजी करते हुए सबका ध्यान महिला क्रिकेट की ओर आकर्षित किया.
शांता रंगास्वामी का जन्म 1954 को मद्रास में हुआ. उनके पिता का नाम सीवी रंगास्वामी और मां का नाम राजलक्ष्मी था. शांता छह बहनों में तीसरे नंबर पर थी. जब वह छोटी थी तब से उन्हें क्रिकेट खेलना पसंद था. उनका जन्म एक बड़े घर में हुआ जहां बड़ा परिसर था, यहां वह अपने 20 चचेरे भाई-बहनों के संयुक्त परिवार में पलते-बढ़ते ही खेलों के करीब आती गई. हालांकि वह 7 साल की उम्र से टेनिस खेलने लगी थी. दोस्तों के साथ हर हफ्ते टेनिस बॉल मैच खेला करती थी. मगर इस दौरान घर के आंगन में क्रिकेट भी खेलती थी.
टेनिस, क्रिकेट के अलावा वह बैडमिंटन, सॉफ्टबॉल और अन्य खेलों में भी बखूबी दिलचस्पी रखती थी. उन्होंने कर्नाटक के लिए बैडमिंटन खेल और कर्नाटक सॉफ्टबॉल टीम की कप्तान भी रहीं. मगर क्रिकेट के लिए उनका लगाव अलग था. हालांकि पेशेवर तरीके से महिला क्रिकेटर ज्यादा नहीं थी और उसके बारे में उन्हें जानकारी भी अधिक नहीं थी. बाद में फाल्कन स्पोर्ट्स क्लब में सभी सॉफ्टबॉल खिलाड़ियों ने क्रिकेट खेलना शुरू किया, जिसमें शांता भी शामिल हुई. वह पहली बार 1973 में महिला राष्ट्रीय चैंपियनशिप(एक घरेलू टूर्नामेंट), पुणे में पेशेवर तरीके से क्रिकेट खेलने लगी. वह क्लब क्रिकेट से भी जुड़ी. टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वह क्रिकेट के लिए इतनी जुनूनी थी कि 22 साल तक अपने क्रिकेट करियर में उन्होंने पैसा भी नहीं कमाया. उनका मानना है कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता.
अपने क्रिकेट के दिनों में शांता अन्य खिलाड़ियों के साथ ट्रेनों में अनारक्षित कोटे से यात्रा करती थी. उस समय नेशनल चैंपियनशिप में नॉकआउट फॉर्मेट खेला जाता था. इसमें अगर कोई हारा तो उसे वापस लौटना पड़ता था. ऐसे में खिलाड़ियों को पहले से टिकट बुक करने का कोई मौका नहीं मिलता था. कई बार वह ट्रेन में टॉयलेट के पास बैठकर यात्रा करती थी. मगर उस समय उन्हें यह सब खेल के आगे कुछ नहीं दिखता था. डॉरमेट्री में रुकना, स्कूलों के कमरों में ठहरना यह सब संघर्ष थे. मगर इन्हें यह दिन मजेदार लगते थे क्योंकि इनके लिए खेल सबसे जरूरी था.
जिस समय भारतीय महिला क्रिकेट टीम को बराबरी का दर्जा नहीं मिला था. उस दौर में शांता रंगास्वामी ने टीम के कप्तानी में कई रिकॉर्ड बनाएं. वह अंतरराष्ट्रीय शतक लगाने वाली पहली महिला बल्लेबाज बनीं. 1976 से 1991 तक 16 मैचों में उन्होंने भारत के लिए महिला टेस्ट क्रिकेट खेला. 1976-77 में 8 मैचों में और 1983-84 में 4 मैचों टीम की बातौर कप्तान कमान संभाली.
1976 में वेस्टइंडीज के खिलाफ भारत में पहली टेस्ट सीरीज जीती, जिसके बाद भारतीय महिला क्रिकेट टीम को अलग पहचान मिलने लगी. दाएं हाथ की बल्लेबाज शांत ने सोलर टेस्ट मैच में 32.6 की बल्लेबाजी औसत से 750 रन बनाएं, जिसमें एक शतक शामिल है. यह शतक उन्होंने डुनेडिन मैं न्यूजीलैंड के खिलाफ बनाया था.
1976 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार पाने वाली भी वह पहली महिला क्रिकेटर हैं. वह पहली भारतीय महिला क्रिकेटर हैं जिन्होंने महिला विश्व कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ पहला शतक जड़ा.
बीसीसीआई ने महिलाओं की लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार की शुरुआत की, शांता रंगास्वामी इसकी पहली प्राप्तकर्ता बनीं. कर्नाटक राज्य सरकार ने साल 2019 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया. 2019 में वह भारतीय क्रिकेटर्स एसोसिएशन और बीसीसीआई अपेक्स काउंसिल का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर बनीं. मौजूदा समय में शांता रंगास्वामी क्रिकेट लेखिका और बेंगलुरु के केनरा बैंक में जनरल मैनेजर के पद पर काम कर रहीं हैं.