बिहार एक ऐसा राज्य है जो पहले कभी अपने अपराध के कारण चर्चा में बनता था. राज्य में अपराधिक घटनाएं धीरे-धीरे खत्म हुई, उसके बाद आईपीएस,आईएएस ऑफीसरों के कारण राज्य को अलग पहचान मिलनी शुरू हुई. यह सिलसिला अब भी राज्य की एक परंपरा के तौर पर बना हुआ है, लेकिन यही बिहार अपने विकास के कारण भी पिछड़ा माना जाता है. यहां आज भी विकास की रफ्तार काफी धीमी है, जिसके कारण आयदिन यहां से कई नेगेटिव खबरें भी बनती है. इन दिनों बिहार एक बार फिर से अपने नेगेटिव खबरों की सुर्खियां बटोर रहा है. बिहार के विकास की रफ्तार जितनी तेज हो रही है उतनी ही तेजी से यहां निर्माण गिरते जा रहे हैं. एक तरफ से जहां सड़के, पुल, बांध, ओवर ब्रिज, फ्लाईओवर इन सभी का निर्माण हो रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कई जगह पर सड़के धंस रही है, पुल गिर रहे हैं, बांध टूट रहे हैं. इन निर्माणों से पता लगता है कि इनकी गुणवत्ता क्या रही होगी और राज्य सरकार ने इसे बनाने के लिए कितने सुरक्षित हाथों में जिम्मेदारी दी है. लाखों-लाख जिंदगियां रोज सरकार के इस अच्छे निर्माण पर जिंदगी और मौत के बीच में झूल रही है.
बीते 11 दिनों में बिहार में 6 पुल गिरने की घटना हुई है. क्या पता जब आप यह लेख पढ़ रहे होंगे तब तक एक और पुल बिहार में गिर रहा हो.
इतने पुलों के गिरने के बाद बिहार सरकार ने अब जाकर पुलों के गिरने का कारण पता लगाने का सोचा. ऐसा लगता है कि सरकार इंतजार कर रही थी कि बस एक और पुल गिरे तब वह कमेटी को जांच सौपैगी.
आज ही राज्य सरकार ने पुल गिरने की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया, जो अगले तीन दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, यानि एक दिन में दो पुलों के गिरने की जांच की जाएगी. अब इस काम को भी कितने सफाई से किया जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन कमेटी को तीन दिनों में 6 पुलों का टारगेट पूरा करना है. इस होमवर्क के बाद विकास बाबू आगे की कवायद शुरू करेंगे.
ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री अशोक चौधरी ने जांच को लेकर कहा कि कमेटी तीन दिनों के भीतर यह बता देगी कि निर्माण में किस तरह के पदार्थ का इस्तेमाल किया गया था. पदार्थ की गुणवत्ता की भी जांच की जाएगी और जो दोषी होंगे उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
हालांकि राज्य में पुल गिरने का यह पहला साल नहीं है. इसके पहले भी कई सालों से राज्य में बड़े-बड़े निर्माणाधीन और रखरखाव के अभाव में कई पुल धराशाई हो चुके हैं. इसके पहले भी बीते साल जून में गंगा घाट पर निर्माणाधीन सेतु का तीन पाया जमीनदोष हो गया था. 16 मई को बिहार के पूर्णिया में एक निर्माणाधीन सड़क पर कंक्रीटकरण के चार घंटे के भीतर ढह गया था. इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने ठेकेदार और इंजीनियरों पर घटिया सामग्री इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. 19 मार्च को बिहार के सारण में अंग्रेजों के जमाने का एक सड़क पुल गिर गया था, जिसके कारण दो लोग घायल हो गए थे. फरवरी को पटना में बिहिटा-सरमेरा फोरलेन गिर जाने की घटना हुई थी. 16 जनवरी को दरभंगा में ओवरलोड ट्रक की चपेट में आने से लोहे का पुल गिर गया था. 18 नवंबर 2022 को सीएम के गृह जिले नालंदा में एक निर्माणाधीन सड़क पुल ढह गया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. 9 जून 2022 को सहरसा में भी एक पुल गिरा था, जिसमें तीन मजदूर घायल हो गए थे. इन पुलों के गिरने की घटना काफी लंबी है और इससे भी ज्यादा लंबी राज्य सरकार के काम के विफलता की लिस्ट है.
अब सवाल यह उठता है कि इन 6 पुलों की जांच के बाद क्या राज्य सरकार बाकी भी गिरे हुए पुलों की जांच कराएगी? क्या राज्य सरकार यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि उन पुलों के गिरने के पीछे किसका हाथ था? उन पुलों में जिन मजदूरों, जिन लोगों और जिन बच्चों की जिंदगियां गई है, उनकी मौत का जिम्मेदार कौन था? क्या सरकार कभी यह पता लग पाएगी कि क्या उनके ही बीच से कोई ऐसा तो नहीं जो इन सभी के लिए जिम्मेदार है.