आज मैं आरा से पटना के बीच बने नए कोईलवर पुल से जा रही थी, उस पुल से पुराना कोईलवर पुल भी नजर आ रहा था. अंग्रेजों के जमाने में बना वह पुल आज भी मजबूती के साथ खड़ा सरकार को ठेंगा दिखा रहा था. पुराना पुल मानो सरकार से कह रहा हो कि कितनी भी कोशिश कर लो, मुझ जैसी मजबूती तुम्हारे बस की बात नहीं. वैसे कोइलवर पुल केंद्र का मखौल बना रहा है या राज्य का इसका जिम्मा पुल पर ही छोड़ती हूं.
उस पुल को देखते-देखते मैं अपने नए कोईलवर पुल के बारे में भी सोचने लगी. मुझे अजीब से ख्याल आने लगे कि यह पुल ठीक तो है, इसकी मर्मती तो होती होगी ना. कहीं चलते-चलते मैं नदी में तो नहीं समा जाऊंगी! सफर के दौरान ही मैंने गूगल किया कि बिहार में पुलों के गिरने का आंकड़ा क्या है और आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि हमारे यहां सबसे ज्यादा पुल गिरते हैं. कई बार यहा पुल निर्माणाधीन होते हैं, कई उद्घाटन की राह देखते हुए दम तोड़ देते हैं, तो कई सरकारी सुस्ती और नजरअंदाज के कारण चल बसते हैं.
नीतीश कुमार के इंजीनियरिंग की डिग्री पुल-पुलिया
राज्य के विकास पुरुष नीतीश कुमार के इंजीनियरिंग की डिग्री पुल-पुलिया बनाने में फेल हो रही है. विकास पुरुष हर कहीं बस यही डिंडोरी पीते हुए नजर आते हैं कि देखिए ना बिहार में कितना बढ़िया काम हुआ है, कहां-कहां तक सड़क नहीं बनी है, कितना विकास हो रहा है. लेकिन हमारे सीएम क्षतिग्रस्त हुई सड़क, ढहे हुए पुल, बाढ़ की भेंट चढ़े गांव के बारे में क्यों तक नहीं करते हैं. 9 बार से बिहार सीएम का पद संभाल रहे नीतीश कुमार ने आज तक किसी लापरवाही की जिम्मेदारी अपने सर नहीं ली है.
बिहार के सुपौल, भागलपुर और अब अररिया में निर्माणाधीन पुल गिरने की खबर आई है. मंगलवार को ही आररिया में उद्घाटन से पहले गिरे पुल पर अभी जिम्मेदारियों का पल्ला झाड़ने का सिलसिला चल रहा है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पुल निर्माण से केंद्र सरकार का नाम पीछे कर लिया है और पुल निर्माण का सारा जिम्मा राज्य सरकार के माथे मढ़ा गया है.
पिछले तीन सालों में राज्य में 9 पुल भ्रष्टाचार की भीड़ चढ़ गए हैं. राज्य में हजारों करोड़ रुपए के पुल यूं ही पानी में बह जाते है. अररिया का पुल 12 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा था. उसके पहले भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा नदी पर बन रहा पुल 1710 करोड़ रुपए की लागत से बन रहा था. इनके अलावा सुपौल में देश बके सबसे लम्बे पुल का निर्माण 1200 करोड़ रुपए से कराया जा रहा था.
पुल प्रशासन की लापरवाही
इनमें भागलपुर का पुल दो बार गंगा में समा गया. 4 में 2023 को क्रिया को भागलपुर से जोड़ने वाला यह पुल बह गया. इसके पहले भी 30 अप्रैल 2022 को इस निर्माणाधीन पुल का हिस्सा गिर गया था. 2024 में इस पुल के शिलान्यास हुए 10 साल हो गए, लेकिन आज भी यह पुल शायद एक बार फिर गिरने की राह देख रहा है.
इसी साल मार्च में मधुबनी से सुपौल के बीच कोसी नदी पर बनाया जा रहा पुल का एक हिस्सा गिर गया था. इस हादसे में एक मजदूर की जान चली गई थी, वहीं 9 से ज्यादा लोग इसमें गंभीर रूप से घायल हुए थे.
इसके अलावा सारण में बीते साल मार्च में अंग्रेजों के जमाने का एक पुल प्रशासन की लापरवाही के कारण चलता बना. जिस वक्त पुल अपनी आखिरी सांस ले रहा था, उस वक्त भी वह अपनी सेवा दे रहा था. दरअसल इस जर्जर पुल के ढांचे पर दुर्घटना के समय एक ट्रक जा रही थी. पुल गिरने से ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो गई और ट्रक चालक व कंडक्टर की घटना में मौत हो गई थी.
दरअसल यह सड़क पुल दशकों से पुनरुद्धार की राह देख रहा था, लेकिन विभाग ने उसे ऐसे दरकिनार किया मानो चाय से मक्खी. खबरों की माने तो विभाग की लापरवाही इस पुल को लेकर इतनी ज्यादा थी कि जर्जर होने के बावजूद भी पुल को खतरनाक घोषित नहीं किया गया था और ना ही किसी तरह का चेतावनी बोर्ड लगाया गया था.
बीते साल जनवरी में भी दरभंगा में एक पुल धराशाई हो गया था. यह पुल दरभंगा को मधुबनी, सहरसा और समस्तीपुर से जोड़ता था.
दिसंबर 2022 में बेगूसराय में उद्घाटन से पहले ही 13 करोड़ की लागत से गंडक नदी पर बन रहा पुल बह गया. इसके अलावा नवंबर 2022 में नालंदा में जून 2022 को सहरसा में, मई 2022 को पटना में 136 साल पुराना पुल भ्रष्टाचार और लापरवाही के भार से ढह गया.
इतने पुलों की कुर्बानी, इतने लोगों के जान की जवाबदेही और जनता के टैक्स के पैसे की जिम्मेदारी लेने वाला कोई सामने क्यूं नहीं आता? पुल बन जाने पर पक्ष का वोट बैंक और टूट जाने पर विपक्ष का चुनावी मुद्दा बन जाता है.
आखिर बिहार में इतनी बार पुलों के गिरने की वजह क्या है? वजह बिल्कुल साफ है भ्रष्टाचार. इन पुलों के निर्माण में करोड़ों रुपए की लागत लगती है, जो कई लोगों के साइन से होकर गुजरती है. इनमें कई बार कर्मी, अधिकारी, मंत्री, विधायक, टेंडर एजेंसी सभी लागत का छोटा-मोटा निवाला लेते हैं, जिससे निर्माण सामग्री की क्वालिटी में कटौती करनी पड़ती है. ताकि अधिकारियों के खजाने की क्वांटिटी बढ़ाई जा सके.