छात्रों में आत्महत्या के मामले बढ़े, दुनिया में 17% मामले भारत के

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के साल 2021 के आंकड़े के अनुसार पूरे देश में आत्महत्या के कुल 1,64,033 मामले दर्ज किये गए थे. आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच छात्रों द्वारा आत्मघाती कदम उठाना भारत के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है.

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पल्लवी कुमारी
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छात्रों के आत्महत्या के मामले बढ़े, दुनिया में 17% मामले भारत के

छात्रों के आत्महत्या के मामले बढ़े, दुनिया में 17% मामले भारत के

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में हर साल सात लाख से अधिक लोग सुसाइड करते हैं. वहीं इससे ज्यादा गंभीर बात यह है कि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं. WHO की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में होने वाली आत्महत्या में अकेले भारत की हिस्सेदारी 17% है. 

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NCRB के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की. चिंता की बात यह कि यह आंकड़े साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं. साल 2020 और 2021 से पहले जहां 7% छात्र आत्महत्या करते थें, वहीं साल 2020-21 में बढ़कर 8% हो गया है. साल 2011 और 2021 के दौरान कुल आत्महत्या के मामलों में 21% की बढ़ोतरी हुई है.

वहीं इस दौरान छात्र आत्महत्या के मामले 70% तक बढ़े हैं. साल 2021 में 18-30 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा 56,543 सुसाइड के मामले सामने आए.

NCRB की रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में बच्चों को आत्महत्या के लिए उकसाने के 337 मामले दर्ज किये गए थे. वहीं 16 से 18 वर्ष के 92 बच्चे के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज हुआ था  जबकि इसी उम्र के 21 बच्चे ने आत्महत्या की थी. वहीं 12 से 16 वर्ष के 6 बच्चे के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था. 

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छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की वजह 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 15 से 19 साल के युवाओं में मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है. आत्महत्या करने वाले अधिकतर लोग डिप्रेशन, प्रेशर या जीवन में कुछ नहीं कर पाने की हताशा से जूझ रहे होते हैं. कुछ मामलों आत्महत्या करने करने की मेडिकल कारण भी हो सकती है. 

केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए आंकड़ों  के अनुसार साल 2018 से मार्च 2023 के मध्य तक आईआईटी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) में कुल 61 छात्रों ने आत्महत्या की थी. इनमें से 33 छात्र आईआईटी के थे. 

ये वैसे छात्र थे जो देश में होने वाली सबसे कठिन प्रवेश परीक्षाओं को पास कर टॉप कॉलेज में पढ़ने पहुंचे थे.ऐसा नहीं है कि इन छात्रों में प्रतिभा की कमी थी. लेकिन परिवार से दूरी, बढ़ते प्रेशर को बांटने के लिए परिवार की अनुपलब्धता छात्रों को अकेलेपन और अवसाद में घेर लेती है. 

सूरज कुमार (बदला हुआ नाम) बीटेक सेकंड ईयर के छात्र हैं. उनके कॉलेज में पिछले महीने ही एक छात्र ने आत्महत्या की थी. छात्र पर बढ़ते प्रेशर पर बात करते हुए सूरज कहते हैं “ऐसा नहीं है कि अचानक कॉलेज जाने से प्रेशर बढ़ जाता है. 11वीं -12वीं में हम ज्यादा लोगों से मिलते नहीं है लेकिन जैसे ही हम कॉलेज पहुंचते हैं, अपने आसपास अपने से 10 गुना ज्यादा टैलेंटेड लोग मिलते हैं. अब आपको उनसे कंपिट करना पड़ता है. इससे बहुत ज्यादा पीयर प्रेशर आ जाता है. अगर इस समय फैमिली का सपोर्ट नहीं मिलता है तो स्टूडेंट गलत कदम उठा लेता हैं. सोसाइटी से ज्यादा फैमिली का प्रेशर स्टूडेंट को कमज़ोर करता है.” 

समिधा पांडेय बिहार की जानी मानी साइकोलोजिस्ट हैं. बच्चों के मनोविज्ञान को समझना और उन्हें बेहतर सुझाव देने में समिधा पांडेय विशेषज्ञ हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए वो बताती हैं “माता-पिता बच्चे के सामने क्या बोल रहें हैं उसका ध्यान रखे. शब्दों का चयन बहुत सोच समझकर करें. जैसे ‘एग्जाम का प्रेशर’ शब्द हम लोग बहुत बार सुनते हैं. मै कई बार सुनती हूं पेरेंट्स कहते हैं मैंने बच्चे से कहा है एग्जाम का प्रेशर मत लो, मार्क्स की चिंता मत करो जबकि यह गलत है. पहली बात ‘प्रेशर’ शब्द उपयोग ही नहीं करना है. आप उन्हें परीक्षा की सीरियसनेस (गंभीरता)के बारे में जागरूक करिए. परीक्षा को  गंभीरता से लेने की आदत उन्हें आने वाले रिजल्ट के लिए तैयार रखेगी. मार्क्स से ज्यादा नॉलेज की वैल्यू (प्रमुखता) उन पर दबाव को हावी नहीं होने देगा.

युवाओं को आने वाले रिजल्ट की जिम्मेदारी लेनी सीखनी होगी- समिधा पांडेय 

भारत में बढ़ते आत्महत्या के मामले खासकर युवा वर्ग में आत्महत्या के बढ़ते मामले पर समिधा पांडेय कहतीं हैं “आजकल के युवाओं में बहुत ऊर्जा है, बहुत क्षमता भी है. लेकिन उनमें सबसे बड़ी कमी जो हाल के दशकों में देखी जा रही है वह है अपने किये गए काम के बाद मिलने वाले रिजल्ट को लेकर असंतोष. 

परिवार, स्कूल और कॉलेज की उपयोगिता बात करते हुए समिधा पांडेय कहतीं है “बच्चे घर के बाद सबसे ज्यादा समय स्कूल और कॉलेज में बिताते हैं  शिक्षक और माता-पिता को इस बात पर गौर करना चाहिए कि इस समस्या को दूर करने के लिए क्या बदलाव किए जा सकते हैं. प्रतिस्पर्धा पहले भी थी,आज भी है और आगे भी रहेगी. ऐसे में हमें ‘परसेंटेज’ से ज्यादा ‘नॉलेज’ पर फोकस करना होगा.” 

आज का युवा रिजल्ट को स्वीकारना नहीं चाहता है. मन मुताबिक रिजल्ट नहीं मिलने पर वह उसकी जिम्मेदारी लेने के बजाए उसे दूसरों पर थोपने लगता है. परिवार तक तो यह आदत चल जाती हैं. लेकिन कॉलेज या जॉब करने के दौरान आपकी यही आदत आपको पीछे धकेलने लगती हैं. अपनी कमियां स्वीकार नहीं करने आगे चलकर भयावह परिणाम देती हैं.

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