समाज जन्म देने वाली मां को ससुराल में जगह नहीं देता....

क्या सिर्फ़ पड़ोसियों और समाज के सवालों से डर कर अपने मायके वालों को अकेला छोड़ना चाहिए? क्या शादी के बाद सिर्फ़ ससुराल ही बहू का घर है? मायके वालों की सेवा में अनदेखी एक गैर-जिम्मेदार बेटी नहीं बना देती?

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मां को ससुराल में जगह नहीं

मां को ससुराल में जगह नहीं

मेरी शादी 28 साल पहले एक जॉइंट फैमिली में हुई, जिसमें पांच भाइयों में मेरे पति सबसे बड़े हैं. इतने बड़े फैमिली को शुरुआत के दिनों में संभालना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता था, क्योंकि मैं एक न्यूक्लियर फैमिली से थी जहां मेरे मम्मी-पापा और भाई-बहन साथ थे. शादी के कई सालों तक मैं चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर थी, मैं शुरुआत में इतने बड़े परिवार के बीच कुछ भी बोले में असहज रहती थी. कुछ सालों के बाद मेरे देवर की शादी हुई तो एक छोटी बहन जैसी देवरानी घर आई, हम दोनों ने मिलकर इस घर को अपने घर की तरह रखने की कोशिश की है. हमारा परिवार भी बड़ा है तो हमारा घर भी काफी बड़ा है. घर में हमेशा लोगों का आना- जाना लगा रहता है, कभी बड़ी ननद आती हैं, तो कभी मंझली और छोटी ननद भी हर साल गर्मी की छुट्टी में अपने बच्चों के साथ आती है. हमारे घर बच्चे भी हैं जो एक दूसरे के साथ खूब खेलते हैं. यह बात तो मेरे ससुराल की है, लेकिन अब मैं मायके के बारे में बताती हूं.

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मेरा मायका ससुराल से 1000 किलोमीटर दूर है. मैं अपने मायके बहुत कम जाती हूं, क्योंकि सभी बच्चों को यही खेलने वाले भाई-बहन मिल जाते हैं, ऊपर से ननद भी आती-जाती रहती हैं. नानी घर में बच्चे थोड़े बोर हो जाते हैं क्योंकि उनके साथ वहां खेलने वाला कोई नहीं होता. नाना नानी बूढ़े हैं, मामा ने शादी नहीं की तो बेचारे बच्चों के साथ खेलने वाला मायके में कोई नहीं है. हालांकि मां-पापा हमेशा बच्चों को बुलाते थे, मगर वह जाना ही नहीं चाहते थे. इसी बीच कोरोना के समय मेरे पापा का देहांत हो गया, इसके बाद मां और भाई अकेले पड़ गए. मां की उम्र 80 बरस हो चली है. एक दिन भाई की तबीयत बहुत खराब हुई, मां ने हड़बड़ा के मुझे फोन किया, तो मैंने पास-पड़ोसियों से मदद लेकर भाई को अस्पताल में भर्ती करवाया. मन बहुत घबरा रहा था कि मां अकेले वहां क्या करेंगी, मैं उसी दिन बस से मां के पास रवाना हो गई. मैंने मां से कहा कि अब आप अकेली घर पर कैसे रहेंगी? मेरे साथ मेरे ससुराल चलिए, वहां मैं आपकी अच्छे से सेवा कर पाऊंगी और बच्चे भी हैं तो आपका मन लगा रहेगा. इस पर मां मुझे समझाने लगी कि समाज जिस घर से लड़की लाता है उस घर से वह दूसरा कोई व्यक्ति स्वीकार नहीं करता. मैं बूढी हूं, तुम्हारे ससुराल में बोझ बनकर रहना नहीं चाहती. तुम अपने सास-ससुर की सेवा करो, मेरे लिए मेरा बेटा है ना. इस पर मैंने उनसे कहा कि बेटा भी तो अकेला है, वह खुद बीमार हो जाता है तो आप उसकी सेवा नहीं कर पाती, तो वह आपकी सेवा कैसे कर पाएगा? मैंने मां से कहा कि वह और भाई दोनों साथ चले. मां ने मेरी बातों को बहुत मिन्नतों के बाद भी टाल दिया.

कुछ दिन बाद भाई ठीक हुआ तो मैंने उससे भी मेरे शहर चलने को कहा. मैंने दोनों को बहुत समझाया कि इस उम्र में अकेले रहना, वह भी सबसे इतनी दूर ठीक नहीं. इस पर भाई ने कहा कि हमारा तुम्हारे साथ ससुराल में रहना ठीक नहीं है. ससुराल वाले कई तरह की बातों को सोचने लगेंगे. वह हमें देखकर असहज भी हो जाएंगे. पड़ोसी भी यह पूछना शुरू करेंगे कि आखिर बड़ी बहू की मां और बेटा यहां क्यों रहने लगे. घरवालों की तो छोड़ो पड़ोसियों की आंखों पर हम बोझ हो जाएंगे.

मैं एक नादान बच्चे की तरह जिद्द पर अड़ और कहने लगी कि जब मैं अपना सब कुछ छोड़कर ससुराल रहने गई थी, जब मैंने ससुराल वाले को अपना परिवार माना, जब मैंने अपने मां-बाप को छोड़कर सास-ससुर पर प्यार और सेवा लुटाया, जब मैंने पास-पड़ोसियों को इज्जत देकर उनके साथ हर दुख-सुख में खड़ी रही, तो जब मुझे जन्म देने वाली मां और मेरे साथ हंसते-खेलते बड़ा हुआ मेरे भाई को मेरी जरूरत है, तो मैं उनके साथ क्यों नहीं रह सकती? क्या आप लोगों ने मेरी शादी कर मुझे पराया कर दिया है? क्या सिर्फ़ पड़ोसियों और समाज के सवालों से डर कर मैं अपनी मां को अकेले छोड़ जाऊ? क्या शादी के बाद सिर्फ़ ससुराल वाले ही मेरे अपने है? मायके वालो की सेवा में अनदेखी मुझे एक गैर-जिम्मेदार बेटी नहीं बना देगी?

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